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16.8.23

एक कविता राजपुरोहितो के लिए समर्पित

राजपुरोहित होकर राजपुरोहित का, 
     आप सभी सम्मान करो! 
सभी राजपुरोहित एक हमारे, 
         मत उसका नुकसान करो! 
चाहे राजपुरोहित कोई भी हो, 
         मत उसका अपमान करो! 
जो ग़रीब हो, अपना राजपुरोहित 
          धन देकर धनवान करो! 
हो गरीब राजपुरोहित की बेटी, 
          मिलकर कन्या दान करो!
अगर लड़े चुनाव राजपुरोहित ,
        शत प्रतिशत मतदान करो!
हो बीमार कोई भी राजपुरोहित , 
         उसे रक्त का दान करो!
बिन घर के कोई मिले राजपुरोहित , 
    उसका खड़ा मकान करो! 
अगर राजपुरोहित दिखे भूखा, 
     भोजन का इंतजाम करो! 
अगर राजपुरोहित की हो फाईल, 
     शीघ्र काम श्रीमान करो! 
  राजपुरोहित की लटकी हो राशि, 
     शीघ्र आप भुगतान करो! 
राजपुरोहित को अगर कोई सताये, 
       उसकी आप पहचान करो! 
अगर जरूरत हो राजपुरोहित को, 
        घर जाकर श्रमदान करो! 
अगर मुसीबत में हो राजपुरोहित , 
       फौरन मदद का काम करो! 
अगर राजपुरोहित दिखे वस्त्र बिन, 
      उसे अंग वस्त्र का दान करो! 
अगर राजपुरोहित दिखे उदास, 
         खुश करने का काम करो! 
अगर राजपुरोहित घर पर आये, 
तो जय रगुनाथजी री ,या 
जय गुरुदेव री बोल सम्मान करो! 
अपने से हो बड़ा राजपुरोहित 
         उसको आप प्रणाम करो!
हो गरीब राजपुरोहित का बेटा, 
   उसकी मदद तमाम करो! 
बेटा हो गरीब राजपुरोहित का पढ़ता, 
    कापी पुस्तक दान करो! 
जय राजपुरोहित समाज

यदि आप राजपुरोहित समाज का विकास करना चाहते है तो यह कविता प्रत्येक राजपुरोहित तक पहुंचनी चाहिये ।

विशेष सूचना :- इस कविता का लेखक कौन है यह तो मुझे जानकारी नहीं लेकिन फेसबुक पर मुझे कविता अच्छी लगी तो मैं आप लोगों के लिए इसे यहां पर शेयर की है इस कविता से जुड़ी हुई थी जानकारी आपके पास है तो हमें व्हाट्सएप 9286464911 करें ताकि हम उसे सही नाम से प्रकाशित कर सके.

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19.6.22

डिब्बावाला कहते सब भाई इसी नाम से प्रसिद्धि हमने पाई ..कवि महेश राजपुरोहित

डिब्बावाला कहते सब भाई
इसी नाम से प्रसिद्धि हमने पाई
डब्बा पहुंचाना है हमारा काम 
इसी काम ने हमें पहचान दिलाई
हमेशा पहुंचाते है डिब्बा पूरी मुंबई
कार्यशाला हो या दुकान मेरे भाई
भारतीय रेल ने इसपर छाप लगाई
हम है मुंबई पर आश्रित मेरे भाई
मेहनत से नाम कमाया मेरे भाई
एक नया इतिहास बनाया मेरे भाई
गिनीज बुक में नाम लिखवाया
डिब्बा वाला मैं कहलाया 
मैं हूं मुंबई का कर्णधार
मुंबई मेरे जीने का आधार
सारे मुंबई में फैला हमारा ग्रुप
इसलिए जल्दी पहुंचा देते खूब
स्वरचित लिखित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित अप्रकाशित
कवि श्री महेश सिंह राजपुरोहित बावड़ी

7.4.22

राजपुरोहित होकर राजपुरोहित का, आप सभी सम्मान करो

राजपुरोहित होकर राजपुरोहित का, 
               आप सभी सम्मान करो! 
सभी राजपुरोहित एक हमारे, 
          मत उसका नुकसान करो! 
चाहे राजपुरोहित कोई भी हो, 
            मत उसका अपमान करो! 
जो ग़रीब हो, अपना राजपुरोहित,
          धन देकर धनवान करो! 
हो गरीब राजपुरोहित की बेटी, 
          मिलकर कन्या दान करो! 
अगर राजपुरोहित लड़े चुनाव,
        शत प्रतिशत मतदान करो!
हो बीमार कोई भी राजपुरोहित,
         उसे रक्त का दान करो!
बिन घर के कोई मिले राजपुरोहित, 
         उसका खड़ा मकान करो! 
मामला अदालत में गर उसका, 
        बिना फीस के काम करो! 
अगर राजपुरोहित दिखता भूखा, 
        भोजन का इंतजाम करो! 
अगर राजपुरोहित की हो फाईल, 
         शीघ्र काम श्रीमान करो! 
 राजपुरोहित की लटकी हो राशि, 
        शीघ्र आप भुगतान करो! 
राजपुरोहित को अगर कोई सताये, 
       उसकी आप पहचान करो! 
अगर जरूरत हो राजपुरोहित को, 
        घर जाकर श्रमदान करो! 
अगर मुसीबत में हो राजपुरोहित
          फौरन मदद का काम करो! 
अगर  राजपुरोहित दिखे वस्त्र बिना, 
            उसे अंग वस्त्र का दान करो! 
अगर राजपुरोहित दिखे उदास, 
            खुश करने का काम करो! 
अगर राजपुरोहित  घर पर आये, 
          जय श्री रघुनाथ जी बोल सम्मान करो! 
अगर फोन पर बात करते, 
         पहले रामा सामा करो!
अपने से हो बड़ा राजपुरोहित

