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24.1.13

जोधपुर के बारे में बिलकुल अनूठी और दिलचस्प बातों का पिटारा...sawai agra


- दो ब्रेड के बीच में मिर्ची बड़ा दबा कर खाना यहाँ का ख़ास ब्रेकफास्ट माना जाता है.

- मिठाई की दुकान पर खड़े खड़े आधा किलो गुलाब जामुन खाते जोधपुर में सहज ही किसी को देखा जा सकता है.

- गर्मी से बचाव के लिए चूने में नील मिलाकर पोतने का रिवाज़ सिर्फ और सिर्फ जोधपुर में ही है.

- यहाँ की परंपरा में गालियों को घी की नालियां कहा जाता है. तभी तो गाली देने पर यहाँ का बाशिंदा नाराज़ नहीं होता, क्योंकि गाली भी इतने मीठे तरीके से दी जाती है, उसका असर नगण्य हो जाता है.

- बेंतमार गणगौर जैसा त्योहार सिर्फ जोधपुर में ही मनाया जाता है, जिसमें पूरी रात सड़कों पर सिर्फ महिलाओं की हुकूमत चलती है.

- दाल-बाटी, चूरमा के लिए जोधपुर में कहा जाता है,दाल हँसती हुई, चूरमा रोता हुआ और बाटी खिलखिल होनी चाहिए. यानि दाल चटपटी मसालेदार, चूरमा ढेर सारे घी वाला और बाटी सिककर तिड़की हुई होनी चाहिए.

- के. पी. यानि खांचा पोलिटिक्स की ट्रिक ख़ास जोधपुरी अंदाज़ है, जिसमे भीड़ से किसी भी आदमी को सबके सामने चुपचाप कोने में ले जाकर सिर्फ इतना पूछा जाता है – कैसे हो आप.

- जोधपुरियंस का ख़ास जुमला है ‘काई सा’ और ‘किकर’. इसका अर्थ है कैसे हैं? इन दिनों क्या चल रहा है.

- ‘चेपी राखो’ इस शब्द का जोधपुर में मतलब है, जो काम कार रहे हो उसमें जुटे रहो.

- मिर्ची बड़ा, मावे की कचौरी और मेहरानगढ़ पर हर जोधपुर वासी को गर्व है.

- पानी की सप्लाई होते ही घर के आँगन को धोने का रिवाज़ जोधपुर में ही है.

- गली के नुक्कड़ पर पत्थर की खुली कुण्डी जोधपुर में लगभग हर जगह मिल जायेगी, जहां घर का बचा खुचा बासी भोजन गायों के लिए डाला जाता है.

- किसी भी काम के लिए सीधे मना करने की आदत किसी भी जोधपुरियन की नहीं होती. बहाने बना कर टाल देंगे, मगर सीधे मना नहीं करेंगे. जोधपुर में इस शैली के लिए ख़ास शब्द है- गोली देना.

- फास्ट फ़ूड के नाम पर पिज्ज़ा-बर्गर के मुकाबले मिर्ची बड़ा और प्याज की कचौरी पसंद की जाती है.

- सड़क पर जाम में फंसने के बजाय जोधपुरी लोग पतली गलियों से निकल जाना पसंद करते हैं.

- घंटा घर जोधपुर में ऐसी जगह है, जहां पैदा होते बच्चे के सामान से लेकर अंतिम संस्कार तक का सारा सामान मिल जाता है.यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर(Join this site)अवश्य बने. साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ. यहां

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अमर शहीद श्री हरि सिंह राजपुरोहित को सादर नमन और विनम्र श्रधांजलि...सुगना फाउंडेशन

वन्‍य जीवों के प्राणरक्षार्थ अपने प्रणों का बलिदान देने वाला अमर शहीद श्री हरि सिंह राजपुरोहित, झाबरा को सादर नमन और विनम्र श्रधांजलि...सुगना फाउंडेशन - मेघलासिया

