न्यूज़ हेडलाइंस Post

सभी बंधुओं को जय श्री रघुनाथजी री सा, जय श्री खेतेश्वर दाता री सा.. अगर आप भी समाज से जुड़ी कोई न्यूज़ हम तक पहुंचाना चाहता है तो हमारे व्हाट्सएप नंबर पर हमसे संपर्क कर सकते हैं हमारा व्हाट्सएप नंबर है 9286464911 सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन मेघलासिया

Followers

यह ब्लॉग समर्पित है!






"संत श्री 1008 श्री खेतेश्वर महाराज" एवं " दुनिया भर में रहने वाले राजपुरोहित समाज को यह वेबसाइट समर्पित है" इसमें आपका स्वागत है और साथ ही इस वेबसाइट में राजपुरोहित समाज की धार्मिक, सांस्‍क्रतिक और सामाजिक न्‍यूज या प्रोग्राम की फोटो और विडियो को यहाँ प्रकाशित की जाएगी ! और मैने सभी राजपुरोहित समाज के लोगो को एकीकृत करने का ऐसा विचार किया है ताकि आप सभी को राजपुरोहित समाज के लोगो को खोजने में सुविधा हो सके!

आप भी इसमें शामिल हो सकते हैं तो फिर तैयार हो जाईये!

"हमारे किसी भी वेबसाइट पर आपका हमेशा स्वागत है!"

वेबसाइट व्यवस्थापक
सवाई सिंह राजपुरोहित-आगरा{मिडिया प्रभारी }
सुगना फाऊंडेशन-मेघलासिया जोधपुर & आरोग्यश्री मेला समिति
09286464911

मेरे साथ फेसबुक से जुडिए

29.3.12

Rajpurohit History

ब्रह्मवतार संत  श्री  1008  श्री खेतेश्वर महाराज

राजपुरोहित समाज का संक्षिप्त इतिहास
राजपुरोहित हिंदु ब्राह्मण जाती में आने वाला एक समुदाय है जों की ज्यादातर राजस्थान के क्षेत्रों में बसता है! वास्तिवक में राजपुरोहित एक पदवी(उपादी) है जोकि उन ब्राह्मणों को प्रदान की जाती थीं जो किसी राजा के राज्य में राज्य का कारभार सँभालने में अपन योगदान देते थे!

राजपुरोहित जाति का संक्षिप्त इतिहास

         यह संक्षिप्त इतिहास सर्वप्रथम प्रकाशित पुस्तक "रिपोर्ट मरदु-मशुमारी राज मारवाड़" सन् 1891 के तीसरे हिस्से की दुष्प्राप्य प्रति राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर में उपलब्ध है, से संकलित किया गया है। इसके अतिरिक्त अन्य सामग्री का भी प्रयोग किया गया है। इसके द्वारा हमें प्रत्येक खांपों की जानकारी प्राप्त होती है। आशा है समाज के प्रत्येक वर्ग को रूचिकर एवं नई जानकारी प्राप्त है

(ुस्तक की मौलिकता को ध्यान में रखते हुए भाषा नहीं बदली गई है।)

    मारवाड़ एवं थली में राजपुरोहित (जमीदार) अन्य ब्राह्मणों की अपेक्षा अधिक है। ये लोग राजपूतो को मोरूसी गुरू है और पिरोयत (पुरोहित) कहलाते है। अगर हम इतिहास पर एक दृष्टि डाले तो पायेंगे कि राजपुताने में राजपुरोहितो का इतिहास में सदैव ही ऐतिहासिक योगदान रहा है। ये राज-परिवार के स्तम्भ रहे है। इन्हे समय-समय पर अपनी वीरता एवं शौर्य के फलस्वरूप जागीरें प्राप्त हुई है। उत्तर वैदिक काल में भी राजगुरू पुरोहितो का चयन उन श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों में से होता था जो राजनीति, सामाजिक नीति, युद्धकला, विद्वता, चरित्र आदि में कुशल होते थे । कालान्तर में यह पद वंशानुगत इन्ही ब्राह्मणों में से अपने-अपने राज्य एवं वंश के लिए राजपुरोहित चुने गये । इसके अतिरिक्त राजाओं की कन्याओं के वर ढूंढना व सगपन हो जाने पर विवाह की धार्मिक रीतियां सम्पन्न करना तथा नवीन उत्तराधिकारी के सिंहासनासीन होने पर उनका राज्याभिषेक करना आदि था । ये कार्य राज-परिवार के प्रतिनिधि व सदस्य होने के कारण करते थे । वैसे साधारणतया इनका प्रमुख व्यवसाय कृषि मात्र था ।
पिरोयतो की कौम एक नहीं अनेक प्रकार के ब्राह्मणों से बनी है। इस कौम का भाट गौडवाड़ परगने के गांव चांवडेरी में रहता है। उसकी बही से और खुद पिरोयतो के लिखाने से नीचे लिखे माफिक अलग-अलग असलियत उनकी खांपो की मालूम हुई है।

 (1) राजगुर पिरोयत:- राजगुरू जाति की कुलदेवी - सरस्‍वती माता (अरबुदा देवी)
                      यह कि पंवारो के पुरोहित है और अपनी पैदाईश पंवारो के माफिक वशिष्ट ऋर्षि के अग्नि कुंड से मानते है । जो आबू पहाड़ के ऊपर नक्की तालाब के पास है। इनका बयान है कि पंवार से पहले हमारा बड़ेरा राम-राम करता पैदा हुआ, जिससे उनसे कहा कि ‘‘तुं परमार हूं गुर राजरो’’ यानि आप बैरियों को मारने वाले है, और मैं आपका गुरू हूं । परमार ने उसको अपना पुरोहित बना कर राजगुर पदवी और अजाड़ी गांव शासन दिया जो सिरोही रियासत में शामिल था । सबसे पुराना राजगुर पिरोयतो का है। मारवाड में भी सीलोर और डोली वगैरा कई गांव शासन सिवाने और जोधपुर में है, और इनकी खांपे
-
1. आँबेटा, 2 करलया, 3. हराऊ, 4. पीपलया, 5. मंडार, 6. सीदप,
7. पीडिया, 8. ओझा, 9. बरालेचा, 10. सीलोरा, 11 बाड़मेरा, 12 नागदा ।


इनमें से सीदप पहले चौहानों के भी पिरोयत हो गये थे मगर फिर किसी कारण से नाराज होकर छोड़ बैठे । अब उनकी जगह दूसरी खांप के राजगुरू उनके पिरोयत है।
सीदप के शासन गांव, टीबाणिया, फूलार, जुड़िया, अणरबोल, पंचपद्रा, शिव और सांचोर के परगनों में है।

(2) ओदिचा पिरोयत:- नेतड जाति की कुलदेवी - बांकलमाता
    ये देवड़ों के पिरोयत हैं, और अपने को उदालिक ऋषि की औलाद में से बताते है। इनकी खापें:-

1. फॉदर्र, 2. लाखा, 3. ढमढमिया, 4. डीगारी, 5. डाबीआल, 6. हलया
7. केसरियो 8. बोरा 9. बाबरिया 10. माकवाणा 11. त्रवाडी 12 रावल
13 कोपाऊ 14 नेतरड़ 15. लछीवाल 16. पाणेचा 17. दूधवा


इनके भी कई शासक गांव मारवाड़ में है जिनमें बड़ा गांव बसंत गोडवाड़ परगने में राणाजी का दिया हुआ है जिनकी आमदनी उस समय पांच सात हजार रूपये थी ।
 
(3) जागरवाल पिरोयत:-जागरवाल जाति की कुलदेवी - ज्‍वाला देवी 
ये अपना वंश बाल ऋषि से मिलाते है और सिंघल राठौड़ो के पिरोयत है जिनके साथ शिव और कोटड़े से जेतारण आये जहां अब तक खेड़ी इनका शासन गांव है।
 जब राव मालदेव जी ने सिंधलो को जेतारण में से निकाल दिया था तो उनको राणाजी ने अपने पास रख कंवला वगैरा 18 गांव गोड़वाड़ में दिये थे जिनमें से उन्होने 5-6 गांव न पिरोयतो को भी दिये जिनकी जमा 10 हजार से 15 हजार थी। 
इनके शासन गांव-
1. पूनाड़िया 2. ढोला का गांव 3. आकदड़ा 4. ढारिया
 5. चांचोड़ी 6. सूकरलाई

जागरवाल की कोई अलग से खांप नहीं है।

(4) पांचलोड पिरोयत:- पांचलोड जाति की कुलदेवी - चामुण्‍डा माता 

 ये भी राजगुरो के अनुसार आबू पहाड़ से अपनी उत्पत्ति मानते है और अपने को परासर ऋर्षि की औलाद में बताते है। इनकी भी कोई खांप नहीं है और इनका शासन गांव बागलोप परगने सिवाने में है।

(5) सीहा पिरोयत:- ये कहते है कि हम गौतम ऋषि की औलाद (संतान) है और पुष्करजी से मारवाड़ में आये हैं। इनकी खांपे -
1. सीहा 2. केवाणचा 3. हातला 4. राड़बड़ा 5. बोतिया

इनमें से केवाणचों के खडोकड़ा और आकरड़ा दो बड़े शासन गांव गोडवाड़ में राणाजी के दिये हुए है।

 (6) पल्लीवाल पिरोयत:- गुन्‍देशा व मुथा जाति की कुलदेवी - रोहिणी माता 

ये पल्लीवाल ब्राह्मणों में से निकले है जब पाली मुसलमानों के हाथो से बिगड़ी तो इनके बडेरे पिरोयतो के साथ सगपन करके उनके साथ शामिल हुए । इनकी खांपे -
1. गूंदेचा 2. मूंथा 3. चरख 4. गोटा 5. साथवा 6. नंदबाणा
7. नाणावाल 8. आगसेरिया 9. गोमतवाल 10. पोकरना 11. थाणक 12. बलवचा
13. बालचा 14. मोड 15. भगोरा 16. करमाणा 17 धमाणिया


      ये सिसोदियों के पिरोयत है क्योंकि परगने गोडवाड़ में अकसर गांव उदयपुर के महाराणा साहिब के बुजरगो के दिये हुए इनके पास हैं जिनमें गूंदेचा, मूंथो और बलवचों के पास तो एकजाई गांव बड़े-बड़े उपजाऊ के है। जिनमें गूंदेचा के पास मादा, बाड़वा और निम्बाड़ा, मूथों के पास पिलोवणी, घेनड़ी, भणदार, रूंगडी और शिवतलाब तथा बलवचो के पास पराखिया व पूराड़ा है।
इन शासन गांवो के बाबत एक अजीब बात सुनने में आई है कि राणा मोकलजी सिरोही से शादी करके चितौड़ जाते वक्त जब गोडवाड़ पहुंचे तो इन गांवो में से होकर गुजरे और गोडवाड़ का परगना सिरोही के इलाके और पश्चिम मेवाड़ से ज्यादा आबाद है जहां बारों महिने खेतो में पानी की नहरे जारी रहती है जिनसे खेत हमेशा हरे भरे दिखाई देते है और कोयले दरखतो पर कूका करती है और ये सब सामान उस मुसाफिर के लिए कि जो मारवाड़ ऊजड़ और बनजर रेगिस्तान से गोडवाड में आवे या मेवाड़ और सिरोही के खुश्क पहाड़ो से वहां गुजरे बहुत कुछ मोहित और प्रफुल्लित होने का हेतु होता है। देवड़ी रानी जिसने अपने बाप के राज में कभी यह बहार और शोभा नहीं देखी थी, इन गांवो की तर और ताजा हालत देखकर बहुत खुश हुई और वे दस पांच दिन उसके बहुत खुशी और दिल्लगी में गुजरे मगर जब गोडवाड के आगे मेवाड़ की पहाड़ी सरहद में सफर शुरू हुआ और वह शोभा फिर देखने में नहीं आई तो एक दिन उसने बड़े पछतावे के साथ राणाजी से कहा कि पिछे गांव तो बहुत अच्छे आये थे । अफसोस हे कि वे सब पीछे रह गये । राणाजी ने जबाब दिया कि जो मरजी हो तो उनको साथ लिजीये । राणाजी ने उसी वक्त पिरोयतो को बुला कर वे सब गांव संकल्प कर दिये और रानी से कहा कि अब ये गांव इस लोक और परलोक में हमारे तुम्हारे साथ रहेगे ।