         उसको आप आदर सम्मान करो!
हो गरीब राजपुरोहित का बालक
         उसकी मदद पूर्ण करो! 
बेटा हो गरीब राजपुरोहित का पढ़ता, 
          कापी पुस्तक दान करो! 
ईश्वर ने अगर तुम्हें दिया, 
 आप खुद पर गर्व करो।

  जय श्री ब्रम्हा जी, जय श्री खेतेश्वर

जन जागरूकता के लिये, यदि आप  राजपुरोहित समाज का विकास करना चाहते है तो यह कविता प्रत्येक राजपुरोहित तक पहुंचनी चाहिये। इसे सभी रिलेटिव एव राजपुरोहित व्हाट्स एप/ फेसबुक ग्रुप मे शेयर करे।
जय राजपुरोहित समाज, जय खेतेश्वर जय ब्रह्मधाम 
भीखम सिंह अखेराजोत खीचन

5.6.20

धन्य है कंप्यूटर मास्टर

         धन्य है कंप्यूटर मास्टर

              जिसने सिखा दिए
              लिखने मुझे हिंदी के अक्षर 
              रोजाना होती समस्या मुझे भारी

              लिखनी नहीं आती
              मातृभाषा अपनी प्यारी
              कंप्यूटर मास्टर है महान

              जो मिनटों में करा देता
              विश्व का ज्ञान 
              कोविड-19 में यह

              अपनी जिम्मेदारी बता रहा है 
              सबको घर बैठे पढ़ा रहा है 
              सभी करते इसके गुणगान

              आज कंप्यूटर से होते सब काम
              इसके बिना नहीं जीना आसान
              हर कार्य में समाहित हो गया 

              हर जन की नस में रम गया 
              इसने जमाई साइंस में धाक 
              डॉक्टरों का काम किया आसान

         धन्य है कंप्यूटर मास्टर

           स्वरचित लिखित
 लेखक महेश सिंह राजपुरोहित बावड़ी

4.6.20

कुदरत का कहर बरस गया, जीवन का पहिया रूक गया।

कुदरत का कहर बरस गया,
जीवन का पहिया रूक गया।
अब तो चले जाओ कोरोना,
मजदूर का धैर्य अब मर गया।।

साहूकारों, हवेली वालो को भी,
जीवन का विषपान हो गया।
किसान की उपज हैं अमूल्य,
यह हर इंसान समझ गया।।

प्रकृति से करो ना खिलवाङ,
ऐसा ज्ञान हर मानव को दे गया।
मानव शक्ति हैं अपार,असीमित,
उसकों भी तू सीमित कर गया।।

जो समझते थे खुद को ही खुदा,
उनका अहंकार तू घायल कर गया।
लौट के न आना हे कोरोना अब तू,
गलती का अहसास,इंसान को हो गया।।

टीआर पुरोहित,
वरिष्ठ अध्यापक 
राउमावि बिछावाडी, सांचौर

दो जून के अवसर पर "दो शब्द"

दो जून की रोटी खातिर,
घर आंगन छूट जाते हैं।
घर से निकला लाडला बेटा,
मजदूर बन जाता हैं।।
 
 खाने पीने का ठीकाना नहीं
न आशियाना मिल पाता हैं।
दो जून की रोटी खातिर,
घर छूट जाता हैं।।

गांव की गलिया छूटती,
छूटते यार दोस्त हैं।
गरीब की तालीम छूटती,
तब दो जून की रोटी पाते हैं।।

पिता का छाया छूट जाता,
छूटता भाई बहन का प्यार हैं।
मां की ममता बेबस हो जाती,
जब दो जून रोटी कमाने जाते हैं।।

महानगरों की माया न समझ पाते,
जब गांव छोङ शहर जाते हैं।
दर दर की ठोकर खाकर,
दो जून की रोटी पाते हैं।।

तुलसाराम राजपुरोहित
वरिष्ठ अध्यापक
राउमावि बिछावाडी,सांचौर

28.5.20

मोटो गाँव तालकिया ने बड़ला वाली छाह

🚩जलम  भोम  री  बात 🚩
मोटो गाँव तालकिया ने बड़ला वाली छाह ।
तीन हथाई वालो  बास हैं 
 वाह तालकिया वाह।।
जल गहरो गहरी समझ 
गहरो ज्ञान अथाह ।
मोत्याॅ मुहंगा नर अठे 
वाह तालकिया वाह।।
अन्न घणा मिरचो निपजे 
बरसे मेह  घणाॅय ।
तो बिन घड़ी न आवडे 
वाह तालकिया वाह। 
कॅवरा भॅवरा ठाकराॅ 
सोहे शुभराजाॅह ।
"'नेन्यो" कुल कीरत कथे
वाह तालकिया वाह ।।
पुरूष जठे पुरषारथी 
पूगे  पर  देसाॅह ।
सैठ बण धन संचणा
वाह तालकिया वाह।।
इण खाण्या हीरा  निपेह 
लाखीणी लालाॅह ।
दंग देख  जग जौहरी
वाह तालकिया वाह।।
धिन धिन गाँव तालकिया धिन तालकिया री शान ।
भोजराज जेडा सूरवीर हुआ 
पायो   अनूथो  मान ।।
धन्य  धन्य  भोजराज 
धन्य कुल उदा राठौड ।