 
मदभागवत गीता के श्‍लोक - ' कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते मां फलेषु कदाचन.... के अपुसार कोई भी व्‍यक्ति हो वह अपने निष्‍काम भाव से किये गए कर्मो से ही महान बनता है । इतिहास में उनका नाम अमर हो जाता है । जिसे कई युगों तक श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है । ऐसा ही एक व्‍यक्ति है जिसने ब्रहमवंश में जन्‍म लेकर अल्‍पावस्‍था में परमार्थ का इतना महान सतकर्म किया है कि '' जब तक सूरज चांद रहेगा , इतिहास में उनका नाम रहेगा '' । वो महान कर्मयोगी वीर है - स्‍व.श्री हरि सिंह राजपुरोहित , जिन्‍होने वन्‍यजीव हिरणों के प्राणों की रक्षार्थ सहर्ष अपने प्राणों का बलिदान दे दिया । धन्‍य है इनके माता - पिता और धन्‍य है मरूधरा जिन्‍होने इस महान बलिदानी को जन्‍म देकर '' अंहिसा परमोधर्म '' और प्राणी मात्र की रक्षा जैसे संस्‍कारों से आत्‍मसात किया ।

राजस्‍थान की धरती वीर वसुन्‍धरा कही जाती है । इसके कण - कण में त्‍याग , बलिदान , शौर्य , ममता , करूणा , मसनव सेवा की अनगिनत गाथाऐं आज भी बडी श्रद्धाभाव और मुक्‍तकण्‍ठ से याद की जाती है । यहां के वीर और वीरांगनाओं के स्‍मरण मात्र से ही मानव धन्‍य हो जाता है । इतिहास इस बात का गवाह है कि राजपुरोहित समाज में ऐसे अनेक महान कर्मयोगी वीर हुए है जिन्‍होने मात्रभुमि और धर्म की रक्षार्थ , नारी सम्‍मान , गौरक्षा और जीवों के प्राण बाने हेतु अपने प्राणों का बलिदान किया । नि:संदेह इसी पंरपरा का पालन करते हुए श्री हरि सिंह राजपुरोहित ने वन्‍य जीव हिरणों के प्राणो की रक्षार्थ अपने प्राणो का बलिदान कर अपने परिवार , गांव , समाज एवं देश का गौरव बढाया । 

इस इतिहास पुरूष का जन्‍म राजस्‍थान के जैसलमेर जिला अन्‍तर्गत पोकरण तहसील के झाबरा गांव में 1 सितम्‍बर , 1976 को हुआ । इनके पिता श्री राधाकिशन सिंह गांव में खेती का कार्य करते है । इनकी माता का नाम श्रीमती जतन कंवर है । आल्‍यावस्‍था से ही गौ सेवा एवं वन्‍य जीवों के प्रति स्‍नेह भाव इनके जीवन का ध्‍येय था । परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्‍य ही थी । इन्‍होने 8 वीं तक पढाई करने के बाद अपने पिता के कार्यो में हाथ बटाना शुरू कर दिया ।

परिवारिक खेती बाडी के साथ गौ सेवा , पर्यावरण संरक्षण तथा वन्‍य जीवों की सेवा इनके दिनचर्या के महत्‍वपूर्ण कार्य थे । रेगिस्‍थान इलाका जहां पानी की नितान्‍त कमी रहती है वहां अपने टेक्‍टर द्वारा पानी के टेंकर लाकर गायों और वन्‍य जीवों की प्‍यास बुझाना धर्म और कर्म था । कुछ वर्ष पूर्व कानोडिया पुराहितान निवासी प्रभु सिंह सेवड की सुपुत्री नेनू कंवर के साथ इनकी शादी हो गई । दोनो ही परिवारों में खुशियों की बगीया महक उठीं । शादी के बाद भी श्री हरि सिंह की दिनचर्या और व्‍यवहार में काई अन्‍तर नही आया । गौ सेवा वन्‍य जीवों के प्रति दया भाव, पर्यावरण संरक्षक ( खेजडी , बैर , नीम के पेड लगाकर उनका पोषण करना ) से इनका जुडाव और बढ गया । छोटे से व्‍यवसाय चाय की दुकान द्वारा परिवारिक कर्तव्‍य निभाने के साथ - साथ जब भी समय मिलता तब गांव के युवाओं को अक्‍सर प्रेरणा देते थे कि गौ सेवा और वन्‍य जीवों की रक्षा करना हमारा कर्तव्‍य है । श्री हरि सिंह के 4 संताने जिनमें 2 पुत्र एवं 2 पुत्रियां है