 (7) सेवड़ पिरोयत:- सेवड जाति की कुलदेवी - बिसहस्‍त माता
       यह जोधा तथा सूंडा राठोडो इके पिरोयत है । इनका कथन है कि इनके पूर्वज गौड़ ब्राह्मण थे । इनके कथन के अनुसार इनके बडेरे देपाल कन्नोज से राव सियाजी के साथ आये थे। सियाजी ने इनको अपना पुरोहित बनाया और वे मारवाड के पिरोयतो में सगपन करके इस कौम में मिल गये ।
मारवाड़ में ज्यों ज्यों राठौड़ो का राज बढ़ता गया सेवड़ पिरोयतो को भी उसी तरह ज्यादा से ज्यादा शासन गांव मिलते रहे और उनकी औलाद भी राठौड़ो के अनुसार बहुत फैली । आज क्या जमीन, क्या आमदनी और क्या जनसंख्या में सेवड़ पिरोयत कुल पिरोयतो से बढ़े हुये है।
देपाल जी से कई पुश्त पीछे बसंतजी हुए । उनके दो बेटे बीजड़जी और बाहड़जी थे बीजड़जी मलीनाथ जी के पास रहते थे । कंरव जगमाल जी ने उनको बीच में देकर अपने काका जेतमाल जी को सिवाने से बुलाया और दगा से मार डाला । बीजड़जी इस बात से खेड़ छोड़कर बीरमजी के पास चले गये । राव चूंडाजी ने जब सम्वत् 1452 में मंडोर का राज लिया तो उनकी या उनके बेटे हरपाल को गेवां बागां और बड़ली वगैरा कई गांव मंडोर के पास-पास शान दिये। बाहड़जी के कूकड़जी के राजड़जी हुए जिनकी औलाद के शासन गांव साकड़िया और कोलू परगने शिव में है। हरपाल के पांच बेटे थे:-

1. रूद्राजी - इनके तीन बैटे खींदाजी, खींडाजी और कानाजी थे । खींदाजी के खेताजी, खेताजी के रायमल, रायमल के पीथा जी जिसकी औलाद में शासन गांव बड़ली परगने जोधपुर है। रायमल का बेटा उदयसिंघ था । उसके दो बेटे कूंभाजी और भारमल हुए । कूम्भाजी की औलाद का शासन गांव खाराबेरा परगने जोधपुर में और भारमल की औलाद का शासन गांव धोलेरया परगने जालौर में है।
खींडाजी की औलाद का शासन गांव टूकलिया परगने मेड़ता में है। कानाजी की औलाद में शासन गांव पाचलोडिया, चांवडया, प्रोतासणी और सिणया मेड़ता परगने के हैं।

2. दूसरा बेटा हरपाल का देदाजी, जिसकी औलाद के शासन गांव बावड़ी छोटी और बड़ी परगने फलौदी, ओसियां का बड़ा बास और बाड़ा परगने जोधपुर है।

3. तीसरा दामाजी । ये राव रिड़मलजी के साथ चितौड़ में रहते थे । जिस रात कि सीसोदियो ने रावजी को मारा और राव जोधाजी वहां से भागे तो उनका चाचा भीभी चूंडावत ऐसी गहरी नींद में सोया हुआ था कि उसको जगा-जगा कर थक गये मगर उसने तो करवट भी नहीं बदली । लाचार उसको वहीं सोता हुआ छोड़ गये । दामाजी भी उनके पास रहा । दूसरे दिन सीसोदियो ने भीम को पकड़ कर कतल करना चाहा तो दामाजी ने कई लाख रूपये देने का इकरार करके उसको छुड़ा दिया और आप उसकी जगह कैद में बैठ गये । कुछ दिनों पीछे जब सीसोदियो ने रूपये मांगे तो कह दिया कि मैं तो गरीब ब्राह्मण हूं । मेरे पास इतने रूपये कहा । यह सुनकर सीसोदियो ने दामाजी को छोड़ दिया। जोधाजी ने इस बंदगी में चैत बद 15 सम्वत् 1518 के दिन गयाजी में उनको बहुत बड़ा शासन दिया जिसकी आमदनी दस हजार रूपये से कम नहीं थी । दामाजी के जानशीन तिंवरी के पुरोहितजी कहलाते हैं। गांव तिंवरी जोधपुर परगने के बड़े-बड़े गांवो में से एक नामी गांव नौ कोस की तरफ है।

दामाजी पिरोयतो में बहुत नामी हुए हैं और उनकी औलाद भी बहुत फैली कि एक लाख दमाणी कहे जाते हैं । यानि एक लाख मर्द औरत बीकानेर, मारवाड़, ईडर, किशनगढ़ और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतों में सन् 1891 तक थे । इनके फैलाव की हद उत्‍तर की तरफ गांव नेरी इलाके बीकानेर जाकर खत्म होती है और यही पिरोयतो के सगपन की भी हद थी जिसके वास्ते मारवाड़ में यह औखाणा मशहूर है ‘‘गई नैरी सो पाछी नहीं आई बैरी’’ यानि जो औरत नैरी में ब्याही गई फिर वह पाछी नहीं आई क्योंकि जोधपुर से सौ डेढ़ सौ कोस का फासिला है और इसी वजह से पिरोयतो की औरतों में ढ़ीट लड़कियों को नैरी में ब्याहने की एक धमकी है। वे कही है कि तू जो कहना नहीं करती है तो तुझको नैरी में निकालूंगी कि फिर पीछी नहीं आ सके ।
दामाजी के छः बेटे थे!

1. नाडाजी (ना औलाद) जिसने जोधपुर के पास नाडेलाव तालाब बनाया ।

2. बीसाजी । इन्होंने बीसोलाव तालाब खुदाया था । इसका बेटा कूंपाजी और कूंपाजी के तीन बेटे, केसूजी, भोजाजी, और मूलराज जी । केसोजी की औलाद में शासन गांव घटयाला परगने शेरगढ़ है। भोजाजी की औलाद में शासन गांव तालकिया परगना जेतारण है। मूलराज जी ने मूलनायक जी का मन्दिर जोधपुर में और एक बड़ा कोट गांव भैसेर में बनवाया जिससे वह भैसेर कोटवाली कहलाता है। इनके बेटे पदम जी के कल्याणसिंघ जी जिन्होने तिंवरी में रहना माना । इनके बड़े बेटे रामसिंघ, उनके मनोहरदास, उनके दलपतजी थे । ये बैशाख बद 9 सम्वत् 1714 को उज्जैन की लड़ाई में काम आये जो शहजादे औरंगजेब और महाराजा श्री जसवंत सिंह जी में हुई थी । दलपतजी के अखेराज महाराज श्री अजीतसिंह जी के त्रिके में हाजिर रहे ।
अखेराज के सूरजमल, उनके रूपसिंघ, उनके कल्याणसिंघ, उनके महासिंघ (खोले आये) महासिंघ के दोलतसिंघ, दोलतसिंघ के गुमानसिंह जो आसोज सुदी 8 सं. 1872 को आयस देवनाथ जी के साथ किले जोधपुर में नवाब मीरखांजी के आदमियों के हाथ से काम आये, उनके नत्थूसिंघ, उनके अनाड़सिंघ उनके भैरूसिंघ उनके हणवतसिंघ जो अब तिंवरी के पिरोयत है। इनका जन्म सं. 1923 का है। दूसरे बेटे अखेराज के केसरीसिंघ जो अहमदाबाद की लड़ाई में काम आये। इनके दो बेटे प्रताप सिंह, अनोपसिंघ थे । प्रतापसिंघ की औलाद का शासन गांव खेड़ापा परगने जोधपुर है जहां रामस्नेही का गुरूद्वारा है। अनोपसिंह की औलाद का शासन गांव दून्याड़ी परगने नागौर है। तीसरे बेटे अखेराज के जयसिंघ की औलाद का शासन गांव जाटियावास परगने बीलाड़ा है। चौथे बेटे महासिंघ के चार बेटे सूरतसिंह, संगरामसिंह, लालसिंह, चैनसिह की औलाद का शासन गांव खीचोंद परगना फलोदी है। पांचवे बेटे विजयराज के बड़े बेटे सरदार सिंघ की आलौद का शासन भेंसेर कोतवाली दूसरे बेटे राजसिंह की औलाद का भेंसेर कूतरी परगने जोधपुर, तीसरे और चौथे बेटे जीवराज और बिशन सिंह की औलाद का आधा-आधा गांव भावड़ा परगने नागौर शासन है। छटा बेटा महासिंघ का तेजसिंह सूरजमल के खोले गया, सातवें बेटे फतहसिंघ का छटा बंट गांव भावड़ा में है।
कल्याणसिंह के दूसरे बेटे गोयंददास जी औलाद का शासन गांव ढडोरा परगने जोधपुर और तीसरे बेटे रायभान की औलाद का शासन गांव भटनोका परगने नागौर है।
मूलराज के दूसरे बेटे महेसदास की औलाद का शासन गावं चाड़वास परगने सोजनत में है तीसरे बेटे छताजी की औलाद का शासन गांव धूड़यासणी परगने सोजत में हैं चौथे रायसल का मालपुरया पगरने जेतारण परगने में हैं छोटे भानीदास का गांव भेाजासर बीकानेर में है।

3. तीसरा बेटा दामाजी का ऊदाजी जिसकी औलाद के शासन गांव बिगवी और थोब परगने जोधपुर में है।

4. चौथा बेटा दामाजी का बिज्जाजी जिसकी औलाद में शासन गांव घेवड़ा परगने जोधपुर, रूपावास परगने सोजत और मोराई परगने जैतारण है।

