21.5.24

मर्दानगी सुजा कंवर राजपुरोहित जन्मदिवस पर विशेष

मर्दानगी सुजा कंवर राजपुरोहित 

जन्म - लाडनूं ठिकाना नागोर 
 पिता - हड़वतसिहजी राजगुरु 

ससुराल - बित्ती किसनगढ़ ठिकाना 
पत्ती- बेघनाथसिंहजी सेवड़ 

लाडनूं ठिकाना ठाकुर बहादुरसिंह जी का राज था 

अंग्रेजों का आतंक जबरदस्त , अंग्रेज लाडनूं पर कब्जा करना चाहते थे लाडनूं को घेर लिया । बहादुरसिंहजी के गढ़ के आगे शेरनी की आवाज गुंज उठी। ठाकुर साहब आपकी बेटी ज़िन्दा है ठाकुर साहब ने देखा ।

मर्दाना कपड़े पहने हुए हाथ मे तलवार एवं लम्बछड़ बंदूक घोड़े पर सवार सुजा कंवर राजपुरोहित टूट पड़ी अंग्रेजों कि फोज पर रणचंडी विकराल रूप धारण कर अंग्रेज फोज को मौत के घाट उतारा लाडनूं ठिकाना जीत गया ।

ज्यो ही संदेश गया ठाकुर बहादुरसिंहजी के पास ठाकुर साहब ने सुजा कंवर के स्वागत के लिए ढोल नगाड़े बजने लगे ।

ठाकुर साहब ने कहा बहादुर सुजा कंवर आज से सुरजनसिंह के नाम से पुकारा जाएगा ।

ठाकुर साहब ने बड़ा मान सम्मान किया रियासत की आधी संपत्ति कि हकदार सुजा कंवर होगी लेकिन सुजा कंवर ने मना कर दिया 

मर्यादा वेषभूषा तलवार बंदूक सांकल ये सुजा कंवर के हथियार 

ठाकुर साहब के आदेशानुसार सुजा कंवर के बराबर कोई नहीं 
बैठता सुजा कंवर के मान सम्मान 
मे सब आतुर थे 

सुजा कंवर एक बार आ रही थी 
बचाओ बचाओ की आवाज आई 
देखा तो खुखांर भाऊ डाकू एक औरत कि इज्जत पर हाथ डाल रहा था 

शुरवीर सुजा कंवर के आख्या सूं अंगारा बरसण लाग्या झपट गई 
तलवार से भाऊ डाकू का धड़ अलग ऐसी सुरमा थी सुजा कंवर 
ठाकुर साहब बहुत खुश हुए एवं 
सम्मान समारोह रखा 

18 साल की उम्र मे सुजा कंवर का विवाह बित्ती के बेघनाथसिंहजी सेवड़ के साथ हुआ 

बित्ती जागीरदार बेघनाथजी अपनी पत्नी सुजा कंवर को ऊंट पर लेकर आ रहे थे शाम का समय था 

उस समय डाकुओं का बोलबाला था तीन चार डाकुओं ने घेर लिया 

डाकुओं ने कहा सभी माल दे दो 
बेघनाथजी ने दे दिया डाकु बोले 
बिनणी का आभुषण निकाल कर दो सुजा कंवर देख रही थी एवं 
पती परमेश्वर कांप रहे थे 

सुजा कंवर ने पती के कमर से तलवार खिंच कर जय भवानी 
का नाम पुकारती ऊंट से कूद पड़ी 

डाकुओं से लोहा लिया एक डाकू की धड़ अलग एक का सिर अलग 
एक डाकू भाग गया 

फिर सुजा बोली हे पत्ती परमेश्वर मेरा कवारपणा उतर गया 
आप बिती पधारो 

डाकुओं का ऊंट लेकर वापस घर आ गई 

राजगुरुओं की बेटी सुजा कंवर 
हरिद्वार गई वहां पर अखंड ब्रह्मचारी रहने का संकल्प लिया 

फिर लाडनूं की कमांड सम्भाली 
नव विवाहित डोली को अपने स्थान पर पहुंचाना 

सुजा कंवर के भंय से लाडनूं ठिकाना मे डाकू एवं अंग्रेज गायब हो गये  

सुजा कंवर समाज सेवा एवं परोपकार एवं मानव सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया 

1901 मे बहादुर शेरनी रणचंडी वीरांगना लाडनूं ठिकाना रियासत सुनी कर गई स्वर्ग सिधार गई 

बाईसा सुजा कंवर उर्फ सुरजनसिंह अमर नाम कर दिया ।

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