28 अप्रेल 2004 प्रति दिन की भांति इस दिन भी सांय 7 बजे के करीब श्री हरि सिंह राजपुरोहित अपने टेक्‍टर से पानी का टेंकर लाने हेतु घर से निकले । गांव के बाहर ( कांकड में ) इनको अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई पडी तो इन्‍हे इस बात का एहसासा हो गया कि कोई शिकारी है जो वन्‍यजीवों का शिकार कर रहा है । श्री हरि सिंह ने उसका पिछा किया तो देखा कि कुछ लोग हिरणों का शिकार करने के लिए सशस्‍त्र खडे थे । वो लोग उसी क्षैत्र के भील जाति के थे जिनमें प्रमुख शिकारी ओमा राम भील था । हरि सिंह ने इनको पहचान लिया और शिकार करने से मना किया । हरि सिंह ने कहा इन निरपराध अमुक जीवों की हत्‍या मत करो, मगर शिकायत ने उनकी सुनी अनसुनी कर हरि सिंह को कहा कि तुम यंहा से चले जाओ वरना हिरण से पहले तुम्‍हे गोली मार देंगे । अदंभ्‍य साहस के धनी हरि सिंह ने हिम्‍मत नही हारी , वह उनको ललकार कर कहने लगा - '' हां मेरी जान भले ही ले लो पर इन हिरणों का शिकार मत करो '' । काफी प्रयास करने के बाद भी जब हरि सिंह को लगा कि शिकारी रूकने वाले नहीं है तो दौडकर अपने चार - पांच साथियों को लेकर आया और शिकारिंयों को ललकारा । हरि सिंह साथियों सहित वापस आने तक शिकारियों ने एक हिरण को गोली मार दी थी । 
हरि सिंह इस अमानवीय क़त्‍य को देखकर स्‍वयं को रोक नहीं सका उसने ओमा राम भील से कहा कि वह स्‍वयं को पुलिस के हवाले कर दे मगर शिकारी ने अपनी बंदूक हरि सिंह राजपुरोहित के सीने पर तानकर कहा कि तुम लोग यहां से चुपचाप चले जाओ वरना इस हिरण की तरह तुम्‍हे भी गोली मार देंगे । निडर और अदंभ्‍य साहस के धनी हरि सिंह राजपुरोहित अपने प्राणों की परवाह किये बिना शिकारियों से भीड गया । इसी समय ओमा राम भील ने हरि सिंह राजपुरोहित को गोली मार दी । गोली लगने के बाद भी खून से लथपथ हरि सिंह ने शिकारी से बंदूक और म्रत हिरण को छीन लिया । 
बंदूक की गोली से घायल हुए हरी सिंह राजपुरोहित को पोकरण अस्‍पताल ले जाया गया । जब तक वे अस्‍पताल पंहुचे तब तक बहुत सारा खून बह चूका था । और अन्‍तत: ... यह महान कर्मयोगी वीर एवं वन्‍य जीव प्रेमी नश्‍वर संसार को छोडकर चला गया । हालांकि शिकारी एक हिरण का शिकार कर चूका था मगर स्‍व. श्री हरि सिंह राजपुरोहित की आत्‍मा इस बात से प्रसन्‍न थी की आज न जाने कितने हिरणों के प्राण बच गए । हे अमर वीर । तुम्‍हारा यह बलिदान विश्‍व वन्‍दनीय है आज समाज ही नहीं बल्कि सम्‍पूर्ण मानव जाति और प्रत्‍येक प्राणी मुम्‍हारी इस शहादत को नमन करते

जानकारी By:- 
श्री प्रहलाद राजपुरोहित 
{http://www.facebook.com/psrajpurohit.rajpurohit}

