आज की बीकानेर की बात
एक वक़्त ऐसा आता है जब बड़े से बड़ा महारथी पूरे संसार से उदासीन हो नई, दूसरी, अनजानी दुनिया की यात्रा की तैयारी करने लगता है। बड़े नेता जी की पोस्ट देख ख़ुद के मन का हाल लिखने से रोक न सका।
आज सुबह उठा तो थोड़ा डिप्रेस्ड था। वजह कोई नहीं। बस, दुनिया का ग़म। कल कुछ आनबोल जीवों की मदद की ज़्यादातर मामले घायल और उपचार के ही थे । बीकानेर के विभिन्न मौहल्लों के सब के सब जेन्युइन केस थे। किसी को निराश नहीं किया। सबकी हैप्पी एंडिंग हुई। लेकिन इन बेजुबानों के दुःख को देखते सुनते लगने लगता है कि संसार दुखों का सागर है। कुछ भी कर लीजिए, दुख से नहीं भाग सकते। इंसान में मानवता ही मर गई है थोड़ी भी शर्म नही है । इन जानवरों के जीवन में इतना दुख है तो हम भला सुख कैसे महसूस कर सकता हूँ। और तो और इन जानवरों के लिये बने होस्पिटल की तो हालात बदसेबत्तर है कोई देखने सुनने वाला नही जानवर एक बार बीकानेर वैटनरी होस्पिटल आगया तो फिर उसका भगवान ही मालिक है यहाँ के स्टाफ आपकी कोई मदद नही करेंगे, अब तो लगता है जानवरो के होस्पिटल में काम करने वाले कर्मचारियों में भी जानवरो के जीन आगये है , खेर इनके पाप ये जाने ,अपना तो कुछ पत्रकारिता का हलफनामा है सो काम हो जाता है ,,आमजन के साथ क्या होता होगा यहाँ ये तो ,,,,है भगवान तूँ ही जाने ।।
आज pbm गया था एक मित्र की माता जी को देखने किडनी समेत कई अंग प्रभावित हैं। डायलिसिस हुई। ज़िला अस्पताल में। निःशुल्क। इनके इकलौते पुत्र और मेरे मित्र श्याम सिंह दिन रात अस्पताल में ही रहते हैं, माँ की सेवा में। ये सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल के हेड मास्टर हैं।
अस्पताल में मरीज़ों की बाढ़ आई हुई है। हर वार्ड की गैलरी में नीचे ही मरीज लेटे पड़े है ग्लूकोज चढ़ रहा है स्ट्रेचर पर दो दो लिटा लिटा कर इलाज हो रहा है। मरीज़ों की तादाद देख कर लगता है जैसे पूरा बीकानेर ज़िला बीमार हो रहा हो। स्वास्थ्य विभाग कहाँ है पता नही मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हो चुके ज़िला अस्पताल का विस्तार भी मरीज़ों की वेटिंग लिस्ट ख़त्म नहीं कर पा रहा है। हर वार्ड में डेंगू के केस आरहे है । सरकारी कागजो में 45 है तो आप जान सकते हो कि असल मे कितने होंगे ,,बच्चे जवान बूढ़े लड़की महिला सब के सब बीमार। हर एक के हाथ मे फाइल प्लास्टिक थैला दवाई लेकर टहल रहे यहाँ से वहाँ कोई सुध नही ले रहा इनकी मरीज जाएं तो कहां जाएं ,, सरकार में गरिबो के लिए दवाई इलाज फ्री है । ओर होस्पिटल में इलाज के लिये डॉक्टर ही नही है जगह भी नही है गरीब कहाँ जाये ।
आज दो लोगों ने मुझे फ़ोन कर पैसे कमाने के कुछ नये तरीक़े के बारे में समझाया। मैंने उन्हें देर तक सुनने के बाद समझाया कि मित्र मेरे दुख किसी पैसे से नहीं हरे जा सकते। मेरा दुख निजी नहीं, सामाजिक है। कोई बीमार दुखी परेशान दिखता है तो मैं परेशान हो जाता हूँ। इसीलिए मैं अक्सर ख़ुद की एक कृत्रिम खुशहाल दुनिया में रहता हूँ जहां दुःख दर्द के कातर स्वर न पहुँच जाए।
मैंने मित्र को समझाया कि जब मरने के बाद और जन्मने से पहले की दुनिया के बारे में अपन को पता ही नहीं है तो पैसे कमा कर करेंगे क्या। दो टाइम भोजन और सुंदर नींद के लिए पैसों की ज़रूरत नहीं पड़ती। इतना प्रकृति / भगवान ने सबको दे रखा है। गाँव में तो जो गरीब कहे जाते हैं उन्हें अस्सी साल की उम्र में खेतों में काम करते देखा और पचास साल के बाबू साहब को बीपी सुगर से जूझते हाय हाय करते पाया। इसलिए प्रसन्नता और उम्र का अमीरी से कोई सीधा रिश्ता नहीं है।
आज फ़ोन पर मैप देख रहा था, ज़ूम इन और ज़ूम आउट कर कर के। बीकानेर में इन दिनों हुई घटनाओं के बारे में स्थान देख रहा था ,, इस शहर के हर मोहल्ले में चेन स्केचिंग की घटनाओं और नशा बिक्री हर तरफ है और तो और बीकानर के ह्र्दय स्थल जूनागढ़ के पास भी दिन में भी अकेले जाना डर लगता है पता नही झपटमार कब कोई झपट्टा मारे और पता चले कि समान गया सो गया किसी धार वाले चीज से मार के भी गया है ,, अब तो नशे में तैरता बीकानेर हो रहा है नशे के लिए पैसा चाइये और पैसा ऐसे लूट रहे है पुलिस कहाँ बीजी है पता नही , हाँ शायद कल कुछ खाना पूर्ति के लिए आमजनता के साथ हर चोराये पर शक्ति कर सकती है , एक दिन अखबार में पढ़ा था कि बीकानेर से सीसीटीव कैमरे हर चोराये पर लगायें जायंगे बजट भी पास हुवा बजट का बिल बनकर भुगतान भी हो गया , 90% कमीसन में चला गया तो फिर ,,डेमो कैमरे ही लगेंगे ,,और उनको पता है कि कुछ समय बाद फिर इन्हें ठीक करवाने के लिए नये सिरे से कैमरों के लिए टेंडर करेंगे ,,अब तो बीकानेर में कैमरे लगाने सूरसागर की तरह दुधारू गाय हो गये है जब चाहो ,,,लूटों ,,,हर जगह नशे वाले आदमी दिखते है सबको अपना अपना नशा है ।
अब जाकर ऐसा फील हुआ, वर्ल्ड टूर निपटा कर लौटा हूँ और सबसे सही वही जगह है जहां आप एकांत में सुकून से रह पाते हों।
अब मेरा मानना है कि संसार की काया एक माया है और कहीं कुछ रखा नहीं है। एक उम्र है जो काटनी है रो के हंस के!
वैसे भी आजकल जिस तरह नौजवान लोग हार्ट अटैक से मर रहे हैं उसे देख कर लगता है किसी का कभी भी नंबर आ सकता है इसलिए अपनी यात्रा के विस्तार को समेटना शुरू करो। न जाने कब आ जाए धरती के क़ैद से निकलने का परवाना!
सादर :- रामदयाल सिंह राजपुरोहित
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