ऊमरलाई मठ के गादीपति महंत श्री रामानंद जी सरस्वती जी के सानिध्य में होली के त्यौहार पर बाड़मेर के पचपदरा क्षेत्र में निकलने वाली पारम्परिक राजपुरोहितों की गेर आज भी अपनी अनूठी पहचान रखतीं हैं।
बगेर में शामिल लोग की मस्ती में चूर होकर गायन करते है। इसमें खास बात यह होती है कि दादा और पोता, चाचा और भतीजा तथा बाप और बेटा एक साथ मिलकर होली मनाते है और आपसी मनमुटाव भुलाकर रंगो की मस्ती में सराबोर होकर होली का जश्न मनाते है।
राजस्थान में होली की परंपराए आज भी लोगों को अपनेपन और प्यार से जोडे रखती है और उसी में प्रदेश के दूसरे बड़े जिले की राजपुरोहित की गैर हर साल की तरह आज भी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
होली एक दिन बाद रामाश्यामा के दिन ऊमरलाई में राजपुरोहित की गैर निकलने के साथ परम्परा के रंग इस गेर में दिखाई देंगे। आज से नहीं बल्कि पीडियों से मारवाड़ की अनूठी परम्परा है गेर। चंग बजाते होली के गीत गाते लोगों की टोली को गेर कहा जाता है।
बगेर में शामिल लोग की मस्ती में चूर होकर गायन करते है। इसमें खास बात यह होती है कि दादा और पोता, चाचा और भतीजा तथा बाप और बेटा एक साथ मिलकर होली मनाते है और आपसी मनमुटाव भुलाकर रंगो की मस्ती में सराबोर होकर होली का जश्न मनाते है।
राजस्थान में होली की परंपराए आज भी लोगों को अपनेपन और प्यार से जोडे रखती है और उसी में प्रदेश के दूसरे बड़े जिले की राजपुरोहित की गैर हर साल की तरह आज भी आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
होली एक दिन बाद रामाश्यामा के दिन ऊमरलाई में राजपुरोहित की गैर निकलने के साथ परम्परा के रंग इस गेर में दिखाई देंगे। आज से नहीं बल्कि पीडियों से मारवाड़ की अनूठी परम्परा है गेर। चंग बजाते होली के गीत गाते लोगों की टोली को गेर कहा जाता है।
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