5. दामाजी का पांचवा पुत्र पिरोयत विक्रमसी यह जोधपुर के राव जोधाजी के कंवर बीकाजी के साथ 01 अक्टूबर 1468 को जोधपुर से (बीकानेर) नये राज्य को जीतने के लिए रवाना हुए इनका वंश अपनी वीरता एवं शोर्य के लिए रियासत बीकानेर के स्तम्भ रहे और इनको पट्टे में मिले गांव इस रियासत में है। विक्रमसी का पुत्र देवीदास 29 जून 1526 को जैसलमेर में सिंध के नवाब से युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए इनको इस वीरता एवं जैसलमेर पर अधिकार करने के फलस्वरूप गांव तोलियासर एवं 12 अन्य गांव पट्टे में मिले एवं पुरोहिताई पदवी मिली । देवीदास के पुत्र लक्ष्मीदास 12 मार्च 1542 को जोधपुर के राव मालदेव के बीच युद्ध में काम आये बड़े पुत्र किशनदास को उनकी वीरता के लिए थोरी खेड़ा गांव पटटे में मिला जिनके पोते मनोहर दास ने इस गांव का नाम किसनासर रखा। किसनदास के पुत्र हरिदास ने हियादेसर बसाया । सूरसिंह के गद्दी पर बैठने के बाद तोलियासर के पुरोहित मान महेश की जागीर जब्त करली इसके विरोध में मान महेश ने गढ़ के समाने अग्नि में आत्मदाह कर लिया जहां अब सूरसागर है इसके बाद से तोलियासर के पुरोहितो से पुरोहिताई पदवी निकल गई लगभग 1613 में यह पदवी कल्याणपुर के पुरोहितो को मिली । हरिदास के लिखमीदास व इनके गोपालदास व इनके पसूराम जी हुए इनके पुत्र कानजी को आठ गांव संवाई बड़ी, कल्याणपुर, आडसर, धीरदेसर, कोटड़ी, रासीसर, दैसलसर और साजनसर पट्टे में मिले इनके सात पुत्रों का वंश अब भी इन गांवो में है। बीकानेर राज्य के इतिहास में सन् 1739 में जगराम जी, सन् 1753 में रणछोड़ दास जी, सन् 1756 में जगरूप जी, सन् 1768 में ज्ञान जी सन् 1807 में जवान जी, सन् 1816 में जेठमल जी, सन् 1818 में गंगाराम जी व सन् 1855 में प्रेमजी व चिमनराम का जीवन वीरता एवं शौर्य के लिए प्रसिद्ध रहा है। कल्याणपुर के टिकाई पुरोहित शिवनाथ सिंह जी के इन्तकाल के बाद पुत्र भैरूसिंह जी की रियासत से नाराजगी के बाद से यह पदवी कोटड़ी गांव के पुरोहित हमीरसिंह जी को मिली । इसके बाद इनके बड़े पुत्र मोतीसिंह जी व उसके बाद स्व. मोतीसिंह जी के बड़े पुत्र श्री भंवरसिंह टिकाई है।

6. दादोजी का छटा पुत्र देवनदास जिसके बड़े बेटे फल्लाजी का शासन गांव नहरवा दूसरे बेटे रामदेव का पापासणी परगने जोधपुर में है फल्ला ने फल्लूसर तलाब बनाया जिसको फज्जूसर भी कहते है।

      मारवाड़ एवं थली के अलावा किशनगढ़, ईडर, अहमदनगर और रतलाम वगैरा राठोड़ रियासतो में भी सेवड़ पिरोयतो के शासन गांव है।
सेवड़ो की तीन खांपे हैं
1- अखराजोत 2. मालावत 3. कानोत अखराजोत वंश के पास जोधपुर जिले के तिंवरी ग्राम में आठ कोटड़ियां है। मालावतो के पास पाली, सोजत और जेतारण में गांव है कानोतो के गांव थली में है।

(8) सोढ़ा पिरोयत:- सोढा जाति की कुलदेवी - चक्रेश्‍वरी देवी

ये अपने मूल पुरूष सोढ़ल के नाम से सोढ़ा कहलाते हैं। इनके बडेरे भी देपाल की तरह दलहर कन्नोज से राव सियाजी के साथ आये थे दलहर के बेटे पेथड़ को राव धूड़जी ने गांव त्रिसींगड़ी जो अब परगने पचभद्दरे में है शासन दिया था इसके वंश वाले रासल मलीनाथ जी और जैतमाल जी की औलाद महेचा और धवेचा राठोड़ो के पुरोहित हैं और इनके शासन गांव जियादातर इन्हीं खांपो के दिये हुए मालाणी सिवाणों और शिव वगैरा परगने में है।

 (9) दूधा पिरोयत:- ये श्रीमाली ब्राह्मणों में से निकले हैं इनका बडेरा केसर जी श्रीमाली का बेटा दूधाजी चितौड़ के राणा मोकलजी ने उन्हे गैर इलाको से घोड़े खरीद कर लाने के लिए बाहर भेज दिया था । घोड़े खरीदने पर अपनी नियुक्ति स्वीकार करने के अपराध में मारवाड़ ब्राह्मणों ने उन्हे जाति च्युत कर दिया और ये सब रिश्तेदारो सहित पिरोयतो में मिल गये । इस खां में कोई बड़ा शासन गांव नहीं है इनकी मुख्य खांपे 17 हैं।

 (10) रायगुर पिरोयत :- रायगुर जाति की कुलदेवी - आशापुरा माता

ये सोनगरे चौहानो के पुरोहित हैं। इनका बयान है कि जालोर के रावे कानड़देव के राज में अजमाल सोनग्रा राजगुर पिरोयत हरराज के खोले चला गया उसकी औलाद रायुगर कहलायी । इनके शासन गांव ढाबर, पुनायता परगने पाली, साकरणा परगने जालोर और पातावा परगने वाली है।

 11) मनणा पिरोयत:- मनणा जाति की कुलदेवी -
चामुण्‍डा (जोगमाया)
इनके पूर्वज गोयल राजपूत का गुरू था किसी कारण वंश पिरोयतों में मिल गये । इनके शासन गांव मनणों की बासणी सरबड़ी का बास और कालोड़ी वगैरा है।

 (12) महीवाल:- ये पंवार राजपूतो से पिरोयत बने है। 

 (13) भंवरिया:-ये आदगोड ब्राह्मणों से निकले है पूर्वकाल में यह रावलोत भाटी राजपूतो के पुरोहित थे जब देराबर का राज भाटियों से छूटा तो इनकी पिरोताई भी जाती रही । इनका शासन गांव कालोट परगना मालानी में है।

पुस्तकालयाध्यक्ष
राजस्थान राज्य अभिलेखागार
बीकानेर।


जोशी जाति की कुलदेवी - क्षेमंकारी माता पांचलोड जाति की कुलदेवी - चामुण्‍डा माता

रिदुआ जाति की कुलदेवी - सुन्‍धा माता सेपाउ जाति की कुलदेवी - हिगंलाज माता

उदेश जाति की कुलदेवी - मम्‍माई माता व्‍यास जाति की कुलदेवी - महालक्ष्‍मी माता


राजपुरोहित: संक्षिप्त वंश परिचय

 प्रस्तावना:- पुरातनकाल में आर्यो ने कार्य के आधार पर चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र तथा चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं सन्यास का निर्माण किया । इसके साथ ही संयुक्त परिवार प्रथा आरम्भ हो गई । ऋग्वेद के अनुसार राजनीति एवं जाति विस्तार संयुक्त परिवार की ही देन है। जाति विस्तार के कारण अलग-अलग राज्यों की स्थापना की आवश्यकता हुई एवं ‘‘राजा’’ पद का सृजन हुआ, साथ ही राज्य प्रशासन, सैनिक, धार्मिक नियम पथ प्रदर्शक व राजा के मार्गदर्शन एवं उस पर अंकुश रखने हेतु ‘‘राजपुरोहित’’ अथवा ‘‘राजगुरू पुरोहित’’ पद भी महाऋषियों में से सृजित किया गया जो कि अत्यन्त ही महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली था क्योंकि राजपुरोहित ही सर्वसम्मति से राजा का चयन करता था।

वंश परिचय:- 1600 ई. म.से. पूर्व अर्थात् 4500-5000 साल पूर्व

समस्त महाऋषियों, मुनियों में से सर्वश्रेष्ठ, पराक्रमी, उच्च प्रगाढ़ राजनीतिज्ञ, उच्च चरित्रवान, प्रतिज्ञ, निष्ठावान, त्यागी, दूरदर्शी, दयावान, प्रशासन, निपुण, प्रजापालक, सामाजिक व्यवस्थापक, अस्त्र- शस्त्र, युद्ध विद्या, रणकौशल, धनुर्विधा, वेदों व धार्मिक विद्याओं का ज्ञाता इत्यादि सर्व विषयों के विशिष्ट ज्ञाता को ही - ‘‘राजपुरोहित’’ अथवा ‘‘राजगुरू पुरोहित’’ चुना जाता था । योग्य एवं उचित परायण न होने पर राजपुरोहित को भी सर्वसम्मति एवं प्रजा की राय से पदच्युत कर दिया जाता था । उदाहरणतः रावी तट पर स्थित उतर पांचाल राज्य के राजा सुदास द्वारा ऋषिगण के विचार एवं आग्रह से विश्वामित्र को हटाकर उनके स्थान पर वशिष्ठ को यह पद सौंपा गया । इस प्रकार राजा एवं राजपुरोहित योग्य होने पर ही स्थाई होते थे अन्यथा उन पर ऋषिगण सभा द्वारा पुनः विचार किया जाता था ।
वैदिक काल में राजगुरू पुरोहित पद पर चुने गये ऋषिगण में से बृहस्पति (जो देवताओं के राजपुरोहित थे) एवं इसी वंश में ऋषि भारद्वाज, द्रोणाचार्य, वशिष्ठ, आत्रैय, विश्वामित्र, धौम्य, पीपलाद, गौतम, उद्धालिक, कश्यप, शांडिल्य, पाराशर, परशुराम, जन्मदाग्नि, कृपाचार्य, चाणक्य आदि मुख्य है। कालान्तर में इन्हीं ऋषि मुनियो के वंश विभिन्न गौत्रों, खांपो, जातियो एवं उप-जातियों के क्षत्रियों के राजपुरोहित होते गुए जिनमें सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, यदुवंशी - राठौड़, परमार, सोलंकी, चौहान, गहलोत, गोयल, भाटी आदि मुख्य रूप से है। भाटियों के राजगुरू पुष्करणा ब्राह्मण है। आगे चलकर वंशानुगत रूप से परम्परानुसार राजपूत एवं राजपुरोहित होते गए तथा सुदृढ़ समाज एवं जातियां बन गई । वर्तमान में जो राजपुरोहित है, इन गोत्रो में से अलग-अलग जातियों व उप जातियों में विद्यमान है (जोधपुर, बीकानेर संभाग में सघन केन्द्रित) । इसी प्रकार क्षत्रिय भी अलग-अलग जातियों, उपजातियों एवं खापों में राजपूत नाम से विख्यात है।

वैदिक काल के अनुसार -
‘‘वय राष्ट्रं जाग्रयाम् (रा.गु.) पुरोहितः’’
.....(यर्जुवैद - 1-23)

अर्थात् हम (राजगुरू पुरोहित) राष्ट्र को जगाने वाले है। लोगों में (प्रमुखतः क्षत्रियों में) राष्ट्रभावना, देशभक्ति एवं मातृभूमि हेतु बलिदान देने के लिये कर्तव्यपालन की भावना जागृत करते है। इसलिये राजगुरू अर्थात् राजा का (समस्त विषयों का विशेषज्ञ) शिक्षक है।
सर्वगुण सम्पन्न राजपुरोहित का शनैः शनैः राज्य का सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हो जाना स्वाभाविक ही था। शुक्राचार्य ने कहा है -

