20.7.13

वो खेत हरियाले .वो गाँव के पेङ फलवाले ..श्री नरपतसिंह राजपुरोहित

वो खेत हरियाले ,
वो गाँव के पेङ फलवाले ,
वो मीत मतवाले ,
वो खेल का मैदान
जहाँ खूब की थी खेल मस्ती 
वो छोटा सा बाजार
जहाँ कुल्फी मिलती थी सस्ती ,
वो गाँव की शाला
जहाँ सीखी थी वर्णमाला ,

वो टूटी सी सङक
जहाँ साईकिल चलाते थे ,
वो गाँव के मीठे बोर
मन को बहुत भाते थे ,
वो प्यारी सी गायेँ
हमने बहुत चराई थी
उनके दूध की खीर बहुत खाई थी ,
वो चबुतरे के कबुतर
जब चुग्गा चुगते थे 
आसमाँ भी हो जाता था हसीन
जब वो उङते थे ,
वो गाँव की नदी
जहाँ हम बहुत नहाये
ए बचपन तुझे याद करके
हमने आँसु बहुत बहाये ,
अब पापी पेट के वास्ते
हुए बङे और छोङे गाँव के रास्ते ,
याद आता है जब बचपन
तो कहते कितना प्यारा था ,
लङका लङकी का कोई भेद नहीँ
भाई बहिन का यारा था ,
सोचते है बचपन कितना जल्दी गुजर गया ,
वो पिछे छूट गया पर
यादोँ का घर कर गया ।
ए "हमसफर" उस बचपन को याद रखना ,
वो वापस अब आना नहीँ
सपनोँ मेँ स्वाद चखना ।
~ हमसफर यदि हमारा
भेज ने वाले भाई 

श्री नरपतसिंह राजपुरोहित  हमसफर
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