धन्य  धरा  मरूधरा 
जन्मे शूरा सिरमौड ।।

चौदहवीं वर्ष गाँठ पर राजस्थानी दोहे 
-------------------------

वीर शिरोमणि दादोसा भोजराजसिंहजी, ठिकाना तालकिया 
----------------------------------------
आडो रहयो उदा रे  दिल ' सुध ' भोजराज ।
जीवण भर रण जूझियो अमर हुआ महाराज ।।
कूपसिंघ रो वंश कहिजे 
शूर वीरों री खान ।
तिंवरी ज्यो रो गढ कहिजे 
जग चावी  ओलखाण ।।
उदावत सिंधल घमासान मे 
पिण्ड तज दिया प्राण ।
अगवानी  री  अम्रता 
जाहर हुयी जोधांण ।।
जैतारण मुक्ति तन तज्यो 
रिपुआॅ  कीन  ख्लाॅह ।
जग अॅजसे भोजराज ने 
वाह तालकिया वाह।।
कियो अणूथो काम 
मालिक री मनसा मुजब ।
आखिर पाय ईनाम 
सेवा कारण शिरोमणि ।।
सम्वत् पन्द्रह सौ पिचतर 
जेठ मास वद दूज ।
उदो शासन सोपियो 
भोजराज पग पूज ।।
धन्य गाँव तालकिया 
जिणरो नाम गूँजे सब ओर ।
भोजराज  जेडा सूरवीर हुआ 
मिरचो लिये मशहूर ।।
तालकिया गौरव  लिखियो
कवि आज किशोराय ।
बुध तेरस वैशाख वद 
वाह तालकिया वाह ।।
🙏✍🙏
किशोरसिंह राजपुरोहित तालकिया

18.5.20

राजपुरोहित समाज का संविधान श्री खेतेश्वरजी महाराज ने लिखा है।

 
राजपुरोहित समाज का संविधान श्री खेतेश्वरजी महाराज ने लिखा है।
राजधानी आसोतरा है
संसद ब्रह्मधाम है
सांसद समाज के ट्रस्टी है
प्रधानमंत्री गुरु महाराज है।
जो भी प्रस्ताव ब्रह्मधाम से मंजुर होता है वो पत्थर की लकीर है।
न कोई रिट लगेगी न अपील होगी 
कुछ सीखो विधर्मीयो से अपने धर्म अपने ब्रह्मोधर्म के प्रति कट्टर हो जाओ

नोट-हमारे लिए तो ब्रह्मधाम का आदेश स्वयं ब्रह्माजी का आदेश है
🔱ज्यादा से ज्यादा share कर के हर राजपुरोहित के जहन में यह विचार फिक्स्ड करलो।!

🆎⛳ अभय सिंह जसोल

29.3.20

'शेरा' सफल बना दो इस आंदोलन को।

आज की ही सुंदर रचना प्रवासी भारतीयों के लिए लिखी गई है भारत में इस वक्त जो हालात है वह बहुत ही गंभीर हैं और बहुत ही शानदार रचना के माध्यम से उन भावों को उखाड़ने की कोशिश की है कवि ने प्रस्तुत है आपके सामने यह रचना जो श्रवण सिंह राजपुरोहित द्वारा लिखी गई है 
..🙏🙏

हाय तौबा क्यों मचाते,
रख लो थोड़ा सा धीर।
त्राहि की वेला में वीरों!
थामों संयम की शमशीर।

परदेशी तुम क्यों घबराते?
नहीं प्रदेश कोई पराया।
कोरोना की कल्पना ने,
बस तुमको है डराया।

जहाँ बसे हो बस बसे रहो तुम।
वहाँ से न टस से मस हो तुम।।

आँधी वाले ये अम्बुद,
बिखर जायेंगे खुद-ब-खुद।
रहकर घर में वीरों हम,
जीत जायेंगे अब ये युद्ध।

चंद दिनों की बात है प्यारों,
तब तक तुम जज़्बात सँभालो,
काली ये रातें ढल जाने दो।
फिर सुनहरी प्रभात उगालो।

'शेरा' सफल बना दो इस आंदोलन को।
मानो मीत मेरे, मोदी जी के संबोधन को।

     Shera Raj Samdari

रचना के रचनाकार है श्रवण सिंह टिटोपा बामसीन, समदड़ी 
प्रस्तुत रचना कवि की अपनी संपत्ति है बिना अनुमति के पब्लिश या उसका किसी भी रूप में प्रकाशित करना कॉपीराइट नियम का उल्लंघन है अनुमति अवश्य प्राप्त करें।

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 सवाई सिंह राजपुरोहित मीडिया प्रभारी सुगना फाउंडेशन

13.8.19

रवि पुरोहित को साहित्यिक श्रेष्ठ सृजन पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा

आशु कवि रतनलाल व्यास साहित्यिक संस्थान फलोदी (जोधपुर ) द्वारा साहित्यिक श्रेष्ठ सृजन, सेवा ,निष्ठा व समर्पण के लिए दिये जाने वाला सम्मान पुरस्कार संस्थान द्वारा इस वर्ष बीकानेर के कवि रवि पुरोहित का नाम चयन किया गया है  हमारी ओर से रवि पुरोहित जी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपके उज्जवल भविष्य कि आप इसी प्रकार परिवार और समाज और देश का नाम रोशन करें ऐसी मंगल कामनाएं सुगना फाउंडेशन परिवार

        इस पुरस्कार की घोषणा चयन कमेटी के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार श्री डॉ. आईदानसिंह भाटी- जोधपुर, श्री जितेंद्र निर्मोही कोटा व श्रीमती शिवानी पुरोहित जोधपुर का आभार।
संस्थाध्यक्ष एडवोकेट श्रीगोपाल व्यास का आभार ।

      आपको बता दें रवि पुरोहित जी की साहित्य क्षेत्र में अब तक 22 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है यह हमारे समाज के लिए एक बड़ी उपलब्धि है आप इसी प्रकार साहित्य जगत में अपना नाम करते जाएं ऐसी मंगलकामनाएं


24.6.19

राजपुरोहित के घर की रोटी, राजपुरोहित के घर की दाल, छप्पन भोग में भी नही ऐसा कमाल।

