#परम्_आदरणीय
Kavi Dalpat Singh Roopawas जी का साफ सार्थक संदेश राजपुरोहित समाज को
अब_समाज_और_युवा_मित्रों_को_तय_करनी_होगी
राजनीति_में_समाज_की_दिशा_और_दशा____!!
👇👇👇👇👇
मुझे लगता है दोनों पार्टिया हमारा केवल उपयोग करती है । हमें केवल गली मोहल्लों का अध्यक्ष बना लेती है । हम उसी में खुश हो लेते है । फूले नहीं समाते ।
इन पार्टियों के आकाओ के साथ सेल्फी लेने में हम शान समझते है । हम उन्हे साफा और माला पहनाते है । उनके कसीदे पढ़ते है । जबकि ये आका हमें कुछ नहीं समझते ।
हम एक चपरासी तक का ट्रांस्फर न तो करा सकते न रूकवा सकते । दोनो पार्टिया हमारे साथ गेम खेलती है । जिस प्रकार एक ट्रैक्टर को जब ट्राली की जरूरत होती है तो वह उलटा उलटा ट्राली के पास आता है , उससे कहता है , मैं तेरे बगैर अधूरा हूं । तुम बिना मेरा कोई कार्य संभव नहीं है । तुम्हारै बिना मैं बांडा कहलाता हूं ; तुम मेरा पूर्ण रूप हो ।
अपनी प्रसंसा सुन कर फूली नहीं समाती । वह ट्रेक्टर के आगे समर्पण कर देती है । वह स्वार्थी ट्रेक्टर मन ही मन कुटिलता से मुस्कराता है ।
ट्रॉली को अपने साथ जोड़ कर खेत में ले जाता है । चारा या लकड़ी भरता है । फिर अगर चारा या लकड़ी का कोई ग्राहक आ जाता है और सौदा हो जाता है तो वह ट्रेक्टर उस ट्राली को वहीं छोड़ कर घर आ जाता है । रोड़ पर खड़ी ट्राली से रात में कोई वाहन टकराता है तो बदनामी ट्राली की होती है । ट्रेक्टर घर में बैठा बैठा मुस्कराता है । हमारे साथ भी यही हो रहा है ।
अब हमें संभल जाना
चाहिये । हमें अपनी ताकत बतानी होगी ।
" खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा भी बंदे से पूछे कि बता तेरी रजा क्या है ?"
निवेदक
कवि दलपतसिंह रूपावास
Kavi Dalpat Singh Roopawas जी का साफ सार्थक संदेश राजपुरोहित समाज को
अब_समाज_और_युवा_मित्रों_को_तय_करनी_होगी
राजनीति_में_समाज_की_दिशा_और_दशा____!!
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मुझे लगता है दोनों पार्टिया हमारा केवल उपयोग करती है । हमें केवल गली मोहल्लों का अध्यक्ष बना लेती है । हम उसी में खुश हो लेते है । फूले नहीं समाते ।
इन पार्टियों के आकाओ के साथ सेल्फी लेने में हम शान समझते है । हम उन्हे साफा और माला पहनाते है । उनके कसीदे पढ़ते है । जबकि ये आका हमें कुछ नहीं समझते ।
हम एक चपरासी तक का ट्रांस्फर न तो करा सकते न रूकवा सकते । दोनो पार्टिया हमारे साथ गेम खेलती है । जिस प्रकार एक ट्रैक्टर को जब ट्राली की जरूरत होती है तो वह उलटा उलटा ट्राली के पास आता है , उससे कहता है , मैं तेरे बगैर अधूरा हूं । तुम बिना मेरा कोई कार्य संभव नहीं है । तुम्हारै बिना मैं बांडा कहलाता हूं ; तुम मेरा पूर्ण रूप हो ।
अपनी प्रसंसा सुन कर फूली नहीं समाती । वह ट्रेक्टर के आगे समर्पण कर देती है । वह स्वार्थी ट्रेक्टर मन ही मन कुटिलता से मुस्कराता है ।
ट्रॉली को अपने साथ जोड़ कर खेत में ले जाता है । चारा या लकड़ी भरता है । फिर अगर चारा या लकड़ी का कोई ग्राहक आ जाता है और सौदा हो जाता है तो वह ट्रेक्टर उस ट्राली को वहीं छोड़ कर घर आ जाता है । रोड़ पर खड़ी ट्राली से रात में कोई वाहन टकराता है तो बदनामी ट्राली की होती है । ट्रेक्टर घर में बैठा बैठा मुस्कराता है । हमारे साथ भी यही हो रहा है ।
अब हमें संभल जाना
चाहिये । हमें अपनी ताकत बतानी होगी ।
" खुद ही को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले खुदा भी बंदे से पूछे कि बता तेरी रजा क्या है ?"
निवेदक
कवि दलपतसिंह रूपावास
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