प्रस्तुतकर्ता
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12.1.13

राजपुरोहित को सिंह की उपाधि और जागीरदारी


आर्यों द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था के आधार पर सम्पूर्ण हिन्दू को चार वर्गों में बाटा था| ब्राह्मण,क्षत्रिय,वेश्य एवं शुद्र | राजपुरोहित समाज ब्राह्मण वर्ग का एक ही अभिन्न श्रेष्ठ अंग रहा ब्राह्मणों में से श्रेष्ठ विद्या धारक को पुजारी पुरोहित अथवा राजगुरु बनाया जाता था |पारम्परिक तोर पर राजपुरोहित राजा का गुरु के साथ ही प्रमुख मंत्री अथवा सलाहकार का दायित्व भी निभाना था राजपुरोहित राजा वेदों को उपनिषदों धनुविद्या,शिक्षा एवं युद्ध कला की जानकारी देते थे | कालांतर में राजपुरोहितो ने राजाओ को युद्ध में कन्धा मिलाकर साथ दिया,परिणाम स्वरूप इन्हें नाम के आगे  "सिंह" शब्द से संबोधित किया जाने लगा | अपने युद्ध के पराक्रम एवं कोशल के कारण इनको राजाओ की और से डोली(किसी गाव की उपजाऊ जमीन) तथा शासन गाव(किसी गाव विशेष को लगन मुक्त) उपहार स्वरूप भेट किया जाता है |इसी कारण माध्ययुग में राजपुरोहितो जागीरदार कहलाने लगे | बिर्टिश राज में कहते थे की कभी सूर्यअस्त नही होता था | वह से आदेश जारी हुआ तथा भारत के  लार्ड को पूछा गया की हिन्दुस्थान में राजपूत ही क्यों "राज" करते है तब यहा के लार्ड ने जबाव भिजवाया की राजपूतो के "राजपूत" राजपुरोहित होते है |तथा राजपुरोहित इतने वफादार होते है की राजपूतो को "राह" से भटकने नही देते है | इस पर पुन: आदेश हुआ की यदि ऐसा ही है तो राजपुरोहित को "जागीरदार" बना दो | शने-शने इनका ध्यान राजविद्या से हटकर कास्तकारी की और बढ़ गया था| राजा से सम्पर्क कम होने लगा |जिसके कारण राजा -महाराजा भोग विलासी बन बेठे एवं विदेशी लोगो ने आकर यह आधिपत्य स्थापित कर लिया |चुकी मध्ययुग की समाप्ति एवं राजाशाही शासन के अंत के बाद भारत वर्ष में लोकतंत्र  स्थापित हुआ और जागीरे सिमट कर गई |जिसके कारण जागीदार कहलाने वाले राजपुरोहितो का ध्यान व्यापार की और गया तथा दक्षिणी पूर्वी भारत सहित देश में काफी भागो में व्यापार स्थापित किया कइयो ने सरकारी अथवा निजी नोकरिया की राह चुनी
                                                           
                                                   लेखक--:> दिनेश सिंह राजपुरोहित सिया


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10.1.13

गाव भिंडाकुआ की स्थापना गांव की जानकारी

 गाव भिंडाकुआ की स्थापना
 गोत्र के राजपुरोहित कनोज से राजस्थान में आए और जोधपुर के पास सियोदा नामक गाव बसाया |वहा पर चारण जाती से विवाद हो गया | वहा पर सिया राजपुरोहितो ने गोदारा(श्राप) डाल कर बारमेर जिले की सिवाना तहसील के कुशिप गाव में आकर डेरा डाला |वहा पर सोढा राजपूतो से झगडा हो गया |कुशिप गाव छोड़कर किटनोद के पास बाहमनी भाकरी के पास अपना गाव बछाया कई सालो बाद तक वहा निवास करते रहे वहा पर किटनोद ठाकुर करनोत जाती के राजपूतो से गायो के लिए विवाद हो गया |तो सिया जाती के पुरोहितो ने वहा के ठाकुर को श्राप देकर वहा से रवाना हो गये | किटनोद के पास वैशाख शुक्ल सातम विक्रम सवत १४८५ में भिंडाजी S/o थारजी सिया राजपुरोहित ने गाव की स्थापना की | वहा पर भिंडाजी ने एक कुआ खोदा जिससे गाव का नाम भिंडाकुआ पड़ा|सवत १४८५ में कुआ के पास में माँ चामुंडा का मंदिर बनाया गया उस समय गाव में मात्र ८-१० घर थे | जबकि सन २०१२ में वंशज बढ़कर १२५-१३० हो गये है उसके पश्यात माँ चामुंडा का भव्य मंदिर की नीव श्री श्री 1008 खेताराम जी महाराज के हाथो लगाई गई | ततपश्यात मंदिर का निर्माण का कार्य श्री 1008 श्री तुलसाराम जी महाराज के देख रेख में संपन हुआ  | माँ चामुंडा की संगमरमर के पत्थर की सिंह पर सवार प्रतिमा बनाई गई बाद में गाव गोलिया में खेताराम जी
महाराज , शिवजी ,लक्ष्मीनारायण , राधाकिशन और हनुमान जी और गोगाजी एवं कुल देवता जुंझार जेहराम सिंह जी का स्थान भी है दाता खेताराम जी की सगाई भी गाव भिंडाकुआ में की गई थी |


                                          लेखक--अशोक सिंह राजपुरोहित सिया गोलिया

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महाकुम्भ श्री प्रयागराज त्रिवेणी संगम पर संत श्री खेतेश्वर सेवा शिविर आप सभी सादर आमंत्रित हैं!