 आज ही बहुत ही अच्छी पोस्ट मुझे मिली हालांकि इस पोस्ट को किसने लिखा है यह जानकारी नहीं है क्योंकि जहां से यह पोस्ट मैंने उठाई है वहां पर लेखक का कोई नाम नहीं लिखा है तो इसीलिए हम भी इस पोस्ट में उस अज्ञात लेखक का नाम नहीं लिख पाएंगे पर उसकी लेखनी को हम नमन जरूर करेंगे तो आनंद लीजिए इस पोस्ट का.....  और अगर आपको मालूम है कि यह पोस्ट किसने लिखी है तो लेखक का नाम कमेंट बॉक्स में जरूर लिखिएगा

राजपुरोहित के घर की रोटी, राजपुरोहित के घर की दाल।

        छप्पन भोग में भी नही ऐसा कमाल।

  राजपुरोहित के  घर  का आचार
        बदल देता है विचार।

 
राजपुरोहित के  घर  का पानी।     
शुद्ध करे वाणी।

राजपुरोहित के घर  के फल और फूल।
      उतार देती है जन्मों -जन्मों की घूल।
राजपुरोहित की  छाया।
        बदल देती है काया।

राजपुरोहित के घर  का रायता।
        मिलती है चारों और से सहायता।

 राजपुरोहित के घर के आम।
       नई सुबह नई शाम
राजपुरोहित के घर का हलवा
      दिखाता है जलवा।

राजपुरोहित की सेवा।
     मिलता है मिश्री और मेवा।

    💐💐  जय रघुनाथ जी री  💐💐
 🌷     🌷   राजपुरोहित हो तो आगे शेयर जरूर करें🙏🏻🙏🏻🙏🏻

1.8.18

कवि ओर साहित्यकार रवि पुरोहित का जीवन परिचय एवं साहित्य क्षेत्र में उपलब्धिया


प्रिय मित्रों 
राजपुरोहित समाज की कला से जुड़ी हस्तियों के परिचय एवम उपलब्धियों की कड़ी मे आज हम कवि एवम साहित्यकार श्री रवि जी पुरोहित को लेकर आये है। 
साहित्य साधना के परम उपासक श्री रविजी की साहित्य क्षेत्र में एक विशिष्ट पहचान है ।

5 जून 1968 में जन्मे रवीजी मूल बीकानेर जिले के श्री डूंगरगढ़ के निवासी है और हाल बीकानेर में राजस्थान सरकार अधीनस्थ लेखा सेवा में कार्यरत है ।
आपने महर्षि दयानंद सरस्वती विश्व विद्यालय अजमेर से 1989 में वाणिज्य स्नात्तक की डिग्री परीक्षा उतीर्ण की ,ततपश्चात 1991 में हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की। 
फिर वर्ष 2010 में आपने महाराजा गंगासिंह विश्व विद्यालय बीकानेर से राजस्थानी भाषा मे एम. ए. की डिग्री उतीर्ण की ।।

शोध सर्वे - 
मरुभूमि शोध संस्थान श्री डूंगरगढ़ में वर्ष 1989 से 1991 तक आप मानस शोध में सहायक रहे है ।
'चुरू अंचल रा लोक देवतावां अर लोक मान्यतावां ' इस विषय पर आपके शोध कार्य चालू है ।
साक्षरता के क्षेत्र में सरकारी एवम गैर सरकारी प्रयास में दशा एवम दिशा के लिए शिक्षा समाज और चेतना में आपकी शैक्षणिक परियोजना की भूमिका रही है। 

सदस्यता -- 
साहित्य अकादमी नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के वर्तमान में आप सदस्य है । राजस्थानी भाषा साहित्य एवम संस्कृति अकादमी बीकानेर की पांडुलिपि प्रकाशन सहयोग तदर्थ उप समिति का संयोजकीय दायित्व एवम सदस्यता रही वर्ष 2012 से 2014 तक ।
वर्ष 2006 से 2008 तक आप राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर की सरस्वती सभा के सदस्य रहे है। 
ASIA PACIFIC WHO*S WHO के आप पंजीबद्ध रचनाकार है ।
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़ के आप आजीवन सदस्य है और वर्तमान में इसके सयुंक्त मंत्री भी है ।
राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ , सार्वजनिक पुस्तकालय श्रीडूंगरगढ़ की आजीवन सदस्यता और प्रबन्ध समिति के पूर्व सदस्य भी है । 

लेखन -- 
प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में कहानी ,कविता , निबन्ध , व्यंग्य , आलोचना , लघुकथा , फीचर आलेख आदि का सन 1985 से लगातार प्रकाशन होता आ रहा है ।
आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों एवम दूरदर्शन तथा अन्य चैनलों पर आपकी विविध विधाओं की रचनाओं का प्रचुर प्रसारण होता रहता है। 
कई संपादित संकलनों में रचनायें संकलित है। 

प्रकाशन - 
चमगूंगो (1991) , हासियो तोड़ता सबद (1996) , राजस्थानी बाल कविता संगह 'तिरंगों' (2006) और उतरूँ उँडे काळजै''(2015) इत्यादि राजस्थानी कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी है ।
सेना के सूबेदार (2006) और 'आग अभी शेष है (2018) हिंदी कविता संग्रह का प्रकाशन। 
एक और घोंसला(1997)और धुले-धुले चेहरे (2015) हिंदी कहानी संग्रह का प्रकाशन तथा हिंदी व्यंग्य निबन्ध संग्रह "सपनों का सुख " का 2006 में प्रकाशन हो चुका है । 
काव्य संग्रह " उतरूँ उँडे काळजै " का हिंदी अंग्रेजी संस्कृत तथा पंजाबी में अनुवाद कर चुके है और गुजराती भाषा मे अनुवाद का कार्य जारी है ।
कुछ कविताओं का नेपाली उड़िया मराठी और बांग्ला भाषा मे भी अनुवाद हो चुका है। 