‘पुरोधा प्रथम श्रेष्ठ, सर्वभ्यौ राजा राष्ट्र भक्त ।
आदु धर्म राज प्रौहितां, रणजग्य अरूं राजनित।।
अस्त्र शस्त्र जुध सिख्या, राजधर्म, राजप्रौहित।
धर्म्मज्ञः राजनीतिज्ञः षोड्स कर्मे धुरन्धरः
सर्व राष्ट्र हितोवक्ता सोच्यतै राजपुरोहितः।।
(शु.नि. 2/47 2/264)
मंत्रानुष्ठान संपन्न स्त्रिविद्या कर्म तत्परः ।
जितेन्द्रियों जितक्रोधो, लोभ मोह विजियतैः।।
षडंग वित्सांग, धनुर्वेद विचारार्थ धर्मवितः।
यत्कोप भीत्या राजर्षि धर्मनीति रतो भवते ।
नीति शास्त्रास्त्र, व्यूहादि कुशलस्तु (राज) पुरोहितः।
सेवाचार्यः पुरोधाय शायानुग्रहौ क्षमः।।
(शु.नि. 77, 78, 79)
धर्मज्ञ राजनीतिज्ञ शौडष कर्म्मधुरन्धर ।
सर्वराष्ट्र हितोवक्ता सोच्यते राजपुरोहितः।।
वेद वेदांग तत्वज्ञो जय होम परायणः ।
क्षमा शुभ वचोयुक्त एवं राजपुरोहितः।।

उपरोक्त श्लोको में राजपुरोहित के गुण, धर्म, योग्यता व कर्तव्य का भलीभांति वर्णन है । यथा धार्मिक विद्या, राजनीति, धनुर्विधा, राष्ट्रहित, समस्त धार्मिक उत्सव आयोजन, कर्तव्यपरायण, राज्यमंत्रणा एवं राजसंचालन, रणकौशल व्यूहरचना, प्रजापालन इत्यादि राज्य के समस्त कार्यो की जिम्मेवारी के साथ-साथ राज परिवार में सद्भावना, राजपुरोहित बनाए रखता था । यही कारण था कि तत्कालीन राज्य अच्छे चलते थे ।
एक राजपुरोहित कभी भी कर्म से ब्राह्मण नहीं रहा । वह मात्र वंश से ब्राह्मण है। यथा एक ब्राह्मण राजपुरोहित अवश्य रहा है। ब्राह्मण के लिये राज्य में कोई उत्तरदायित्व नहीं होता चाहे राज्याधिपति कोई हो उसे अपने ब्राह्मणत्व से सरोकार रहता था जबकि एक राजपुरोहित पर सम्पूर्ण राज्य की जिम्मेवारी रहती थी । उसे प्रतिक्षण राज्य, प्रजा, राजा व राज्य परिवार की जिम्मेवारी रहती थी । उसे प्रतिक्षण राज्य, प्रजा, राजा व राज्य परिवार के बारे में चिन्ति रहना पड़ता था। पुरातन वैदिक काल में राजपुरोहित राज्य का मुख्य पदाधिकारी व प्रमुख मंत्री होता था । न्याय करने में राजा के साथ उसकी भागीदारी होती थी। साधारण पुरोहित, राजपुरोहित से सर्वथा भिन्न रहा । राजपुरोहित, राज्यमंत्री, शिक्षक, उपदेशक, पथ-प्रदर्शक होता था । धार्मिक एवं राजनीतिक मामलो का प्रमुख होता था । वह राजा के साथ युद्ध भूमि में जाता था एवं युद्ध में राजा को उचित सलाह एंव धैर्य देता था । वह स्वयं योद्धा एवं गोपनीय व्यक्ति होता था । वह पथ प्रदर्शक, दार्शनिक एवं मित्र के रूप में राजा का सहयोग करता था । वह राज्य की राजनीति में भाग लेता था । इस प्रकार उस समय राजपुरोहित, प्रत्येक राज्य का सर्वश्रेष्ठ, प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण व्यक्ति होता था।

 अर्द्धपतन - कालान्तर में बाहरी हमलावरो के सतत आक्रमण एवं उनके द्वारा राष्ट्र शासन करने के कारण बाहरी प्रभाव, भारत की संस्कृति पर भी पड़ा । परिणाम स्वरूप राजपुरोहित का पतन होना आरम्भ हो गया । राजपुरोहित की सलाह से राजा का चयन, उसका मंत्रिमंडल एवं राज्य में सर्वोच्‍च स्थान समाप्त हो गया एवं राजनीति में भी उसका प्रभाव कम हो गया । पूर्व की भांति अब उसका सम्मान नहीं रहा । राज्यमंत्रणा में भी उसकी भागीदारी विशेष अवसरो के अलावा नहीं रह गई थी । हां, वह युद्धो में भाग अवश्य लेता रहा ।

पूर्ण पतन - भारत में अंग्रेजी के आगमन के पश्चात् राजपुरोहितो का पूर्णतया पतन हो गया । उनका महत्व सामाजिक एवं धार्मिक कर्तव्यों तक सीमित रह गया । यद्यपि राज्य सेवाओं, युद्धों आदि में उनका योगदान अवश्य रहा । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग देने से प्रभावशाली राजपुरोहितो को अंग्रेजो ने पूर्णतया दबाया या नष्ट कर दिया जिनमें शिवराम राजगुरू, देवीसिंह रतलाम आदि प्रमुख है। 

 जीवन स्तर -पुरातन काल में राजपुरोहित सभी प्रकार से सर्वश्रेष्ठ था किन्तु मध्यकाल में राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ गया । यद्यपि उनके पास जागीरे थी जिससे जीवनयापन कर रहे थे । अंग्रेजो के आने के पश्चात् पतन हो गया । हां, कुछ शिक्षित अवश्य हुए किन्तु राज्य सता में उनका महत्व घट गया ।

जोधपुर राज्य से मिले कुरब-कायदा-सम्मान -
राजपुरोहित को समय-समय पर उनके शौर्यपूर्ण कार्य एवं बलिदान के एवज में सम्मानित किया जाता था जिनका विवरण इस प्रकार है -
1. बांह पसाव, 2.हाथ रौ कुरब 3. उठण रौ कुरब,
4. बैठण रौ कुरब, 5.पालकी, 6. मय सवारी सिरै डोढ़ी जावण रौ
7. खिड़किया पाग, 8.डावो लपेटो 9. दोवड़ी ताजीम
10. पत्र में सोनो 11.ठाकुर कह बतलावण रौ कुरब

दरबार में राजपुरोहित के बैठने का स्थान छठा था । सातवां स्थान चारण का था । ये दोनो दोवड़ी, ताजीमी सरदारों में ओहदेदार गिने जाते थे । राजपुरोहित के दरबार में आने-जाने पर महाराजा दरबार एवं गुरू पदवी दोनो तरीको से अभिवादन मिलना होता था ।

 राजपुरोहित के कार्य -
1. प्राचीन काल - प्राचीन काल में राजपुरोहित राजा का प्रतिनिधि होता था । राजा की अनुपस्थिति में राजकार्य राजपुरोहित द्वारा सम्पन्न होता था । वह राज्य का प्रमुख मंत्री होता था । राजा का चयन राजपुरोहित की सलाह से होता था । न्याय- दण्ड में वह राजा का निजी सलाहकार होता था । राजा को अस्त्र-शस्त्र, युद्धविद्या, राजनीति, राज्य प्रशासन आदि की सम्पूर्ण शिक्षा राजपुरोहित देता था । जैसे गुरू द्रोणाचार्य, वशिष्ठ । समय-समय पर राज्य के धार्मिक उत्सव व यज्ञ आदि का आयोजन करवाता था । इसके लिए दूसरे पण्डित वैद्य दानादि कर्मकाण्डी ब्राह्मण नियुक्त करता था अर्थात् धार्मिक मामलो का प्रमुख मंत्री था ।
राज्याभिषेक आयोजन कर राजा का चयन करवाकर राज्याभिषेक करवाता, स्वयं के रक्त से राजा का तिलक करता, कमर में तलवार, बांधता, राजा को उचित उपदेश देता एवं उसकी कमर में प्रहार करके कहा कि राजा भी दण्ड से मुक्त नहीं होता है।
वह राजा का पथ प्रदर्शक, दार्शनिक, शिक्षक, मित्र के रूप में राजा को कदम-कदम पर कार्यो में सहयोग करता था।
वह युद्धो में राजा के साथ बराबर भाग लेता व जीत के लिए उत्साह, प्रार्थना आदि से सेना व राजा को उत्साहित करता। वह स्वयं भी युद्ध करता । वह एक वीर योद्धा तथा समस्त विषयों को शिक्षक होता था । युद्ध के समय, सेना व शस्त्रादि तैयार करवाना शत्रु की गतिविधियों का ध्यान रखना इत्यादि राजपुरोहित के कार्य थे ।
राजा तथा प्रजा व मन्त्रिमंडल में सौहार्द्धपूर्ण कार्य करवाता था। राजपरिवार की सुरक्षा, राजकुमार व राजकुमारियों के विवाहादि तथा राज्य का कोई आदेश, अध्यादेश उसकी सहमति अथवा उसके द्वारा होता था । राजपुरोहित एक राष्ट्र निर्माता होता था।

 2. मध्यकाल - बाहरी हमलावरो के आक्रमण के परिणाम स्वरूप राजपुरोहित का पतन होना आरम्भ हो गया। अब राजा का चयन एवं राज्य के कार्य उसके पास से जाते रहे । राजनीति में भी वह पूर्व की भांति नहीं रहा । अन्य कार्य यथा सामाजिक, धार्मिक युद्धों में भाग लेना, रनवास की सुरक्षा व सुविधा का ध्यान रखना यथावत रहे । अस्त्र-शस्त्र सैन्य शिक्षा देना बन्द हो गया ।

 3. आधुनिक काल - भारत में अंग्रेजो के राज्य होने के पश्चात् राजपुरोहितो के कार्यो में एकदम बदलाव आया और वे सामाजिक व धार्मिक कार्यो तक सीमित रहने लगे । दरबार में राजपुरोहित का पद यथावत रहा । राजपुरोहित सामाजिक, धार्मिक कार्यो, त्यौहारो, उत्सवों में महाराजा की अनुपस्थिति में प्रतिनिधित्व करता । महाराजा के युद्ध में जाने तथा वापस लौटने, विवाह, त्यौहार, जन्मदिन आदि पर राजपुरोहित शुभाशीर्वाद देता । लौटने पर राजपुरोहित ही सर्वप्रथम आरती, तिलक कर राजा का स्वागत करता । राजा के बाहर से लम्बी यात्रा व अन्य कार्य शिकार आदि से लौटने पर भी सर्वप्रथम राजपुरोहित स्वागत करता (आरती तिलक नहीं)।

 अभिवादन - राजपुरोहित का सामान्य अभिवादन ‘‘जय श्री रघुनाथ जी की’’ है कहीं-कहीं (मालानी आदि क्षेत्र में) - ‘‘मुजरो सा’’ अभिवादन भी प्रचलित है। राजपूतो से मिलने पर ‘‘जयश्री’’ करने का भी रिवाज है। याचको से ‘‘जय श्री रघुनाथ जी’’ व जय माताजी की’’ करने का रिवाज रहा है।
राज्य में कुरब के हिसाब से मिलान होता था और राजपुरोहित की हैसियत से भी मिलना होता था ।

