7.1.17

श्री शान्तिनाथजी महाराज के बचपन की एक सत्य घटना

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श्री श्री 1008 पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के बचपन की एक सत्य घटना :-

इसे लिखते-लिखते मेरी आँखे नम हो रही थी, बड़ी मुश्किल से लिख पाया हूँ, जरूर पढें _

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज की अनसूनी सत्य कहानी जो बहुत कम लोग जानते होंगे, पीरजी महाराज के मन की बात, भागली वाले भूरारामजी मेघवाल की जुबानी, भूरारामजी, पीरजी बावसी के बचपन के मित्रों में से एक है ।

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज भगवान शिव के अवतार माने जाते है, उन्होंने भागली गाँव में जन्म लिया ये बड़े सौभाग्य की बात है, और उनके माता-पिता के अच्छे कर्मो का फल है, जालोर की धरती पर भगवान् को अवतार लेना ही था, लेकिन किस तरह अवतार लेना है, यह उन्होंने एक लीला रची, और गाँव भागली में जन्म लिया ।

इस दीवाली पर, दीवाली मिलन के लिए ( दीवाली रा रामा सामा करने ) भूरारामजी मेरे घर आये थे, बैठे - बैठे पुरानी बातें कर रहे थे, तो मैने उनको पीरजी महाराज के बचपन के बारे में पूछा, तो उन्होंने मुझे बताया की ओटसिंहजी (पीरजी महाराज के बचपन का नाम )और मैं, हम दोनों बचपन में अच्छे मित्र थे, (क्योंकि पीरजी महाराज ने कभी किसी से भेदभाव नही रखा) उनके बचपन में मित्र तो बहुत थे, लेकिन में भी उनके खास मित्रों से एक था, हम सभी साथ में खेलते कूदते और साथ-साथ खेतों में पशु चराने भी जाते थे ।

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज के माता-पिता द्वारा पूर्व जन्म में की हुई कमाई थी, जो उन्हें इस जन्म में ओटसिंह के रूप में मिली, और भगवान शिव ने उनके घर जन्म लिया और परचा दिया, पीरजी महाराज ने पहला परचा बालपण में ही दिया था, पीरजी बावसी छः महीने की अल्प आयु में आँखों से अंधे हो गए थे, यह परचा (समत्कार) उन्होंने इसलिए किया होगा, क्योंकि अगर वो आँखों से अंधे नही होते तो, उनके माता-पिता उनको सिरेमन्दिर जलन्धर नाथजी महाराज के चरणों में नही चढ़ाते, इसलिए उन्होंने ये परचा दिया होगा ।

पीरजी श्री शान्तिनाथजी महाराज 6 महीने की आयु में अंधे हो गए थे, तो उनके माता- पिता ने श्री जलन्धरनाथजी महाराज से प्रार्थना की, कि अगर हमारा बेटा ठीक हो गया तो, हम इसे सिरेमन्दिर आपके चरणों में समर्पित कर देंगे, और हुआ भी यूँ ही पीरजी बावसी बिलकुल ठीक हो गए, उनके आँखों की रोशनी वापस आ गई, बावसी को बराबर दिखने लगा, धीरे-धीरे हँसते-खेलते पीरजी बावसी बड़े हो रहे थे, देखते ही देखते 9 वर्ष के हो गए, बड़े होने पर उनका ज्यादा ध्यान भक्ति भाव में रहता था, और उस समय केशर नाथजी महाराज भी भागली में ही तपस्या करते थे, उनके पिताजी केशर नाथजी महाराज की सेवा में जाया करते थे, तो पीरजी बावसी भी साथ में जाया करते थे, और केशर नाथजी महाराज की सेवा करते थे ।

एक दिन शुभ समय और शुभ घडी देखकर उनके माता- पिता ने उनको केशर नाथजी महाराज के चरणों में समर्पित कर दिया, एक दो दिन वहाँ पर रहे, और फिर भागकर वापस घर आ गए, ऐसा दो-तीन बार हुआ, उनके पिताजी केशर नाथजी के पास लेकर जाते और वो भागकर फिर घर आ जाते, बोले मुझे बाबा नही बनना है, मै तो यही आपके पास ही रहूँगा, उनके पिताजी ने सोचा की बच्चा है अभी, बड़ा होने पर अपने आप जायेगा, कुछ वर्ष बीते पीरजी महाराज ओर बड़े हुए, पिताजी के काम - काज में हाथ बटाते, और हम साथ साथ खेतों में गायों को चराने जाते, हम सभी दोस्त मिलकर खेलते कूदते ये हमारी रोज की दिनचर्या थी, दिन कैसे निकले पता ही नही चला, देखते ही देखते पीरजी महाराज 15-16 वर्ष के हो गए थे ।

पोस्ट का मुख्य भाग :-

भूराराम जी ने आगे बताया कि एक दिन हम गायों को चराकर घर आ रहे थे, गुरु पूर्णिमा का दिन था, संयोग वंश उस दिन हम गायों को लेकर सिरेमंदिर, चित्-हरणी की तरफ गए हुए थे, शाम का समय था, हम लोग घर के लिए रवाना हुए, आधे रास्ते तक पहुँचे थे, कि अचानक पिरजी बावसी को दिखना बंद हो गया, उन्होंने मुझे आवाज दी और बोले अरे भूरा मुझे दिख नही रहा है, हम वहीं पर ही बैठ गए, मैने देखा उनकी आँखों को, आँखे ठीक थी लेकिन उन्हें दिख नही रहा था हम वही पर बैठ गए, थोड़ी देर बाद पीरजी बावसी सिरेमन्दिर की तरफ चले तो उन्हें दिखने लगा और वापस गाँव की तरफ मुड़े तो दिखना बंद जाता, पीरजी बावसी ने श्री जलन्धर नाथजी महाराज से प्रार्थना की, बहुत देर तक प्रार्थना करने के बाद फिर हम घर की ओर चले तो उनको बराबर दिखने लगा और हम घर आ गए ।

तब उन्होंने निश्चय किया कि कल मुझे सिरेमन्दिर जाना है, ये बात उन्होंने घर पर नही बताई, रात में ही उन्होंने सभा का सन्देश भिजवाया (गोम हाको करायो) कि कल सुबह रावतसिंह के घर सभा है, सभी गाँव वालो को आना है, सुबह होते ही सभी गाँव वाले रावतसिंह के घर आने लगे, रावतसिंह जी जलन्धरनाथजी के मंदिर (गांव की मडी ) में बैठे थे, रावतसिंह जी को मालूम ही नही कि मेरे घर सभा है, सभी लोग उनके घर की ओर जाने लगे तो उन्होंने गांव वालों को पूछा आप लोग कहा जा रहे हो, और आज सभा किसके घर पर है, गाँव वालो ने बोला की आपके घर पर ही तो सभा है, हम सब आपके घर पर ही तो जा रहे है, रावतसिंह जी घर आये तो पता चला की ये सभा तो ओटसिंह ने रखवाई है, फिर बहुत बड़ी सभा हुई, अमल गलिया, जीमण हुआ, और फिर पीरजी महाराज ने सभी से सिरेमन्दिर के लिए विदाई ली, फिर कई वर्षो बाद दीक्षा समारोह (पीरजी बावसी की कटम जात्रा करवाई तब ) में वापस अपने गाँव भागली पधारें थे ।

धन्य हो भागली, धन्य हो उनके माता पिता को और धन्य हुए हम सब, जो हमारे गाँव भागली में इतने महान सन्त ने जन्म लिया, हमारा गाँव उनके चरणों की धूल है, और हम उनके चरणों के दास है ।

Bhagli Sindhalan


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