10.5.21

मदहोश हैं हम बिन आप के सहारे

खामोश है दरिया, खामोश है किनारे ।
मदहोश हैं हम बिन आप के सहारे

    भंवर सी बन डोल रही, मन की मस्ती   
    मदहोश है, हम बिन आप के सहारे ।

       याद तुम आती हो ,लहरों की तरह ।
         फिर गुम हो जाती हो, बुलबुलों की तरह। 

           मदहोश हैं ,हम बिन आपके सहारे ।
          
             भटक रहे बन, मजनू तुम्हारे,
               तुम लैला बन ,छाई हो मन - मंदिर में।

      मदहोश हैं हम बिन आप के सहारे


  स्वरचित लिखित मौलक / अप्रकाशित
सर्वाधिकार सुरक्षित
    लेखक श्री महेश सिंह राजपुरोहित बावड़ी
 जोधपुर राजस्थान

No comments:

Post a Comment

यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर(Join this site)अवश्य बने. साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ. यहां तक आने के लिये सधन्यवाद.... आपका सवाई सिंह 9286464911