 ठिकाणा व जागीरी स्थिति - पुरातन समय में तो राजपुरोहित राज्य का सर्वाेच्च एवं सर्वश्रेष्ठ अधिकारी होता था । मध्यकाल में युद्धो में भाग लेने, वीरगति पाने तथा उत्कृष्ठ एवं शौर्य पूर्ण कार्य कर मातृभूमि व स्वामिभक्ति निभाने वालो को अलग-अलग प्रकार की जागीर दी जाती थी । इसमें राजपूत, राजपुरोहित व चारण सामानान्तर वर्ग थे । प्रमुख ताजीमें निम्न थी -
1. दोवड़ी ताजीम 2. एकवड़ी ताजीम 3. आडा शासण जागीर (क) इडाणी परदे वाले (ख) बिना इडाणी परदे वाले 4. भोमिया डोलीदार (क) राजपूतो में भोमिया कहलाते (ख) राजपुरोहितो एवं चारणो में डोलीदार कहलाते ।

राजपूत साधारण जागीरदार, राजपुरोहित व चारण को सांसण (शुल्क माफ) जागदीरदार कहलाते थे । राजपुरोहितो के याचक - राव, भाट, दमामी, पंडे, ढोली आदि थे । इसके अलावा दूसरी कमीण कारू हींडागर कौम भी रही है।
रस्म रिवाज -

समस्त रस्मोरिवाज विवाह, गर्मी, तीज-त्यौहार, रहन-सहन, पहनावा इत्यादि राजपूतो व चारणो के समान ही है।

 खान-पान -
पूर्णतया शाकाहारी हैशराब का सेवन नहीं होता अवसरो इत्यादि पर अफीम सेवन का प्रचलन रहा है एवं अभी भी है। 
इस प्रकार राजपुरोहित एक अत्यन्त ही प्रभावशाली एवं महत्वपूर्ण समाज रहा है । शब्दकोष के अनुसार ‘‘राजपुरोहित’’ शब्द का अर्थ इस प्रकार है - राजपुरोहित -पुरातन काल में क्षत्रिय राजाओं सम्राटो को अस्त्र-शस्त्र युद्ध विद्या, राजनीति, धर्मनीति एवं चारित्रिक राज्य,समाज की शिक्षा देने वाली पुरातन वीर जाति है।

राजपुरोहित - वर्तमान स्थिति -
बदलते युग के थपेड़ो के बीच राजपुरोहित की गौरव गाथा मात्र ऐतिहासिक घटनाओं पर रह गई है। वर्तमान समय में राजपुरोहितो की स्थिति दयनीय नहीं तो अच्छी भी नहीं कही जा सकती । सामाजिक, राजनीति एवं शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा समाज है। अल्प संख्यक है। राजकीय सेवा में भी अत्यन्त कम है। निजी व्यवसाय एवं खेती पर निर्भर रह गया है। तीनो सशस्त्र सेनाओं एवं सुरक्षाकर्मियों में अवसर प्राप्त हो जाते है। देशभक्त एवं वफादार समाज है।
 
उपसंहार - स्पष्ट है कि पुरातन एवं मध्यकाल में चारणो, राजपुरोहितो एवं क्षत्रियो (राजपूतो) का चोलीदामन का प्रगाढ़ रिश्ता रहा है। सांस्कृति दृष्टि (रीति-रिवाजो) से ये कभी भिन्न नहीं हो सकते । एक दूसरे के अभिन्न अंग की तरह है। इतिहास साक्षी है - पुरातन समय में राजपुरोहितो ने क्षत्रियों को अस्त्र-शस्त्र, रणकौशल, राजनीति, धर्मनीति, राज्य संचालन, प्रजापालन, धर्म, चरित्र आदि की शिक्षा दी थी । जैसे द्रोणाचार्य ने पाण्डवो को, वशिष्ठ ने दशरथ के राजकुमारो को । चारणों ने समय-समय पर उन्हे कर्तव्यपालन हेतु उत्साहित किया । उन्होने काव्य में विड़द का धन्यवाद दिया एवं त्रुटियों पर राजाओं को मुंह पर सत्य सुनाकर पुनः मर्यादा एवं कर्तव्यपालन का बोध कराया । किन्तु समय के दबले करवटों के पश्चात् अंग्रेजी शासन के बाद ऐसा कुछ नहीं रहा एवं धीरे-धीरे मिटता गया ।
संदर्भ -
1. प्राचीन भारतीय इतिहास - डॉ. वी. एस. भार्गव (पृ. सं. 41, 42, 58, 66-73)
2. प्राचीन भार - जी. पी. मेहता (पृ. सं. 26, 30, 31, 44, 46)
3. भारतीय संस्कृति का विकास क्रम - एम. एल. माण्डोत (पृ. सं. 18-20)
4. अर्थशास्त्र-कौटिल्य (चाणक्य) (पृ. सं. 1-9)
5. प्राचीन कालीन भारत (पृ. सं. 71, 72, 77, 285, 259)
6. प्राचीन भारत - वैदिक काल (पृ. सं. 78, 79)
7. राजपुरोहित जाति का इतिहास-भाग-12 - प्रहलाद सिंह (पृ. सं. 1-13)
8. तिंवरी ठिकाणे के कागज तथा मुन्नालालजी का लेख

प्रहलाद सिंह राजपुरोहित
‘‘अखेराजोत’’
संस्था-उपाध्यक्ष (आजीवन)
राजपुरोहित शोध संस्थान तिंवरी, मुख्यालय-434
 एम.एम. कॉलोनी, पाल रोड़, जोधपुर।


राजपुरोहितो की पहचान ‘‘जय श्री रघुनाथ जी’’

जब दो राजपुरोहित मिलते हैं, तो एक-दूसरे का अभिवादन ‘‘ जय श्री रघुनाथ जी’’ कहकर करते है। इससे मन में यह प्रतिक्रिया जाग्रत होती है कि जय श्री रघुनाथ जी ही क्यों कहा जाता है। अतः हमें इसके बारे में कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए।
स्वर्णयुग में सूर्यवंश में एक महान् प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट महाराज रघु हुए थे । महाराज रघु वैष्णव धर्म के अनुयायी तथा भगवान विष्णु के परम भक्त थे । महाराज रघु की कीर्ति तीनों लोकों में व्याप्त थी । महाराज रघु के नाम पर इनके कुल का नाम रघुकुल भी पड़ा । इस कुल में स्वयं भगवान रामचन्द्र जी ने अवतार लिया । महाराज रघु द्वारा भगवान विष्णु की घोर अराधना के आधार पर भगवान श्री हरी विष्णु का एक नाम रघु के नाथ (रघुनाथ) भी पड़ा । जब हम रघुनाथ का नाम संबोधन में प्रयुक्त करते हैं तो हम उसी प्राण पुरूषोतम ब्रह्मपरमात्मा सृष्टि के पालनकर्ता श्री विष्णु की जयघोषण करते है।
       वैसे सम्बोधन किसी भी प्रकार से किया जा सकता है परन्तु प्रचलन का एक अलग ही महत्व होता है। इसी कारण आपसे कोई राजपुरोहित बन्धु ‘‘जय श्री रघुनाथ जी की’’ कहे तो आप तुरन्त समझ जायेगे कि वह व्यक्ति राजपुरोहित है। यही इसी सम्बोधन में निहित सार है।

 साभार (आभार) 
दुर्जनसिह राजपुरोहित 
गांव :- माहबार
www.durjansinghrajpurohit.blogspot.in

राजपुरोहित समाज के सभी बंधुओं को जय श्री रघुनाथजी री,
जय ब्रह्माजी री, जय दाता री सा! 

 सवाई सिंह राजपुरोहित (सदस्य) 
   सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया जोधपुर
-----------------------------------
  आपका साथ और हमारा प्रयास.. 
सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया जोधपुर
---------------------
कृपया अपने विचार जरुर लिख..
कोई सुझाव देना चाहते है! तो हमसे संपर्क करे!
हमारा ई-मेल पता है :- sawaisinghraj007@gmail.कॉम

159 comments:

  1. अच्छा है भाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. Shree gour Rajpurohito ke bare me bhi btana hukm

      Delete
  2. आपकी अनुपम उत्कृष्ट अभिव्यक्ति को शत शत प्रणाम.

    ReplyDelete
  3. आपने एक अच्छी जानकारी हमें दी, इसके लिए आपको धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. Aap log kis caste mein aate hai Bhai Brahman

      Delete
    2. No hmari caste hi Rajpurohit he

      Delete
  4. राजपुरोहित समाज की जानकारी बहुत अच्छी लिखी है!

    ReplyDelete
  5. सम्पूर्ण राजपुरोहित समाज का इतिहास, समाज के बारे में जानकारी इसके लिए आपको धन्यवाद

    ReplyDelete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. आप सब का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी!
    हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!

    ReplyDelete
    Replies
    1. dhanywad sawai ji

      Delete
    2. Audisha kul kha gya app ko pata nhi hai kya gurumharaj ji ke bhareji

      Delete
  8. समाज के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई...

    ReplyDelete
  9. samajik janksri se hi sudradh samaj banta hai. aj ki yuva pidhi ko yesa gyan or bhi milta rahe.. . . muje ye rajpurohit samaj ka itihas padkar bahut si jankari mili hai... [mohan v.raygar]

    ReplyDelete
  10. so good sawai singh

    ReplyDelete
  11. JAY GURUMAHARAJ RI SA HUKM
    \

    ReplyDelete
  12. JAY GURUMAHARAJ RI SA......

    ReplyDelete
  13. sir muje foder rajpurohito ki kuldevi konsi hai or kaha par hai, foder mulroop utpati kaha se hai detail chahiye. pls arrenge me. -pradeep rajpurohit, vijayawada.CELL-09885510250, 09393110250

    ReplyDelete
  14. The information shared over here is really great! But still it is not complete. I'd wish you may get more and more information and post complete information. Upon checking wikipedia, this information contradict, and the confusion is to which is the correct one.

    Hukam, I appreciate the hard work that you have done over here. I wish all the people from our community must visit once this page so that they can get an idea about who we are and what should be our work and ritual status in this modern fancy generation.

    ReplyDelete
  15. I love u rajpurohit samaj

    ReplyDelete
  16. I love u rajpurohit samaj

    ReplyDelete
  17. jai ragunath ji ri sa ,thanks sa

    ReplyDelete
  18. jai ragunath ji ri sa sabhi jagirdaro ne sa ,thanks sawai banna

    ReplyDelete
  19. jai ragunath ji ri sa ,thanks sa

    ReplyDelete
  20. suraj sewad desalsar1:56:00 AM

    Jay ragunath ji ri sa

    ReplyDelete
  21. GOOD RAJPUROHIT SAMAJ

    ReplyDelete
  22. jai data ri sa
    jai shri raghunath ji ri sa hukum good job

    ReplyDelete
  23. dhanye he aap jeese samaj bandho savaising ji god bless u jay kheteswardata ri

    ReplyDelete
  24. Jai rugnath ji ri jagidara ne

    ReplyDelete
  25. Jai rugnath ji ri jagidara ne

    ReplyDelete
  26. भरत सिंह राजपुरोहित झींतड़ा
    राईगुर राजपुरोहित झींतड़ा

    ReplyDelete
  27. Anonymous2:07:00 PM

    Jai raghunath ji ri..!!! very good and nice information. But if you can also make it available in english ... Let others also know about this society(samaj).

