गाव भिंडाकुआ की स्थापना
गोत्र के राजपुरोहित कनोज से राजस्थान में आए और जोधपुर के पास सियोदा नामक गाव बसाया |वहा पर चारण जाती से विवाद हो गया | वहा पर सिया राजपुरोहितो ने गोदारा(श्राप) डाल कर बारमेर जिले की सिवाना तहसील के कुशिप गाव में आकर डेरा डाला |वहा पर सोढा राजपूतो से झगडा हो गया |कुशिप गाव छोड़कर किटनोद के पास बाहमनी भाकरी के पास अपना गाव बछाया कई सालो बाद तक वहा निवास करते रहे वहा पर किटनोद ठाकुर करनोत जाती के राजपूतो से गायो के लिए विवाद हो गया |तो सिया जाती के पुरोहितो ने वहा के ठाकुर को श्राप देकर वहा से रवाना हो गये | किटनोद के पास वैशाख शुक्ल सातम विक्रम सवत १४८५ में भिंडाजी S/o थारजी सिया राजपुरोहित ने गाव की स्थापना की | वहा पर भिंडाजी ने एक कुआ खोदा जिससे गाव का नाम भिंडाकुआ पड़ा|सवत १४८५ में कुआ के पास में माँ चामुंडा का मंदिर बनाया गया उस समय गाव में मात्र ८-१० घर थे | जबकि सन २०१२ में वंशज बढ़कर १२५-१३० हो गये है उसके पश्यात माँ चामुंडा का भव्य मंदिर की नीव श्री श्री 1008 खेताराम जी महाराज के हाथो लगाई गई | ततपश्यात मंदिर का निर्माण का कार्य श्री 1008 श्री तुलसाराम जी महाराज के देख रेख में संपन हुआ | माँ चामुंडा की संगमरमर के पत्थर की सिंह पर सवार प्रतिमा बनाई गई बाद में गाव गोलिया में खेताराम जीमहाराज , शिवजी ,लक्ष्मीनारायण , राधाकिशन और हनुमान जी और गोगाजी एवं कुल देवता जुंझार जेहराम सिंह जी का स्थान भी है दाता खेताराम जी की सगाई भी गाव भिंडाकुआ में की गई थी |
लेखक--अशोक सिंह राजपुरोहित सिया गोलिया
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