5.8.18

राजपुरोहित को जानना चाहते हो? मैं आपको बताता हूँ कि राजपुरोहित कौन है...अभय सिंह जसोल


राजपुरोहित को जानना चाहते हो? मैं आपको बताता हूँ कि राजपुरोहित कौन है।

राजपुरोहित वह है जो वशिष्ठ के रूप में केवल अपना एक दंड जमीन में गाड़ देता है,जिससे विश्वामित्र के समस्त अस्त्र शस्त्र चूर हो जाते हैं और विश्वामित्र लज्जित होकर कह पड़ते हैं-
धिक बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलं बलं।
एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्वस्त्राणि हतानि में।
(क्षत्रिय के बल को धिक्कार है। राजपुरोहित का तेज ही असली बल है। राजपुरोहित वशिष्ठ का एक ब्रह्म दंड मेरे समस्त अस्त्र शस्त्र को निर्वीर्य कर दिया)

राजपुरोहिता वह है जो परशुराम के रूप में एक बार नहीं,21 बार आततायी राजाओं का संहार करता है।जिसके लिए भगवान राम भी कहते हैं-

विप्र वंश करि यह प्रभुताई।
अभय होहुँ जो तुम्हहिं डेराई।
जिनके विषय मे यह श्लोक प्रसिद्ध है-

अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

चार वेद मौखिक हैं अर्थात् पूर्ण ज्ञान है एवं पीठपर धनुष-बाण है, अर्थात् शौर्य है,अर्थात् यहां ब्राह्मतेज एवं क्षात्रतेज, दोनों हैं । जो कोई इनका विरोध करेगा, उसे शाप देकर अथवा बाणसे परशुराम पराजित करेंगे । ऐसी उनकी विशेषता है ।
राजपुरोहिता वह है,जो दधीचि के रूप में अपनी हड्डियों से बज्र बनवाकर,वृत्तासुर का अंत कराता है।जब तक धरती है,इतिहास मिट नहीं सकता

राजपुरोहित वह है,जो चाणक्य के रूप में,अपना अपमान होने पर धनानन्द को चुनौती देकर कहता है कि अब यह शिखा तभी बँधेगी जब तुम्हारा  नाश कर दूंगा और ऐसा करके ही शिखा बाँधता है।

राजपुरोहित वह है जो अर्थ शास्त्र की ऐसी पुस्तक देता है,जो आज तक अद्वितीय है।

राजपुरोहित वह है जो पुष्य मित्र शुंग के रूप में मौर्य वंश के अंतिम सम्राट बृहद्रथ को ,उठाता है तलवार और स्वाहा कर देता है।भारत को बौद्ध होने से बचा लेता है।यवन आक्रमण की ऐसी की तैसी कर देत ब्राह्मण है
राजपुरोहित वो है जिसने महाराणा प्रताप व उनके भाई शक्ति सिंह के मध्य युद्ध को रोकने के लिए,उनके समक्ष चाकू से अपनी ही हत्या कर दिया था।पता नहीं है तो श्याम नारायन पांडेय का महाकाव्य हल्दी घाटी,प्रथम सर्ग की ये पंक्तियां पढ़ो-

उठा लिया विकराल छुरा 
सीने में मारा राजपुरोहित ने। 
उन दोनों के बीच बहा दी 
शोणित–धारा ब्राह्मण ने।।

वन का तन रँग दिया रूधिर से 
दिखा दिया¸ है त्याग यही। 
निज स्वामी के प्राणों की 
रक्षा का है अनुराग यही॥ 

राजपुरोहित था वह राजपुरोहित था¸ 
हित राजवंश का सदा किया। 

राजपुरोहित ही थे वो द्रोणाचार्य जिनके कोप और क्रोध से बचने के लिए स्वयं ब्रह्माजी ओर भगवान श्री कृष्णा को भी वचन और कपट से उनसे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग नही करने दिया।

     आप उन महान पुर्वजो की संतान हो काल भी आपसे भयभीत रहेगा अगर आप अपने राजपुरोहितान धर्म का पालन करोगे।

इसलिए मेरे समाज के युवा भाइयो आप अपने इतिहास शौर्यता संस्कार के हिसाब से रहो लोग आपको स्वयम राष्ट्रगुरु की नजरो से देखेंगे।

और अधिक जानकारी चाहिए तो मेरे इनबॉक्स में मेसेज करना।

अभय सिंह राजपुरोहित जसोल


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