    ReplyDelete
  28. Jai raghunath ji ri jagirdaro ne

    ReplyDelete
  29. Jab dekho money is everythg fr Rajpurohit n they ll do showof 😳

    ReplyDelete
  30. kunal Rajpurohit champhakheri2:41:00 PM

    Jai shree ragunath ji Ki sa ,aap ke dwara di gayi jankari upyogi or gyanvardak hai lekin hamare samaj me amal lene jaisi galat riti hai iske bare me likhkar ek jagrook samaj banave thanks

    ReplyDelete
  31. jai raghunath ji sa
    ram ram sa

    ReplyDelete
  32. !!जय दाता री!!
    !!जय नाथजी री!!

    आपका दिन मंगल हो

    एक सूचना

    आपका पुराना पेज
    आप राजपुरोहित हो ? तो ये पेज 'Like (लाइक) करो

    अब बन गया है
    Rajpurohit Samaj - India ( https://www.facebook.com/rajpurohitpage) खबर आपकी , भरोसा आपका

    अब जरुर जुडे पेज से

    ReplyDelete
    Replies
    1. Anonymous3:41:00 PM

      Jai raghunath ji ri sab ne ....sab

      Delete
  33. Kanodiya purohitan kab BSA or kisne bsaya

    ReplyDelete
  34. jay raghunath ji sa sab jagidaro ne kishnasar jagidaro ki or see

    ReplyDelete
  35. jay raghunath ji re sa sab jagirdaro ne kishnasar jagirdaro ki or se

    ReplyDelete
  36. Muje do jankari chahiye.....hmaraig gotar kedariya he.....hamri ye gotar kese hui uske bare me bataoge to aapka bahot bahot aabhar rahega,??????????????

    ReplyDelete
  37. आदित्य सिह गुदेचा निम्बाडस11:08:00 PM

    सब जागीरदारों ने जय रघुनाथ जी सा

    ReplyDelete
  38. BAHUT HI RUCHIKAR OR ACHA JAY RUGNATH JI RI SA

    ReplyDelete
  39. Fabulous information!! Goood to know

    ReplyDelete
  40. Sevado ki kuldevi konse gaon me ha ye nahi batya surf nam batya ha

    ReplyDelete
  41. Sevado ki kuldevi konse gaon me ha ye nahi batya surf nam batya ha

    ReplyDelete
  42. किशन सिंह8:00:00 AM

    जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे जानकारी देने पर घणौ घणौ साधु वाद सा किशन सिहँ जागरवाल (लैड़ी)त.लाडनु जि नागोर

    ReplyDelete
  43. किशन सिंह8:05:00 AM

    जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे विस्तरित जानकारी दी सहर्दय धन्यवाद किशन सिहँ जागरवाल लैड़ी (लाडनु नागोर)

    ReplyDelete
  44. जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे जानकारी देने पर घणौ घणौ साधु वाद सा किशन सिहँ जागरवाल (लैड़ी)त.लाडनु जि नागोर

    ReplyDelete
  45. जय रघुनाथ जी कि सा किशन सिहँ राजपुरोहित लै ड़ी लाडनू घणा घणा साधुवाद सा

    ReplyDelete
  46. जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे जानकारी देने पर घणौ घणौ साधु वाद सा किशन सिहँ जागरवाल (लैड़ी)त.लाडनु जि नागोर

    ReplyDelete
  47. जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे जानकारी देने पर घणौ घणौ साधु वाद सा किशन सिहँ जागरवाल (लैड़ी)त.लाडनु जि नागोर

    ReplyDelete
  48. जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे जानकारी देने पर घणौ घणौ साधु वाद सा किशन सिहँ जागरवाल (लैड़ी)त.लाडनु जि नागोर

    ReplyDelete
  49. जय श्री रघुनाथ जी कि सा राजपुरोहित समाज के बारे मे जानकारी देने पर घणौ घणौ साधु वाद सा किशन सिहँ जागरवाल (लैड़ी)त.लाडनु जि नागोर

    ReplyDelete
  50. om rajpurohit3:57:00 PM

    jai raghunath ji ri sa jai data ri sa

    ReplyDelete
  51. Jai raghunathji ri sa

    ReplyDelete
  52. Please add tramkoti cast history

    ReplyDelete
  53. maneshkumar2:07:00 PM

    sir tell me about shaatwa gothar's kuldevi .9486472501

    ReplyDelete
  54. maneshkumar2:09:00 PM

    pls tell me about saatwa gother 's kuldevi

    ReplyDelete
  55. Garib brahmanko kuch madad kare. cort. polis mera kam kare. aum

    ReplyDelete
  56. Would appreciate if you could put light on our history we are vyas Bakuliya our forefathers were with rathod: Two name is in my knowledge I.e. 1. VYAS GOGIDAS JI secrifised his life with veer amarsingh rathod 2. MAHARAMJI VYAS secrifised his life at sagdarda Pali district we have Sir Katie ki jagir near Bhinmal . there is canon placed at Jalor fort in the name of vyas MAHARAM JI. We are from nagor district our gottra is sankas vyas bakuliya .our relationship is established with shrimali Brahmins

    ReplyDelete
  57. Jai Raghunath ji ri sa. I would really appreciate If you could through little lights on our history we are bakuliya vyas our gatra is SANKAS. We have been awarded with jagir of Nimbora and few other THIKANA near Bhinmal for life secrifise given in various war with rathod rajputs therefore our jagir called SIR KATI KI JAGIR. In order to provide reference I can give two known vyas warriors 1. VYAS GOJIDAS JI 2. VYAS MAHARAM JI. VYAS GOGIDAS secrifised his life with Veer Amarsingh Rathod Nagaur. And MAHARAM ji vyas secrifised his life in war near Sagdada Pali Dist reason is not known to me. My grand father used to tell me that we have our reference in Mansingh ji ki khyat. After Dehawasan of my grand father Jawarlal vyas I been blessed with Gadipath. Vikram Vyas THIKANA Nimbora Cont No 9323236056

    ReplyDelete
  58. Jai shree keteshwar data ri
    Dear sir
    Raj purohit samaj ke liye jo aap kam kr rhe hai wah sarahaniya hai hme aasha hai ki aap samaj ke liye or behtar kam kre or hme samaj ke baare aachchhi janakari prapta hoti rhe

    Suresh dhok

    ReplyDelete
  59. Jai shrew kheteshwar data ri
    I am very happy. You are information for our social and nice work this social work
    Hope you best work social work

    Suresh Dhok

    ReplyDelete
  60. Jai shree keteshwar data ri
    Dear sir
    Raj purohit samaj ke liye jo aap kam kr rhe hai wah sarahaniya hai hme aasha hai ki aap samaj ke liye or behtar kam kre or hme samaj ke baare aachchhi janakari prapta hoti rhe

    Suresh dhok

    ReplyDelete
  61. Jai Raghunath ji ri sa

    ReplyDelete
  62. अजीत सिंह ठिकाना -नोरवा जालोर12:55:00 PM

    जय राजपुरोहितान
    हुकम धन्यवाद् आपका जो अपने इतनी जानकारी दी
    garv hai rajpurohit hone ka
    🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

    ReplyDelete
  63. Rajpurohit samaj ki jankari pa kar badi khusi hui thanks sawai ji

    ReplyDelete
  64. vipulkatrecha1:32:00 PM

    Jay rajpurohit

    ReplyDelete
  65. बहोत ही अच्छी जानकारी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  66. बहोत ही अच्छी जानकारी दी
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  67. Very good collection sir. Thanks for updates . Dr.deepak s. Rajpurohit gangwa (parbatsar)

    ReplyDelete
  68. Muje yh pad kr bhut khusi hui hkm jai shree

    ReplyDelete
  69. हमारे समाज आगे बडी

    ReplyDelete
  70. जिस खबर की मुझे जरूरत थी वो नहीं मिली।

    ReplyDelete
  71. आप ने इसमे जो भी लिखा हैं वो ठीक हैं
    लेकिन आपसे एक निवेदन हैं कि जो आपने साथवा लिखा हैं उसे साथुआ लिखवाने की कृपा करावे ।।
    ## राजेन्द्रसिंह साथुआ जेठंतरी
    जिला बाड़मेर
    राजस्थान

    ReplyDelete
  72. राजपुरोहित समाज के बारे मे इतनी जानकारी देने के लिए मैं आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हु ।।

    ReplyDelete
  73. राजपुरोहित समाज के बारे मे इतनी जानकारी देने के लिए मैं आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हु ।।

    ReplyDelete
  74. Aapne bakliya Rajpurohit ke bare me nahi likha kya vo Rajpurohit nahi h.

    ReplyDelete
  75. Sari history detail me likhe, otherwise nahi likhe....aada gyan very dangerous

    ReplyDelete
  76. जय श्री रगुनाथजी री सा

    ReplyDelete
  77. राज पुरोहित के इतिहास की सबसे बड़ी जानकारी देना एक सराहनीय कार्य है. मुझे श्रीरख खोप की जानकारी चाहिए

    ReplyDelete
  78. Jay data ri sa hukm

    Bahoot Bahoot badhiya shandarrrrrrrrrrrrrr

    Rajpurohit samaj ki jankari
    Jay ho jay ho jay ho
    Jay kheteshwer data ri sa

    ReplyDelete
  79. Sawaisinghji jay ho
    Dil se dhanyawad hukm
    Jay gurumaharaj ri sa

    ReplyDelete
  80. Bhabha Shree RAIGUR KE GAV BHUL GAYE.......DHALOP VINGRALA SOKDA RAVALVAS NETRA DUJANA

    ReplyDelete
  81. Jai raghunath ji ri sa to all Rajpurohit s hkm

    ReplyDelete
  82. नाम। तो ठिक से लिख देते सेवड़ पिरोयत लिखा है और राजपुरोहित और पुरोहित अलग अलग होते है सेवड़ राजपुरोहित। मेआते है पुरोहित में नहीं

    ReplyDelete
  83. UMMED Singh3:24:00 PM

    Rajpurohit savad ko singh ki upadi jodhpur maharaja ni magar purohito ko singh ki upadi ki di
    Ummed singh panchroliyan merta city

    ReplyDelete
  84. Very uuseful information

    ReplyDelete
  85. Udesh rajpurohito ki kul devi kon h.....?

    ReplyDelete

  86. राजपुरोहित समाज के बारे मे इतनी जानकारी देने के लिए मैं आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करता
    मिश्रीमल लाखजी जागरवाल आसाणा जालौर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हमारी कोशिश रहती है कि हम कि समाज की जानकारी आप सभी को उपलब्ध करवाएं आपका भी बहुत बहुत आभार और धन्यवाद सुगना फाउंडेशन टीम मेंबर

      Delete
  87. Ghevar rajpurohit ki or se sabhi Rajpurohit ji Ko Jai Shree Raghunath ji ri,jai Shree kheteshwar data ri

    ReplyDelete
    Replies
    1. Jai shri raghunath ji ri sa hkm

      Delete
    2. हुक्म इसमें पोदरवाल गोत्र राजपुरोहित का कही वर्णन नहीं हैं
      कृप्या अपनी कुछ राय दे और अगर हैं तो कहा हैं आप हमे बताए
      हुक्म जवाब जरूर देवे !
      जय दाता री सा ,जय श्री रघुनाथ जी री सा 🙏
      समस्त पोदरवाल राजपुरोहित परिवार ई. पोसीतरा ( सिरोही ) राज.