सम्पादन - 
'यादां रै आँगणीये ऊभा उणीयारा" (राजस्थानी रेखांचित संग्रह ) , आंखों में आकाश , राजस्थान शिक्षा विभाग के लिए बाल साहित्य संग्रह का 2012 में सम्पादन। 
उकळती ओकळ सूं उपज्या आखर , (श्री श्याम महर्षि री काव्य सिरजण समग्र ) ।
राजस्थली , लोक चेतना की राजस्थानी तिमाही का पिछले 25 वर्षों से प्रबन्ध प्रकाशन। 
जागती जोत (राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर की मुख पत्रिका) का एक वर्ष तक सम्पादन ।
"हस्तक्षेप" ( साहित्यिक फोल्डर के चार अंको का सम्पादन ) 
एक दर्जन से अधिक अभिनंदन ग्रन्थों एवम स्मारिकाओं का सम्पादन। 

भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ,राजस्थानी भाषा की एकेडमियों एवम कई प्रतिष्ठित एजेंसियों द्वारा आयोजित-प्रायोजित राष्ट्रीय , राज्य स्तरीय और आंचलिक समारोहों का आप संचालन कर चुके है ।
राजस्थान शिक्षाकर्मी का अनोपचारिक शिक्षा अनुदेशक आवासीय प्रशिक्षण शिविर का व्यवस्थापन । 

अनुवाद - 
जिओ मेरे साईंयां ,, (वीरसिंह की पंजाबी कृति ) का राजस्थानी अनुवाद ।
कैवती ही माँ , (युवा कवियित्री सुमन गौड़ की हिंदी कविताओं का राजस्थानी अनुवाद ) 
म्हनैं चांद चाइजै , ( साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा पुरस्कृत श्रीकांत वर्मा के चर्चित उपन्यास कृति) का राजस्थानी अनुवाद। 
कुछ तो बोल , (कवि श्याम महर्षि की राजस्थानी कृति ) का हिंदी अनुवाद। 

पुरस्कार और सम्मान - 
साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा जीवो म्हारा सांवरा (वीरसिंह की पंजाबी कृति) के लिए 'अनुवाद पुरस्कार 2016 ।
राजस्थान सरकार द्वारा उत्कृष्ट साहित्य लेखन के लिए राज्य स्तरीय पुरस्कार । 
राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर का " भगवान अटलानी युवा लेखन पुरस्कार । 
राजस्थानी भाषा साहित्य एवम संस्कृति अकादमी बीकानेर का " 
बावजी चतुरसिंह जी अनुवाद पुरस्कार ।

इसके अलावा आपको , मैथिलीचरण गुप्त युवा लेखन सम्मान, पीथळ पुरस्कार , महेंद्र जाजोदिया पुरस्कार , शब्दनिष्ठा सम्मान ,
दी यंग्स वेलफेयर सोसायटी रतनगढ़ द्वारा रामगोपाल गिरधारीलाल सर्राफ अलंकरण ।
सृजन सेवा संस्थान श्रीगंगानगर द्वारा साहित्यकार सम्मान ।
पंडित विद्याधर शास्त्री अवार्ड ।
त्रिलोक शर्मा स्मृति संस्थान श्रीडूंगरगढ़ द्वारा " संवाद सम्मान ।
इसके अलावा " साहित्य शिरोमणि सम्मान , ज्ञान श्री सम्मान , राजपुरोहित गौरव सम्मान । सहस्त्राब्दी हिंदी सेवी सम्मान । 
निम्बोळ का साहित्य साधक सम्मान। 
इनके अलावा भी विभिन्न संस्थाओं द्वारा आप को सम्मानित किया गया है। 

पत्रकारिता - दैनिक नवज्योति और दैनिक भास्कर के अलावा अन्य कई प्रतिष्ठित पत्रों के लिए मानव संवाद प्रेषण का कार्य । 

शोध- 
महाराजा गंगासिंह विश्व विद्यालय बीकानेर द्वारा " रवि पुरोहित रै काव्य मांय सामाजिक चेतना " विषय पर डॉ मदन सैनी के निर्देशन में और " सेना के सूबेदार काव्य में लोक चेतना " के विषय पर डॉ मेघराज शर्मा के निर्देशन में 2009 व 2010 में लघु शोध ।। 

साहित्य जगत में श्री रवि राजपुरोहित जी ने जो मुकाम स्थापित किये है वो वाकई राजपुरोहित समाज और राजस्थानी साहित्य के लिए गौरव करने योग्य है ।
Rajpurohit samaj india पेज / ग्रुप श्री रविजी का सह्रदय से आभार एवम सम्मान करता है ।

मित्रों आपको हमारी ये पहल और पोस्ट कैसी लगी हमे सुझाव जरूर दीजियेगा , अगले शनिवार हम समाज की एक और हस्ती से आपको रूबरू करवाएंगे ।😊😊 
जय श्री खेतेश्वर दाता री सा। 

21.4.16

श्री खेतेश्वर जयंति पर विशेष "सतगुरु जन्म का दिन आया".. नरपत राजपुरोहित

"सतगुरु जन्म का दिन आया"
, , , ,
सतगुरु जन्म का दिन आया
खुशियाँ भई अपार ,
नतमस्तक "ह्रदय" से करुँ मैँ बारम्बार ,,
.
सज गया धाम आसोतरा
दाता का दरबार ,
झुमेँ भक्त दाता के खुशी से
हो रही जय जयकार ,,
आये है दरबार पे सभी भक्त
आये है जागीरदार ,
सतगुरु जन्म का दिन आया खुशियाँ भई अपार ।।
, , .... , , .... , ,
.

