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6.5.17

श्री श्री 1008 श्री गंगा नाथजी महाराज के श्री मुख से गुरु महिमा



परम् पूजनीय गुरुदेव पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज को मुझ जैसे शिष्य ही नही अपितु यह पूरा क्षेत्र गुरुवत मानता है, पीरजी एक युग पुरुष अवतारी थे, जो सभी भक्तों के दिलों पर राज करते थे, आपका ओजस्वी व्यक्तित्व  मन-मोहक, मधुर- वाणी सहज व्यवहार तथा आपकी आशीर्वाद मयी आँखों में करुणा की झलक एवँ प्रेम, भक्तो को आकर्षित कर लेता था ।

मै जब गुरु महाराज के चरणों में 7 मई 1981 गुरूवार को उपस्थित हुआ था, तब मुझे पीरजी के दर्शन कर अलौकिक सुखानुभूति हुई, आपके सन्निकट रहने पर मुझे सवतः ही योग एवँ भेख के संस्कारों की प्रेरणा एवँ सत्संग की अध्यात्म ऊर्जा मिलने लगी ।

मुझ पर बावसी ने ऐसा अदभुत कृपा मय शक्तिपात कर दिया कि उनके जीवन की प्रायोगिक गीता के अनुभव सवतः ही मुझे आत्मसात होने लगे, इतना ही नही आप दया एवम् करुणा से परिपूर्ण संत ह्रदय थे, वे स्वयं की अपेक्षा अन्य व्यक्ति की समस्या एवम् कष्टों को देखकर सवेंदनशील एवम् भावुक हो जाते थे, वस्तुतः बावसी पर दुःख कातर थे ।

पीरजी की वाणी में सचमुच सत्यता थी, ह्रदय में अपार ईश्वरीय प्रेम था, मन में शील का दृढ भाव था, आखों में अदभुत करुणा थी, हाथ में प्रतिपल दान और उनके चरणों में सदैव तीर्थ का वास था ।

आपके दर्शन कर प्रतियेक जीव कल्प वृक्ष के समान शीतलता एवम् शांति का सुखद अहसास करता था, श्रीनाथजी के समत्कारिक व्यक्तित्व की आभा निहार कर हर व्यक्ति की कामनाये कल्प वृक्ष की भाँति पूर्ण हो जाती थी, पीरजी महाराज सच्चे त्यागी, तपस्वी, निर्मोही, शीलवान सद् लक्षणों से युक्त सतगुरु की प्रति मूर्ति थे ।

आप प्रकति प्रेमी थे, पशु, पक्षी प्राणी मात्र के दया-भाव, करुणा एवम् सहानुभूति रखते थे, इस क्षेत्र में आपने भक्तों को प्रेरित कर मूक प्राणियो के लिए गौशाला एवम् पक्षियों के चुग्गे हेतु चबूतरों का उचित प्रबंध करवाया ।

जन कल्याण के लिए भी आपने प्याऊ, धर्मशाला, छात्रावास का निर्माण करवाने का भरपूर प्रयास किया, छोटे-छोटे गांवों में भाविकों को प्रेरणा देकर वहाँ मंदिरों का नव निर्माण करवाकर उनमें देवताओ को प्रतिष्टित्त करवाया ।

योगी चाँदनाथजी के अनुसार पीर शान्तिनाथजी चमकते सितारों में एक देदिव्यमान नक्षत्र थे, वे ध्रुव तारे की भांति संत समाज में एक अटल नक्षत्र की तरह सुभोभित थे, पीरजी सचमुच परोपकार पुण्याय के लिए, अन्य जीवों के लिए ही जीते थे, उनकी दृष्टि समाज तथा व्यक्ति के लिए सदैव सकारात्मक थी ।

शास्त्रों में उल्लेख है, कि संत और चन्दन का एक ही स्वभाव होता है, चन्दन की सुगन्ध से पूरा वातावरण सुवासित हो जाता है, इसी तरह पीरजी जैसे संत महापुरुष अपने गुण एवम् संस्कारों से पुरे परिवेश को सुगन्धित कर देते थे ।

पीरजी महाराज ने संत जीवन में किसी समाज विशेष से न जुड़कर हर समाज से जुड़कर उनके प्रति सवेदनशील होकर समाज की एकता एवम् परम्सपर प्रेम बनाये रखने जैसे मानवीय मूल्यों की रक्षा करने की शिक्षा दी, गांवों में जहाँ आपने नाथजी के सेवगी क्षेत्र एवम् अन्यत्र स्थानों पर चातुर्मास व्रत की उपासना की, वहाँ मुझे भी आपकी सन्निधि का सुअवसर मिला, वहाँ मैने प्रत्यक्ष अनुभव किया कि आपने धर्म-रक्षा, संत-सेवा, मानव-सेवा, सनातन संस्कृति सरक्षण के लिए एवम् उस गाँव की 36 कॉमो की एकता पर बल दिया ।

आप चातुर्मास करने की सहमति उस गाँव विशेष में उस समय ही देते थे, जब 36 कॉम के सभी समाज, परिवार, कुटुम्ब, एकता की एक डोर में आ जाते थे, यह सदविचारों एवम् सदभावों की एक अलग अनुपम तथा अनुकरणीय मिशाल थी ।

उन्होंने हम शिष्य मण्डली एवम् संत-महात्माओ को हमेशा सच्ची साधुताई निभाने का सन्देश दिया, वे हमे कहते थे, कि तुम तन-जोगी बनने की अपेक्षा मन-जोगी बनो, बाहर से साधू दिखने के बजाय भीतर से साधू बनो ।

मेरे पूर्व जन्म के संस्कार थे कि मुझे ऐसे समर्थ एवम् पूर्ण गुरु मिले जो सब कुछ होते हुए भी साधारण संत की भांति सहजता से हमारे साथ व्यवहार करते थे, जहाँ तक की गुरुदेव दैनिक दिनचर्या में भी, भोजन शयन स्वम वार्तालाप में भी कोई पर्दा या गोपनीयता किसी से नही रखते थे, वे हमेशा सहजता से ही रहते थे, पीरजी सभी लोगों को समान द्रष्टि एवम् समभाव से देखते थे, स्त्री-पुरुष, अमीर-गरीब आदि में उनकी द्रष्टी में कोई भेदभाव नही दिखता था ।

इसलिए ऐसे समर्थ गुरु की महिमा का कोई पार नही है, न हम अपने मुख से उनके गुणों का बखान करने में समक्ष है ।
               -- सबके नाथजी स्त्रोत

संग्रहकर्ता :-
राठौड़ भंवरसिंह भागली
श्री शान्तिनाथजी टाईगर फोर्स भारत


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