      Delete
  88. Anonymous10:45:00 PM

    Jai shri raghunath ji. Me ek aadi gour Rajasthani Brahmana hu, kya me Rajpurohito me vivaah kar sakta hu ?

    ReplyDelete
  89. जे रघुनाथ जी री सा सभी भायो ने सा

    ReplyDelete
  90. Bahut hee badhiyaa site haa rajpurohit samaj ki as meet rajpurohit

    ReplyDelete
  91. रोहड राजपुरोहित का इतिहास बताए

    ReplyDelete
  92. Jai Sree Data ri sa

    ReplyDelete
  93. आप ने सवेड जात मे भमट्सर का नाम aad nhi Kiya..

    ReplyDelete
    Replies
    1. हम समय-समय पर पोस्टों को अपडेट करते रहते हैं हम आगे आपकी इस बात का विशेष ध्यान रखेंगे धन्यवाद इस जानकारी के लिए

      Delete
  94. Babusingh Ramsingh Rajpurohit Mahabar Barmer

    ReplyDelete
  95. Jai shree raghunathji ki hkm sabhi jagirdaro ko��

    ReplyDelete
  96. Anonymous6:49:00 PM

    rajpurohit ka samAj ka number kya hai

    ReplyDelete
  97. Anonymous7:03:00 PM

    Hiiii

    ReplyDelete
  98. Jatiwaad ki bhajay apne desh ke bare me jaane.insaniyat se badi koi jaati nahi aur manavta se bada koi dharam nahi

    ReplyDelete
  99. bahut hi sundar raythala gotra ke bare me kuch nahi pls uske bare me bataye

    ReplyDelete
  100. Aapne rajpurohito ke itihas ke baare me jaankari Dekar nayi pidhi ko apna kartavya rutbe ka Abhas karaya hai..
    Dhanyavad
    N.b sodha mayalawas T.siwana

    ReplyDelete
  101. मुझे कुछ जानकारी चाइये है सो आप मुझे प्रोवाइड करवा सकते है क्या ?

    ReplyDelete
  102. Bahut hi acchi jankari uplabdh karvai

    ReplyDelete
  103. Very uuseful information

    ReplyDelete
  104. Very uuseful information

    ReplyDelete
  105. Very uuseful information

    ReplyDelete
  106. Very uuseful information

    ReplyDelete
  107. Jay rughnathji ri sa

    ReplyDelete
  108. Anonymous3:23:00 PM

    गौत उदेश / उदिच गौत्र उदालक कूलदेवी ममाई माता ।
    यह वही उदेश जाति है । जिसमे राजपुरोहित समाज के तारणहार श्री खेतेश्वर

    ReplyDelete
  109. Anonymous3:28:00 PM

    51 गौत केशरिया गौत्र उदालक कूलदेवी मम्माई माता ।
    52 रावल 53 पङत 54 कुचला 55 कोसाणा 56 सुरासा 57 बुझङ 58 कणेरिया 59
    ढमढमिया 60 गलतरा 61 धौलिया 62 धान्ता 63 तरवरी 64 बलवंसा 65 मैथाना 66
    बारसा 67 लुहारिया 68 भापङिया 69 सिँगला 70 अडवासला 71 नराणसा 72 इटीवाल 73
    पीपाडा 74 आगलवाल 75 सोमङा 76 डावियाल ।
    इन सब के गौत्र उदालक और कूलदेवी मम्माई माता है ।
    77 गौत मढवी गौत्र उदालक कूलदेवी सुन्धामाता ।
    78 लुणतरा 79 गैवाल 80 त्राम्बकोटी 81 नानीवाल 82 सणवेच 83 भैथडिया 84
    भीमतर 85 पणयसा 86 मकवाणा / मकोणा 87 खौवण्डा 88 गोमठ 89 कुंण्डला 90 आदेश ।
    इन सब का गौत्र उदालक और कूलदेवी सुन्धामाता है ।
    91 गौत नेतङ गौत्र उदालक कूलदेवी वाकलमाता ।
    92 गौत व्यास गौत्र शांडिल्य कूलदेवी महालक्ष्मी माता भिनमाल ।
    93 शंखवालचा 94 वांसाडिया 95 धींगङा ।
    इन सभी का एक ही गौत्र है शांडिल्य और कूलदेवी महालक्ष्मी माता भिनमाल है ।
    96 गौत जोशी गौत्र शांडिल्य कूलदेवी क्षेँमकरी माता / खीमत माता
    97 दूदावत 98 लोपल 99 लाफा 100 बांकलिया 101 हलसिया 102 कत्वा 103 केदारिया
    104 जोई 105 आकसेरिया 106 भगत 107 सेवलिया 108 पालडिया 109 विट्ठला 110
    धमानिया 111 दादाला 112 सोरडिया 113 इस्मालिया जोशी 114 वरमाणा 115 ओझा 116
    असवारिया 117 पांथावडिया 118 टिटोँपा 119 कोलवाडिया 120 भडवला 121 भमाणा
    122 बोटी 123 गोमोठ 124 समोसा 125 कांकरेसा 126 नानिवाल 127 भाखरिया 128
    रायथला । इन सभी का एक ही गौत्र शांडिल्य और कूलदेवी क्षेँमकरी माता है ।
    129 गौत गोरखा गौत कश्यप कूलदेवी जोगमाया है ।
    130 श्रीगौङ 131 श्री गर 132 डिँगरी 133 थानक 134 सौथङा 135 मंथर 136 मावा
    137 मोढ 138 आसल 139 गौलेसा 140 रोहङ 141 परोत 142 बगईया 143 बागडिया 144
    कनङ 145 श्री राव 146 नागदा ब्राम्हण 147 सेवक 148 पुजारा 149 पोकरणा ।
    इन सब का एक ही गौत्र कश्यप और कूलदेवी जोगमाया है ।
    इन के अलावा कोइ राजपुरोहित जाति कि गौत मेरे से भूल से रह गई हो तो बता दे
    और यदि किसी प्रकार कि गलती हो तो भी बता देँ ॥
    जय श्री रघुनाथ जी री सा

    ReplyDelete
  110. Anonymous3:28:00 PM

    राजपुरोहित जाति कि गौत, गौत्र, और कूलदेवी
    श्री
    गणेशाय नम:
    श्री खेतेश्वराय नम:
    जय कूलदेवी री


    गौत 1. जागरवाल
    गैत्र वशिष्ट कूलदेवी ज्वाला देवी इनका प्रमुख मन्दिर हिमाचल मे हैँ ।
    2 राजगुरू
    3 मदपङ 4 अजारियो 5 बाडमेरा 6 सांचौरा 7 सणपरा 8 बोरा 9 सिलोँरा 10
    पिण्डिया 11 ओझा 12सटियातर 13 पादरेसा 14 फोणरिया 15 वीरपुरा 16 गोमठ 17
    कोठारिया 18 भंवरिया 19 सिरवाङा 20 भडतिया 21 खापरोला 22 खोणेसा 23 भाटरामा
    24 झांटिया 25 भाडलिया
    इन सब का गौत्र वशिष्ट और कूलदेवी अरबूदा देवी ( सरस्वती माता ) है । इनका
    प्रमूख मन्दिर अंजारी मेँ है । और ये सब के सब राजगुरु मेँ से निकले है । मैं बलवन्त राजगुरू ( सिलौरा ) कोलासर चूरू
    26 गौत सिँधप गौत्र वशिष्ट कूलदेवी माँ हिँगलाज ।
    27 गौत रूधवा गौत्र वशिष्ट कूलदेवी सुंधा माता ।
    28 गौत सेवङ गौत्र भरव्दाज वरदेवि बीसहत्थ माता इनके प्रमुख मन्दिर है ।
    जैसे टूकलिया , तोलियासर, पिरौतासणी , और सटिकय में सबसे पुराना मन्दिर है।
    जो भाटि राजपुतो द्वारा निर्मित है ।
    एक मन्दिर बङली है । में भी है ।
    यह वही बङली है जहाँ सेवङ शब्द कि उत्पति हुई थी ।
    बुजुर्गो के अनुसार सेवङो कि कूलदेवी नाग्णेच्या माता है ।
    इनकि पेदाइसि कन्नोज से है ।
    सेवङो मे तीन खांप है ।
    1 - अखेराजोत 2 - कान्नौत 3 - मूलावत

    और इन सेवङ जागीदारो को ही सबसे ज्यादा गाँव जागीरी मे मिले है । और जो
    पुरोहितो को आगे राज लगाने कि जो पदवी मिली थी वो इन्ही जागीदारो को मिलि
    थी ।
    राजपुरोहित जाति के आगे सिंह कि पदवी इन्हि जागीरदारो को मिलि है ।।
    और इनके गौत्र को काफी लोग भारव्दाज भी बोलते है । मगर वास्तव में देखे तो
    इनका गौत्र भरव्दाज ही है
    29 गौत गुन्देशा / गुन्देचा गौत्र भरव्दाज कूलदेवी रोहिणी माता ।
    30 गौत मूंथा गौत्र भरव्दाज और काफी जगह पर पीपलाद भी सुना है इसलिए जो
    मूंथा जागीदार है वो अपना गौत्र मुझे बताए । इनकि कूलदेवी रोहिणी माता है ।
    31 गौत सांथूआ गैत्र भरव्दाज कूलदेवी वराही माता ।
    32 गौत पेसव गौत्र भरव्दाज कूलदेवी ब्रम्हाणी माता ।
    33 गौत पल्लिवाल गौत्र भरव्दाज कूलदेवी ब्रम्हाणी माता ।
    34 गौत जरगानिया गौत्र भरव्दाज कूलदेवी ब्रम्हाणी माता ।
    35 गौत केवाणसा गौत्र भरव्दाज कूलदेवी ब्रम्हाणी माता ।
    36 गौत बोथिया गौत्र भरव्दाज कूलदेवी ब्रम्हाणी माता ।
    37 गौत सेलरवार गौत्र भरव्दाज कूलदेवी ब्रम्हाणी माता ।
    38 गौत सोडा गौत्र भारव्दाज कूलदेवी चक्रेश्वरी माता ।
    39 गौत रायगुरू गौत्र पिपलाद कूलदेवी आशापुरा माता इनका मन्दिर नाडोल मेँ
    हैँ ।
    40 गौत नन्दवाणा गौत्र पिपलाद कूलदेवी वाकल माता ।
    41 गौत मनणा गौत्र गौतम कूलदेवी जोगमाया ।
    हमारे बडेरो के अनुसार मनणा जागीदार सब जागीदारो से बङे है ।
    42 गौत महियाल गौत्र गौतम कूलदेवी जोगमाया ।
    43 गौत सिया / सिहा गौत्र पारासर कूलदेवी जोगमाया ।
    44 गौत हाथला गौत्र पारासर कूलदेवी जोगमाया ।
    45 गौत सेपाऊ गौत्र पारासर कूलदेवी माँ हिँगलाज ।
    46 गौत पाँचलोङ गौत्र पारासर कूलदेवी माँ चाँमुण्डा ।
    47 गौत चावण्डिया गौत्र पारासर कूलदेवी माँ चाँमुण्डा ।
    48 गौत उदेश / उदिच गौत्र उदालक कूलदेवी ममाई माता ।
    यह वही उदेश जाति है । जिसमे राजपुरोहित समाज के तारणहार श्री खेतेश्वर
    दाता ने अवतार लिया था ।।
    49 गौत फांदर गौत्र उदालक कूलदेवी ब्राम्हाणी माता ।
    50 गौत लखावा गौत उदालक कूलदेवी ब्राम्हणी माता

    ReplyDelete
    Replies
    1. Anonymous11:18:00 PM

      केसरिया गोत का नहीं बताया

      Delete
  111. Uadeso ki kuldevi kon he or kha he

    ReplyDelete
  112. बोथिया राजपूतों की कुलदेवी का नाम बताने की कृपा करें मैंने अलग-अलग जगह पर यह है जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की पर अलग-अलग जगह कुलदेवी माता का नाम अलग-अलग बताया जा रहा है कृपया वास्तविकता क्या है बताएं

    ReplyDelete
  113. Anonymous3:39:00 PM

    Hukm raigur ki history me galti hai
    Aap sankarna, jalore jaye or corrections kijiye kyuki sare raigur sankarna se uthe hua h. Or raigur ka sab se bada gav bhi h.