आप सभी सादर आमंत्रित हैं!
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सभी भक्त जनों को सूचित किया जा रहा है कि विश्व में आस्था एवं श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र माने जाना वाला महाकुम्भ मेला आगामी 11 जनवरी 2013 में प्रयाग महाकुंभ, इलाहाबाद में मनाया जा रहा है जिसमे हर साल की भाति इस साल भी ब्रह्मवतार संत श्री 1008 श्री खेतेश्वर महाराज के परम शिष्य श्री ब्रह्मा सावित्री सिद्ध पीठाधीश्वर तुलछाराम महाराज जी महाकुम्भ श्री प्रयागराज त्रिवेणी संगम 2013 ब्रह्मवतार संत श्री खेतेश्वर सेवा शिविर 11/012013 से 15/02/2013 शामिल हो रहे है श्री खेतेश्वर ब्रह्मधाम तीर्थ मंदिर और राजपुरोहित समाज विकाश न्याय आसोतरा राजस्थान ट्रस्ट की ओर से एक महा कैम्प लगाया जायेगा! इस कैम्प में सभी भक्तो के लिए रहने-खान की नि:शुल्क व्यवस्था है, कैम्प 11 जनवरी 2013 से शुरू हो जायेगा!

मुख्य प्रोग्रामो की रुपरेखा http://www.facebook.com/rajpurohitpage  पर उपलब्ध है!

आप सभी पधार कर अपने जीवन को सफल बनावे और इस महान दिन का आनंद ले....  सुगना फाउंडेशन मेघलासिया

महाकुम्भ श्री प्रयागराज त्रिवेणी संगम 2013 ब्रह्मवतार संत श्री खेतेश्वर सेवा शिविर के विषय में ओर को भी जानकारी के लिए
09414108801, 09415632109, 09415633567, 09286464911

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श्री खेतेश्वर सामान्य ज्ञान परीक्षा 13 को

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बालोतरा। श्री खेतेश्वर शिक्षा प्रसार एवं सेवा समिति बालोतरा के तत्वाधान में राजपुरोहित समाज के विद्यार्थियों के लिए खेतेश्वर सामान्य ज्ञान परीक्षा का आयोजन 13 जनवरी को सुबह 11 बजे राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में होगा। परीक्षा प्रभारी बाबूसिंह बीसू के अनुसार यह परीक्षा प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक व कॉलेज स्तर तक के विद्यार्थियों केलिए होगी। किशोरसिंह साथुआ जेठंतरी के सौजन्य से प्रतिभागियो को पुरस्कृत करने के साथ ही उनके लिए व्यवस्था की जाएगी। इसी दौरान श्रीमती विजयलक्ष्मी पारलू की ओर से राजपुरोहित समाज की महिला जनप्रतिनिधियों का स्नेह मिलन समारोह होगा।
इसमें बालिकाओं के लिए रंगोली व मेहंदी प्रतियोगिताएं भी आयोजित होगी। प्रथम व द्वितीय स्थान पर रहने वाली बालिकाओं को श्रीमती विजयलक्ष्मी पारलू की ओर से पुरस्कृत किया जाएगा। इसके अलावा सामान्य ज्ञान परीक्षा मे प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान पर रहने वाले बालक-बालिकाओं को आगामी प्रतिभावान सम्मान समारोह में सम्मानित किया जाएगा। परीक्षा प्रभारी बाबूसिंह बीसू ने बोर्ड व विश्वविद्यालयी परीक्षाओं में समिति द्वारा निर्घारित अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को उनकी अंकतालिकाएं 30 जनवरी तक खेतेश्वर भवन में जमा करवाने को कहा है।
 प्रस्तुतकर्ता
 सवाई सिंह आगरा (सदस्य)
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