म्हारा प्रिय स्नेही स्वजनो सगला संतो रो एक ही संदेश होया करे है चाहे
वौ कोई पण देश रा हुवे
या कोई पण जाति रा । उणारो ध्येय परमात्मा छूँ
बिछूड़ीयोड़ी आत्माओ रो मिलण कराणो होयां करे।
उणी म्हाईने दो संत है म्हारा सतगुरु श्री ब्रह्मरिषी श्री 1008 श्री शंकरस्वरुपब्रह्चारीजी महाराज गायत्रीआश्रम अर म्हारा दाता श्री 1008 श्री तुलसारामजी महाराज ब्रह्मधाम आशोत्रा
मै आपरे सांमे संत दरियावजी रो गुरु वंदना मेँ कथीयोड़ो एक भजन प्रस्तुत करणे जा रियोँ हूँ सा कंई भुल हुवे तो स्मां करंजो।
मै अर्ज करू गुरु थाने चरणों मै राखजो
म्हाने
मै अर्ज करू गुरु थाने चरणों मै राखजो
म्हाने
हैलो प्रगट देवू के छाने आ लाज
शर्म सब गुरु थाने
माता पिता भ्राता है स्वार्थ के
नाता
मै अर्ज
…
तारण गुरु दाता ज्यारा चार वेद
गुण गाता
ओ भव जल भरियो भारी म्हणे सुजात
नाय किनारों
मै अर्ज
- - -
गुरु घट में दया विचारो में डूब
रयो मजधारी
गुरु जग में भयां अवतारी परजीवो के
हितकारी
मै अर्ज
- - -
म्हने आयो भरोसो भारी नहीं
छोडू शरण तुम्हारी ओ
तन -मन -धन गुरु थोरो चाहे शीश
कट लो म्हारो
मै अर्ज
- - -
ओ - दास दरियाव पुकारे चरणों
रो चाकर थोरो
मै अर्ज करू गुरु थाने चरणों मै राखजो
म्हाने।
जय गुरुदाता री सा
By Shri Purohit Mukesh Dudawat
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