घर सब हुए आज दीपज्वलित ,
नारियाँ गावे दाता के गीत ,,
मूर्त संग पुष्प बरस रहे है ,
भक्त दर्शन को तरस रहे है ,,
दर्शन दाता के पाने को उमङ रहा संसार ,
सतगुरु जन्म का दिन आया
खुशियाँ भई अपार ।।
.... , , .... , , .... , ,
ब्रम्हाधाम आसोतरा हुआ शोभित न्यारा ,
लग रहा स्वर्ग से प्यारा ,,
लग रहे भोग छप्पन प्रकारी ,
तुलसाराम आपके आज्ञाकारी ,,
चरण पुजारी "ह्रदय" आपका
दाता करो कृपा अपारम्पार ,
सतगुरु जन्म का दिन आया 
खुशियाँ भई अपार।।
श्री 1008 ब्रम्हवतार श्री खेतेश्वर जयंति की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायेँ ।
जय श्री दाता री सा । 
‪#

रचनाकार भाई श्री नरपत राजपुरोहित 
ह्र्दयलेखनी‬ ।।


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आप का अपना सवाई सिंह राजपुरोहित

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29.2.16

परमेश्वर जी व दक्ष प्रताप आप दोनों को ‪‎ह्र्दयलेखनी‬ जन्मदिवस की अनेकानेक हार्दिक शुभकामनायें देती है ।

29 फ़रवरी को जन्मदिन होना भी कुछ ख़ास हो जाता है , व 
जी हाँ मित्रों आज के दिन मेरे भी दो ख़ास जनों का जन्मदिवस है , कोलकत्ता से हमारे भाईसाब श्री परमेश्वर जी रायगुर बासडा और आगरा से एस पी भाईसा के लाडले यानि सवाई भाईसा के भतीजा साहेब प्रिय दक्ष प्रताप सिंह (28 - 02 - 2010  )आज के दिन के खुशियों के हकदार है । 


आप दोनों को ‪#‎ह्र्दयलेखनी‬ जन्मदिवस की अनेकानेक हार्दिक शुभकामनायें देती है । 
.

परमेश्वर भाईसा के लिये - 
प्रफुल्लित करता है ये दिन 
खुशियाँ देता है अनेक , 
मंजिलेँ मिलती रहे अविरल पथ पर 
और काम होवे सब नेक । 
मन की जो कामनायें है वो सभी पूर्ण हो 
हरि से यही कहना चाहता हूँ ,, 
सफल हो कहानी कोरियर की 
मैं भी तो प्रेममय रहना चाहता हूँ । 
मुस्कान सदैव रहे आप के लबों पर 
ह्रदय में खुशियों की बरखा हो जाये , 
अरदास नित नित "ह्रदय" से 
परमेश्वर पर परमेश्वर की कृपा हो जाये ।। 
.......

भतीजे दक्ष प्रताप सिंह के लिए -

कभी हम भी तुम्हारी उम्र के 
अब तो बचपन को सिर्फ याद करते है , तुम खूब आनंद लेना इस बचपन का 
यही फरियाद करते है ।। 
खूब पढ़ो और आगे बढ़ो 
खेलो खेल स्वतः चाव से ,,
चरण स्पर्श रोज बड़ों का 
तुम रोज करो लगाव से ।। 
ये दिन आये हर बार ये 
ये ईश्वर से कहना हमारा है , 
जन्मदिवस की लो फिर से शुभकामनायें 
ये "ह्रदय" से हैत प्यारा है ।। 
.........

दोनों को एक साथ -

एक भतीजा दूजा भाई 
दोनों ह्रदय में ख़ास हो ,,
दे दो पार्टी दोनों मिलकर 
जग सारे में उल्लास हो ।। 😃😃😃 
‪#‎ह्रदय‬ से ।
लेखक और भाई श्री नरपत सिंह राजपुरोहित ह्रदय


लेखक और भाई श्री नरपत सिंह राजपुरोहित ह्रदय साथ में आपका सवाई सिंह आगरा 

11.8.14

जागीरदार (Rajpurohit)

 घणी दूर स्यूं आया परदेसी, 
टाबर देखण ने . 
मन मै घणो उच्छाव, 
आया बै 
छोरी देवण ने. 
गाँव बीचाळै मौटर ढबगी, 
हैटा उतरीया आया. 
सामी जागीरदार टकराया, 
हाल पुछीया जाय. 
रामा सामा करीया मौकळा, 
पुछी बै खुशीयाळी. 
नाम गाँव सब पुछया वारा, 
किन घर जास्यो सांई. 
नाम बतायो गाँव बतायो, 
राजी खुशी हाला. 
फलाण सिंह घर जाणो म्हानै, 
टाबरीयो देखाला. 
घर पधारीया परदेशी, 
मन बहोत घणो हरसायो. 
लाडा कोडा करी खातरी, 
घणो हैत बरसायो. 
चारू मैर जूडी हताया, 
जागीरदार करै मनवारा. 
अमल गाळीयो 5 भरी रो, 
सगळो थां पर वारा. 
करता करता मनवारा, 
आंरै जागी फैर कुटयाळी. 
म्हारै घरै थे चालो, 
थोङी करस्या फैर हतायी. 
घर ल्याय बै बोलण लाग्या, 
आरो टाबर माङो. 
परदेशा में चोरी जारी, 
करतो फिरै कबाङो. 
नशा पता घणा करै, 
कोई छोड्या बाकि कोनी. 
म्हारो टाबर देखो प्यारा, 
क्यारी कमी कोनी. 
सगळा में सवायो लागै, 
बाता चालै न्यारी. 
रीपीया री ओ पाळ बांध दी, 
भरगी आज भखारी. 
दूजा जागीरदार आग्या, 
बोली मीठी वाणी. 
घर पधारो सीरदारा, 
थोङी पीस्या चाय पाणी. 
घर ल्याय बतावण लाग्या, 
टाबर देखो म्हारो. 
ओ टाबरीयो चोखो कोनी, 
कोनी हुव गुजारो. 
ए बस कोरी फांफां मारै, 
इरी संगत कोजी. 
म्हारो टाबर घणो फुटरो, 
अबकाळ बणसी फोजी. 
तीजा जागीरदार पधारीया, 
अमल गाळस्या चालो. 
म्हारी पौळी आऔ जागीरदारा, 
अठै काम करो थै काळो. 
खातीदारी घणी करी बै, 
बोल्या बोल सुहाणा. 
आरो टाबर ठालो बैठीयो, 
रोज बुलावै थाणा. 
म्हारै छोरै सामी देखो, 
चालघाट सबसे नाकै. 
आसै पासै कोनी इस्यो, 
सगळा साधन म्हाकै. 
कुंटा कुंटा फिरीया बापङा, 
होग्या चैता चूक. 
सुण सुण बाताजागीरदारा री, 
घर घर गया बै थूक. 
देख थळी रा बळदा नै, 
ऐ पंरसगीं पछताया. 
ओज्यू आवा राम दूहायी, 
बळगी थारी माया. 
देख्यो थारो मैल मुलायजो, 
देखी आज हथाई. 
खेतेश्वर री कोम देखल्यो, 
बैरी भाई भाई. 
पैली तो ए कोख उजाङै, 
फैर बीनणी भावै. 
हाथा करीया कर्म लाडला, 
किनै दौस लडावै. 
ओ मेहरी आळे राजपुरोहित, 
सोच सोच मुसकायो. 
ना सोची खेतेश्वर दाता, 
ओ दिन किस्यो आयो. 
अनुरोध करे अरदास प्रभु, 
थोङी आ मीनखां नै देयी. 
ठोङ ठोङ ए फिरै रोवंता, 
तु सुद्ध 
आ री लेयी..