    ReplyDelete
    Replies
    1. Anonymous7:32:00 PM

      Yes raigur sab sankrana jalore se hi aaye hai

      Delete
  114. कानोडिया पुरोहितान जो जोधपुर जिले का सबसे बड़ा गांव है 48 गाँव का खूंटा कहते हैं उसे कैसे छोड़ सकते हो... कृपया अपने लेख को सुधार करें

    ReplyDelete
  115. Anonymous4:36:00 PM

    ग्रेट जॉब सवाई

    ReplyDelete
  116. Anonymous3:56:00 PM

    bahut bahut dhanyawaad, apne samaaj ki jankari dene ke liye | jay kheteshwar data ri

    ReplyDelete
  117. Anonymous6:45:00 PM

    इसमें सांथुआ राजपुरोहित का कोई इतिहास क्यों नहीं बताया गया

    ReplyDelete
  118. Very Nice Post. I am very happy to see this post. Such a wonderful information to share with us. For more information visit here Blogger.

    ReplyDelete
  119. Anonymous12:52:00 AM

    Itne samay k badlav se bhi yeh samaj nhi badla aaj bhi jaatiwaad k peeche hi yeh samaaj bohot peeche reh gaya hai
    Prem vivah toh is samaaj k liye kaanooni jurm Hai Agar koi parivaar apni khushi se bhi bacho ka Prem vivaah kr dete hai toh samaaj usi parivaar ko sazaa deta hai, pata nhi Kab sudhrenge aise samaaj jab logo ko jaati se nhi Karam se pehchana jaayga unke neeyat se pehchana jaayga na ki jaati se, sabka Malik ek and sab insaan us bhagwann k bande hai jis din yeh samaaj ko samajh aayga tab hi is yeh samaaj gale ka fanda lagna band hoga logo ko, jo bhi is samaj ka pratinidv krta hai usse yahi aasha rahegi ki samaaj ko gale ka fandaa mat banao samaaj k log khush rahe isi soch se apne aap ko badly yeh sirf is rajpurohit samaaj.k liye nhi hai balki sabke liye Hai insaan ko insaan samjho jatiwaad se insaaniyat k saath khilwaad mat kro

    ReplyDelete
  120. Anonymous10:33:00 PM

    मुझे बहोत ख़ुशी हुई की जिस माँ को पूजा वो ही माँ हमारी माँ कुलदेवी चामुण्डा हैक्योंकि अपने पूर्वजों पर गर्व है कि औरो की तरह कुलदेवी को कंही ना छोड़ कर गए.. वे अपने साथ ही लेकर आये.. और है जिसको पूजा वही कुलदेवी है माँ चामुण्डा प्रमाण ये कि जो वाव में विसर्जित की हुई महादेवजी में विराजमान और वर्तमान में विराजित माँ कुलदेवी का सिर्फ चेहरा ही है सिर्फ चेहरा माँ चामुण्डा का ही घर पूजा जाता है.. पूरा रूप विकराल रूप है राक्षस का वध करते हुए इसलिए इस पुरे रूप को घर में नहीं पूजा जाता था!
    और अपने पूर्वजों ने माँ के साथ दोनों भेरू भी है इसके अलावा नाग रूप में खेतलाजी भी है! जो गोरा भेरू के रूप में पूजे जाते है! ये नाग रूपी खेतलाजी काशी से मंडोर, मंडोर से सोनाना आये ये प्रमाण सोनाना लोक कथाओं में है...
    पूरा रूप अपनी माँ ने आबू की गोद यानि आबूगौड़ आदि स्थल लखाव में दर्शन दिए जो विकराल रूप में चण्ड और मुण्ड राक्षस का वध करते हुए
    🙏 जय माँ चामुण्डा 🙏

    ReplyDelete
  121. its a good way to purify your spirit and if you want to increase your knowledge so enroll now in Digital Marketing training course in kanpur

    ReplyDelete

यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर(Join this site)अवश्य बने. साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ. यहां तक आने के लिये सधन्यवाद.... आपका सवाई सिंह 9286464911

Labels

"खेतेश्वर महिमा (3) About Me (2) Acupressure (9) Ajit Rajpurohit (1) Akash Rajpurohit (5) Amar Singh Rajpurohit (9) Anita Rajpurohit (2) Anmol vachan (2) ARKYSS (56) Babu Singh (4) Balwant RajGuru (2) Balwant Singh (3) Biram singh (6) Blood (13) Brahma Temple (31) Communiy (56) dd Rajasthan (1) Dev Kishan Singh (3) Dr APJ Abdul Kalam (1) Dr M p Singh (100) Dr Shivalika Sharma (9) durag singh (7) Facbook page (165) facebook (78) Gajendra Singh (2) Garima Singh (7) Gopal Singh (3) Gotras (4) Govind Singh (14) Hams Institute (38) Harish Singh (1) Hems Institute (7) Jalam Singh (6) Jankari (64) Janmdin (17) Jay Singh (1) JNVU (3) Jorawar Singh (1) Kishor Singh (44) MLA Rajpurohit (25) MLA Shankar Singh (11) Mohan Singh (1) Mukesh Dudawat (1) Narpat Singh (40) News (155) Pahal (60) pathmeda (9) PM Narendra Modi (22) Poonam Singh (4) Pravasi Sandesh (1) Priti Rajpurohit (1) R K Purohit (11) R p प्रमुख स्थल एव संस्थान (1) Rajpurohit News (456) Rajpurohit History (22) Rajpurohit News (1057) Rajpurohit Samaj (189) Rajpurohit Yuva Shakti (4) Ramesh Singh (3) RJ Narendra (1) S P Singh (68) Sant Atmanand Ji Maharaj (6) Sant Khetaramji Maharaj (74) Sant Shri Aatmanand Ji Maharaj (20) Sant Shri Tulacharam Ji Maharaj (108) Santosh (6) Satender Singh (2) SAVE GIRL CHILD (8) sawai singh (127) Sawai Singh Rajpurohit (41) Share kare (52) Shishupal Singh (5) Shri NirmalDas Ji Maharaj (44) Shyam singh (3) Suja Kanwar Rajpurohit (1) Surat (6) Suresh Rajpurohit Jugnu (5) Swachh Bharat (4) video (9) Vijay Singh (1) Vikram (Viksa) (9) virus post (16) website (35) WhatsApp (83) www.bhaskar.com (32) www.skbdtirth.org (3) Yogendra Singh (7) YouTube (53) अब लिखिए अपनी भाषा में (1) अमर शहीद श्री हरि सिंह (1) अरविन्द राजपुरोहित (2) अशोक सिंह (3) एक बड़ा चबूतरा (1) एस.पी.सिंह (20) ओम प्रकाश (4) कमेन्ट बाक्स (1) कविता (22) किशोर सिंह (13) कृष्ण जन्माष्टमी (5) गरीमा राजपुरोहित (4) गायत्री महायज्ञ (5) गांव की जानकारी (7) गुरु पूर्णिमा (9) गो माता (54) गोविन्द (2) गौरक्षा कमांडो फाेर्स (1) चातुर्मास (33) जन्मोत्सव (35) जयंती (3) जयंती विशेष (42) जानकारी (40) जीवन परिचय (22) जीवनरक्षक सोसाइटी (2) जीवराजसिंह (3) ज्ञान (5) डॉ.M.P सिंह राजपुरोहित (10) डॉ.भवरलाल जी (2) तीन दिवसीय नि:शुल्क एक्यूप्रेशर (2) दक्ष प्रताप (2) दहेज (2) दिनेश सिंह (4) देवकिशन राजपुरोहित (1) नरपत सिंह (20) न्यूज़ (164) परमेश्वर सिंह (11) परिचय (3) पूनम राजपुरोहित (1) प्रताप सिहं राजपुरोहित (2) प्रथम मुकुंद पर सवार प्रतिमा (1) प्रवीण सिंह (3) प्रेरणा शिविर (6) फोटो (12) बगसिँह बागरा (33) बलवंत सिहं (1) बाबा रामदेव जी (2) बालू सिंह (3) ब्रम्हाजी मंदिर (16) ब्रह्मपुत्र सेना (31) ब्रह्मास्त्र सेवादल (1) भैरोसिंह राजपुरोहित (3) रघुवीर सिंह (3) राजपुरोहित का परिचय (5) राजपुरोहित समाज (40) राजपुरोहित समाज और जाति (3) राजस्थान मिष्ठान भंडार (1) रामदेवजी (4) रासीसर गाँव (1) विजिटर डायरी (2) विडियो (9) विनम्र श्रधांजलि (77) विशेष (249) शत शत नमन (17) शुभकामनाएँ (84) शेयर/बँटना (302) श्री अमरा राम जी (2) श्री आत्मानन्दजी (11) श्री खेतेश्वर महाराज (130) श्री तुलछारामजी महाराज (184) श्री दत्तशरणनन्द जी (13) श्री ध्यानरामजी (62) श्री ध्यानारामजी (95) श्री निर्मलदासजी (23) श्री बालकदास जी (20) श्री मोहनपुरी जी महाराज (1) श्री शांतिनाथ जी महाराज (2) श्री शान्तिनाथजी महाराज (1) श्रीखेतेश्वर महाराज (28) श्रीखेतेश्वर युवा सेवा संघ (10) श्रीशक्तिनाथनाथजी महाराज (1) संत गुरु ज्ञान गंगा प्रतियोगिता (2) सन्देश (24) सवाई सिंह (107) सुगना फाऊंडेशन (362) सूचना (271) सूरज दीदी (1) हमारे मार्गदर्शक (1) हार्दिक शुभकामनायें (36) हैम्स ओसिया इन्स्टिट्यूट (13)

Search This Blog

आपका लोकप्रिय ब्लॉग अब फेसबुक पर अभी लाइक करे .



Like & Share

Share us

Contact Form

Name

Email *

Message *

ट्विटर पर फ़ॉलो करें!



Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

एक सुचना

एक सुचना