श्री जलन्धरनाथपीठ सिरेमन्दिर जालौर लगभग 2000 वर्ष पुराना पीठ है, यह पीठ कणीयागिरी पर्वत पर स्थित है, इस कणीयागिरी पर्वत का वर्णन हमे त्रेतायुग से मिलता है !
कणीयागिरी पर्वत पर स्थित शिश स्वरुप श्री जलन्धरनाथ पीठ श्री जलन्धरनाथजी की तपोस्थली है, यहाँ पर योगेश्वर अदर्श्य रुप में युगों योगो से तपस्यारत है,ईतिहास के जानकार कहते है कि यह पीठ लगभग 2000 वर्ष पुराना है !
नाथपंथ का आरम्भ स्वयं भगवान शिवशंकर स्वरूप आदिनाथ से हुआ बताते है, योगेश्वर आदिनाथ के दो शिष्य थे, एक श्री मछंदर नाथजी महाराज और दुसरे श्री जलन्धरनाथजी महाराज,
कालान्तर में पिंडलियां इस भांति हुई:-
श्री मछंदर नाथजी के शिष्य श्री गोरखनाथजी हुए, श्री गोरख नाथजी के शिष्य श्री सिद्ध विचार नाथजी "राजा भरथरी" हुए, उनके आगे श्री आत्म नाथजी, श्री भैर नाथजी, श्री भूचर नाथजी, श्री शितल नाथजी, श्री मंगल नाथजी, श्री संतोक नाथजी, श्री आम नाथजी, श्री सोम नाथजी, श्री महेश्वर नाथजी, श्री गूगल नाथजी, श्री गौतम नाथजी, श्री देव नाथजी, श्री गेबी नाथजी, श्री सुजान नाथजी, श्री मेहर नाथजी, श्री बुद्ध नाथजी, श्री पूर नाथजी, श्री निर्भय नाथजी, श्री सुकाल नाथजी, श्री गोमती नाथजी, श्री नवसो नाथजी, श्री मेघ नाथजी, श्री बसंती नाथजी, श्री हरी नाथजी, श्री भूर नाथजी, श्री शव नाथजी, श्री सोम नाथजी महाराज आदि हुए, आप को बता दूं कि इनका मुख्य पीठ राजा भर्तहरि वेराग्य पीठ अजमेर है !
राजा भर्तहरि वैरागपीठ के पीठाधीश श्री सोम नाथजी महाराज के शिष्य श्री सुआ नाथजी महाराज विक्रम सवंत 1825 में जालौर पधारें और इस पीठ पर वैराग पंथ की स्थापना की थी, पहले के समय में साधुओं की आयु दो सौ, तीन सौ वर्षो की होती थी, केहते है कि श्री सुआ नाथजी महाराज अपनी योग माया साधना से 300 वर्ष तक जीवित रहे थे !
श्री जलन्धरनाथजी महाराज ने जोधपुर दरबार श्रीमान मानसिंह जी को परचा, समत्कार दिया, उसी ख़ुशी में महाराजा श्री मानसिंह जी ने सिरेमन्दिर का निर्माण करवाया, पहले यह स्थान नाथजी रौ भाकर के नाम से जाना जाता था, यहाँ पर हजारों साधू संतो ने तपस्या की और अब भी कर रहे है !
श्री सुआ नाथजी महाराज के शिष्य श्री भवानी नाथजी महाराज हुए और उनके आगे श्री भैरू नाथजी महाराज, श्री फूल नाथजी महाराज, श्री पूरण नाथजी महाराज, श्री केशर नाथजी महाराज, श्री भोले नाथजी महाराज, श्री शान्तिनाथजी महाराज हुए !
अब वर्त्तमान में इस पीठ के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 ब्रह्मलीन श्री शान्ति नाथजी महाराज के शिष्य श्री श्री 1008 श्री गंगानाथजी महाराज विराजमान है !
आप समस्थ मित्र महानुभावो को ज्ञात होवे कि जालोरी पीरजी श्री 1008 श्री शान्तिनाथजी के बुजुर्ग शिष्य श्री कमलनाथजी महाराज है उनके परम शिष्य श्री निर्मलनाथजी है वे आपके यानी (श्री शांतिनाथ जी महाराज) पोत्र शिष्यरत्न है जो परसुरामजी की तपोस्थली मूंमी कन्नड देश में मैगलोर कदरीमठ के वर्तमान राजाजी बन कर ईस नाथ गांधी का नाम और भी देशों दिशाओ में गूंजा दिया है !