            साभार 

श्री बलवन्त सिंह राजपुरोहित राजगुरू कोलासर

26.7.13

मारवाङी शब्द तरकश रा तीर....श्री नरपतसिंह राजपुरोहित

"मारवाङी शब्द तरकश रा तीर "
वाह रे म्हारा भारत अटै काँई काँई होवे खटका ,
धोली टोपी रे धणियोँ री अटै चाले मरजी ,
पाँच बरस री कुरसी खातर वोट पङावै फरजी ,
बात बितया समझ मेँ आवै
तो जनता रे मगज मेँ लागे झटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै काँई काँई होवे खटका ।।
घुसणखोरा रा अटै लागे मोटा मेला ,
भ्रष्टाचार रा अटै होवे खूब रेलमपेला ,
दवाखाना मेँ दवाया अटै मिले नकली ,
इण रे लारे किती बिमारियाँ
लोगा ने मारन भखली ,
मायली मार रे माय आ जनता
काँई काँई खावे फटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै काँई कांई होवे खटका ।।
मोटीयारा रे मायने अटै कांई कांई झलगी आदत ,
बीङी सिगरेट गाँजा अमल
अर आ दारु री लत ,
यां मोटीयारा रे अधर मेँ ओ देश कटिने जावे ,
वा मोडर्न जमाना रा नखरा मेँ याने अक्ल कोनी आवे ,
खेल छुटया कबड्डी खोखा
ए तो खेले जुआ अर मटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै कांई कांई होवे खटका ।।
आ छोटी सी लैणा रो
अर्थ समझलो भायां ,
राखौ आबरु किन्या री
नी तो कोनी मिलेली लुगायां ,
काम अस्यो करजौ म्हारा साथिङा
के लोग थाँ पर इतरावे ,
चौखा कामाँ रे मायने
आपणो देश सुधर जावै ,
"हमसफर" अस्या शब्दां रा अब
कितरा लगावेलो फटका ,
वाह रे म्हारा भारत अटै कांई कांई होवे खटका ।।
हमसफर-ए-कलम । 

रचना भेज ने वाले 
युवा कवि श्री नरपतसिंह राजपुरोहित हमसफर

21.7.13

सवाई नाम के कितने करुँ बखान...श्री नरपतसिंह राजपुरोहित हमसफ़र

मेरे जन्मदिवस पर एक कविता लिखी युवा कवि और प्रिय भाईसाब श्री नरपतसिंह राजपुरोहित हमसफ़र  आप को पसंद आएगी ...आपका सवाई सिंह राजपुरोहित मेघलासिया 

सवाई नाम के कितने करुँ बखान,
कम पङते है सब गुणगान ,
जन्म से ही सब के चहेते ,
ये मन पंछी हर दिल मेँ रहते ,
श्री बीरम सिंहजी के प्यारे संतान ,
सवाई नाम के कितने करुँ बखान ।।
.....,,,,,,.....
बहुत शुद्ध इनके सुविचार ,
मदद के मौके मेँ हरदम तैयार ,
चार्ज करते है सबके जीवन को ,
सच्ची सीख देते जन-जन को ,
तीन भाईयोँ मेँ छोटे भाईजान ,
सवाई नाम के कितने करुँ बखान ।।
सच्चाई के ये धनी है ,
प्रतिभा इनमे खूब बनी है ,
आगरा मेँ भी मची सनसनी है ,
समाजसेवा के लिये छाती इनकी तनी तनी है ,
अपनी बहनोँ के राखी की शान ,
सवाई नाम के कितने करुँ बखान ।।
......,,,,,,,.......
ऊपरवाले ये तेरी कैसी माया 
लूँट लिया माँ का छाया
बहुत आती है माँ की याद
पर किससे करेँ ये फरियाद ,
करते है साकार माँ सुगना देवी के सपने
बिनसहारोँ की मदद कर बनाते है अपने ,
जारी है माँ के संस्कारोँ की पहचान 
सवाई नाम के कितने करुँ बखान ।।
.......,,,,.,,.........
हो आप सबसे न्यारे
मित्रोँ के सबसे प्यारे
सबके मन मेँ आप बसे हो
रंग रूप मेँ भी खूब जच्चे हो ,
मीत आप पर करते अभीमान
सवाई नाम के कितने करुँ बखान ।।
........,,,,,,,,.......
मेरे तो आप हो भगवन
चाहता हुँ आपको मन ही मन ,
अविरल रहे आपकी मुस्कान
मिले आपको हर मंजिल हर मुकाम
"हमसफर" आपका जिगर-ए-जान
सवाई नाम के कितने करुँ बखान ।।

