26.7.13

मारवाङी शब्द तरकश रा तीर....श्री नरपतसिंह राजपुरोहित

"मारवाङी शब्द तरकश रा तीर "
वाह रे म्हारा भारत अटै काँई काँई होवे खटका ,
धोली टोपी रे धणियोँ री अटै चाले मरजी ,
पाँच बरस री कुरसी खातर वोट पङावै फरजी ,
बात बितया समझ मेँ आवै
तो जनता रे मगज मेँ लागे झटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै काँई काँई होवे खटका ।।
घुसणखोरा रा अटै लागे मोटा मेला ,
भ्रष्टाचार रा अटै होवे खूब रेलमपेला ,
दवाखाना मेँ दवाया अटै मिले नकली ,
इण रे लारे किती बिमारियाँ
लोगा ने मारन भखली ,
मायली मार रे माय आ जनता
काँई काँई खावे फटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै काँई कांई होवे खटका ।।
मोटीयारा रे मायने अटै कांई कांई झलगी आदत ,
बीङी सिगरेट गाँजा अमल
अर आ दारु री लत ,
यां मोटीयारा रे अधर मेँ ओ देश कटिने जावे ,
वा मोडर्न जमाना रा नखरा मेँ याने अक्ल कोनी आवे ,
खेल छुटया कबड्डी खोखा
ए तो खेले जुआ अर मटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै कांई कांई होवे खटका ।।
आ छोटी सी लैणा रो
अर्थ समझलो भायां ,
राखौ आबरु किन्या री
नी तो कोनी मिलेली लुगायां ,
काम अस्यो करजौ म्हारा साथिङा
के लोग थाँ पर इतरावे ,
चौखा कामाँ रे मायने
आपणो देश सुधर जावै ,
"हमसफर" अस्या शब्दां रा अब
कितरा लगावेलो फटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै कांई कांई होवे खटका ।।
हमसफर-ए-कलम । 

रचना भेज ने वाले 
युवा कवि श्री नरपतसिंह राजपुरोहित हमसफर

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