संग्रह कर्ता
लेखक श्री जोरावरसिह राजपुरोहित
ठिकाणा अर्थण्डी शासन
कणीयागिरी पर्वत पर स्थित शिश स्वरुप श्री जलन्धरनाथ पीठ श्री जलन्धरनाथजी की तपोस्थली है, यहाँ पर योगेश्वर अदर्श्य रुप में युगों योगो से तपस्यारत है,ईतिहास के जानकार कहते है कि यह पीठ लगभग 2000 वर्ष पुराना है !
नाथपंथ का आरम्भ स्वयं भगवान शिवशंकर स्वरूप आदिनाथ से हुआ बताते है, योगेश्वर आदिनाथ के दो शिष्य थे, एक श्री मछंदर नाथजी महाराज और दुसरे श्री जलन्धरनाथजी महाराज,
कालान्तर में पिंडलियां इस भांति हुई:-
श्री मछंदर नाथजी के शिष्य श्री गोरखनाथजी हुए, श्री गोरख नाथजी के शिष्य श्री सिद्ध विचार नाथजी "राजा भरथरी" हुए, उनके आगे श्री आत्म नाथजी, श्री भैर नाथजी, श्री भूचर नाथजी, श्री शितल नाथजी, श्री मंगल नाथजी, श्री संतोक नाथजी, श्री आम नाथजी, श्री सोम नाथजी, श्री महेश्वर नाथजी, श्री गूगल नाथजी, श्री गौतम नाथजी, श्री देव नाथजी, श्री गेबी नाथजी, श्री सुजान नाथजी, श्री मेहर नाथजी, श्री बुद्ध नाथजी, श्री पूर नाथजी, श्री निर्भय नाथजी, श्री सुकाल नाथजी, श्री गोमती नाथजी, श्री नवसो नाथजी, श्री मेघ नाथजी, श्री बसंती नाथजी, श्री हरी नाथजी, श्री भूर नाथजी, श्री शव नाथजी, श्री सोम नाथजी महाराज आदि हुए, आप को बता दूं कि इनका मुख्य पीठ राजा भर्तहरि वेराग्य पीठ अजमेर है !
राजा भर्तहरि वैरागपीठ के पीठाधीश श्री सोम नाथजी महाराज के शिष्य श्री सुआ नाथजी महाराज विक्रम सवंत 1825 में जालौर पधारें और इस पीठ पर वैराग पंथ की स्थापना की थी, पहले के समय में साधुओं की आयु दो सौ, तीन सौ वर्षो की होती थी, केहते है कि श्री सुआ नाथजी महाराज अपनी योग माया साधना से 300 वर्ष तक जीवित रहे थे !
श्री जलन्धरनाथजी महाराज ने जोधपुर दरबार श्रीमान मानसिंह जी को परचा, समत्कार दिया, उसी ख़ुशी में महाराजा श्री मानसिंह जी ने सिरेमन्दिर का निर्माण करवाया, पहले यह स्थान नाथजी रौ भाकर के नाम से जाना जाता था, यहाँ पर हजारों साधू संतो ने तपस्या की और अब भी कर रहे है !
श्री सुआ नाथजी महाराज के शिष्य श्री भवानी नाथजी महाराज हुए और उनके आगे श्री भैरू नाथजी महाराज, श्री फूल नाथजी महाराज, श्री पूरण नाथजी महाराज, श्री केशर नाथजी महाराज, श्री भोले नाथजी महाराज, श्री शान्तिनाथजी महाराज हुए !
अब वर्त्तमान में इस पीठ के पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 ब्रह्मलीन श्री शान्ति नाथजी महाराज के शिष्य श्री श्री 1008 श्री गंगानाथजी महाराज विराजमान है !
आप समस्थ मित्र महानुभावो को ज्ञात होवे कि जालोरी पीरजी श्री 1008 श्री शान्तिनाथजी के बुजुर्ग शिष्य श्री कमलनाथजी महाराज है उनके परम शिष्य श्री निर्मलनाथजी है वे आपके यानी (श्री शांतिनाथ जी महाराज) पोत्र शिष्यरत्न है जो परसुरामजी की तपोस्थली मूंमी कन्नड देश में मैगलोर कदरीमठ के वर्तमान राजाजी बन कर ईस नाथ गांधी का नाम और भी देशों दिशाओ में गूंजा दिया है !
संग्रह कर्ता
लेखक श्री जोरावरसिह राजपुरोहित
ठिकाणा अर्थण्डी शासन
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