आपका नरपतसिंह राजपुरोहित हमसफ़र 
युवा कवि श्री नरपतसिंह राजपुरोहित 
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20.7.13

वो खेत हरियाले .वो गाँव के पेङ फलवाले ..श्री नरपतसिंह राजपुरोहित

वो खेत हरियाले ,
वो गाँव के पेङ फलवाले ,
वो मीत मतवाले ,
वो खेल का मैदान
जहाँ खूब की थी खेल मस्ती 
वो छोटा सा बाजार
जहाँ कुल्फी मिलती थी सस्ती ,
वो गाँव की शाला
जहाँ सीखी थी वर्णमाला ,

वो टूटी सी सङक
जहाँ साईकिल चलाते थे ,
वो गाँव के मीठे बोर
मन को बहुत भाते थे ,
वो प्यारी सी गायेँ
हमने बहुत चराई थी
उनके दूध की खीर बहुत खाई थी ,
वो चबुतरे के कबुतर
जब चुग्गा चुगते थे 
आसमाँ भी हो जाता था हसीन
जब वो उङते थे ,
वो गाँव की नदी
जहाँ हम बहुत नहाये
ए बचपन तुझे याद करके
हमने आँसु बहुत बहाये ,
अब पापी पेट के वास्ते
हुए बङे और छोङे गाँव के रास्ते ,
याद आता है जब बचपन
तो कहते कितना प्यारा था ,
लङका लङकी का कोई भेद नहीँ
भाई बहिन का यारा था ,
सोचते है बचपन कितना जल्दी गुजर गया ,
वो पिछे छूट गया पर
यादोँ का घर कर गया ।
ए "हमसफर" उस बचपन को याद रखना ,
वो वापस अब आना नहीँ
सपनोँ मेँ स्वाद चखना ।
~ हमसफर यदि हमारा
भेज ने वाले भाई 

श्री नरपतसिंह राजपुरोहित  हमसफर
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29.6.13

ना मैँ गरिब हुँ.ना मैँ अमीर हुँ ,, मैँ हुँ अपने वतन का रक्षक ...श्री नरपतसिंह

ना मैँ गरिब हुँ
ना मैँ अमीर हुँ ,
ना मैँ नेता हुँ
ना मैँ अभिनेता हुँ ,
ना मैँ खिलाङी हुँ ,
ना मैँ अनाङी हुँ ,
मैँ हुँ अपने वतन का रक्षक 
दुश्मनोँ का भक्षक ,
मैँ हुँ युद्धवीर 
देता दुश्मन को चीर ,
मैँ हुँ एक इंसान परिँदा
जो उठाये आँख वतन पर
नहीँ रहता वो जिँदा ,
मैँ हुँ एक भयानक कहर ,
सोचे जो वतन का बुरा
उङ जाये वो जालिम जहर ,
मैँ हुँ एक वतन का प्रेमी
माँ भारती की रक्षा करता हुँ ,
आये तो माता से लङने
उसे भक्षा करता हुँ ,
मैँ हुँ हिन्दु कट्टर
धर्म का पालनहारी ,
जिसे हिन्द से नफरत 
वो करो भागने की तैयारी .
मैँ माँ भारती का
तन मन धन से बाँडीगार्ड ,
जो करे माँ पर विप्पदा 
उस काट देता हुँ जीवन कार्ड ,
किसी ने नहीँ पहचाना
मुझे अगर
तो मैँ हु आपका और वतन का "हमसफर" ।

रचना भेज ने वाले 
युवा कवि श्री नरपतसिंह राजपुरोहित हमसफर
             https://www.facebook.com/prem.rajpurohit.98

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10.5.13

म्हारा प्रिय स्नेही स्वजनो सगला संतो रो एक ही संदेश होया करे है

म्हारा प्रिय स्नेही स्वजनो सगला संतो रो एक ही संदेश होया करे है चाहे
वौ कोई पण देश रा हुवे
या कोई पण जाति रा । उणारो ध्येय परमात्मा छूँ
बिछूड़ीयोड़ी आत्माओ रो मिलण कराणो होयां करे।


उणी म्हाईने दो संत है म्हारा सतगुरु श्री ब्रह्मरिषी श्री 1008 श्री शंकरस्वरुपब्रह्चारीजी महाराज गायत्रीआश्रम अर म्हारा दाता श्री 1008 श्री तुलसारामजी महाराज ब्रह्मधाम आशोत्रा

मै आपरे सांमे संत दरियावजी रो गुरु वंदना मेँ कथीयोड़ो एक भजन प्रस्तुत करणे जा रियोँ हूँ सा कंई भुल हुवे तो स्मां करंजो।

मै अर्ज करू गुरु थाने चरणों मै राखजो
म्हाने
मै अर्ज करू गुरु थाने चरणों मै राखजो
म्हाने

हैलो प्रगट देवू के छाने आ लाज
शर्म सब गुरु थाने 
माता पिता भ्राता है स्वार्थ के
नाता 
मै अर्ज
तारण गुरु दाता ज्यारा चार वेद
गुण गाता
ओ भव जल भरियो भारी म्हणे सुजात
नाय किनारों 
मै अर्ज
- - -

गुरु घट में दया विचारो में डूब
रयो मजधारी
गुरु जग में भयां अवतारी परजीवो के
हितकारी
मै अर्ज
- - -

म्हने आयो भरोसो भारी नहीं 
छोडू शरण तुम्हारी ओ
तन -मन -धन गुरु थोरो चाहे शीश
कट लो म्हारो 
मै अर्ज
- - -

ओ - दास दरियाव पुकारे चरणों
रो चाकर थोरो
मै अर्ज करू गुरु थाने चरणों मै राखजो
म्हाने।
जय गुरुदाता री सा

By  Shri Purohit Mukesh Dudawat


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