एक महान गाथा पालीवाल ब्राह्मण इतिहास की...
जहां एक और पूरा देश राखी के त्योहार को मनाएगा वही देश में एक पालीवाल ब्राह्मण जो उसको शोर्य दिवस के रूप में मनाकर धर्म और स्वाभिमान की लड़ाई में वीरों की भाती लड़ते हुए शहीद हुए अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
पालीवाल समाज द्वारा रक्षाबंधन नही मनाकर पाली के पुर्वजो की याद में पालीवाल धाम रुक्मणी मंदिर परिसर पाली-राजस्थान में पालीवाल एकता दिवस मनाया जा रहा है और पुर्वजो को श्रद्धांजलि दी जा रही है पुर्वजो के बलिदान को शत शत नमन
चलते हैं इतिहास के पन्नों की तरह
आइए सुनते है उनकी वीर गाथा को
श्री आदि गौड़ ब्राह्मण जिनको विदर्भ के राजा भिस्मक के कुल गुरु जिन्होंने शस्त्र और शास्त्र से इस कुल को सदैव अग्रणी रखा भीस्मिक की ईशा थी की कृष्ण के साथ उनकी पुत्री रुकमणी का विवाह हो पर पुत्र रुक्मी के चलते विवश थे रुक्मी कृष्ण और रुकमणी के विवाह विरोध था इसके बावजूद हरिदास जी ने ही रुकमणी और भगवान कृष्ण को मिलवाने के लिए प्रेम पोथी पहुचाई और उनकी बुद्धि और कोशल देख भगवान श्रीकृष्ण ने गुजरात में बहुत सारा भू भाग और धन भेट किया उसके बाद महाराज हरिदास जी ने एक जगह बसाई जिसका नाम हरिपुर रखा जो आज भी गुजरात में खंडर के रूप में स्तिथ है।
उसके बाद उनके वंशज गुजरात से (गौड़वाडा) जो आज के पाली और उसके आस पास के भू भाग आकर पाली नगर बचाया जिससे पाली से उनका स्थानवाचक सरनेम पालीवाल पड़ गया पालीवाल इन्होंने पाली में आने वाले गरीब को एक सोने की ईट और एक रुपए दे कर सबको सम्मान कर देते नगरी में कोई गरीब नही था सब एक सम्मान थे पर सुख के साथ दुख भी आता है जो जिन्होने सालो तक शासन किया जिनकी शस्त्र और शास्त्र की ताकत के आगे किसी ने युद्ध तो दूर बात पाली की तरफ देखा भी नही था।
1348 में फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में विदेशी ताकते हमलावर थी और इसी कड़ी में जब शाह को पाली जैसे धन,धान और व्यापारिक और सम्पन नगर के बारे में जानकारी मिली और सुना तो उसके मन में लालस आ गया उसको पाने की ठान ली इसके लिए उस पर जानकारी के लिए गुप्तचर भेजे पर जब शाह को गुप्तचरो ने बताया की पालीवालो ब्राह्मणों का शासन है वहा के शासक जसोधर पालीवाल है और उसकी शक्ति उनकी एकता और धर्म और कुलदेवी का आशीर्वाद प्राप्त है आज तक पाली पर किसी ने आंख उठा कर नही देखी पर शाह को पाली प्राप्त करना था इसके लिए साम दाम दण्ड भेद कैसे भी करके पाली पाना ही था इसके लिए उसने अपने सेनापति को उनके ही नगर का भेदी जो उनकी कमजोर कड़ी जानता हो उसको धन धान से अपने और लाने को कहा गया इसके साथ शाह भी पाली की सीमा पर आ खड़ा हुआ और पालीवाल ब्राह्मणों को एक पत्र लिखा गया* *जिसमे कहा गया की या तो हमारे अधीन होकर शासन करो नही तो युद्ध करके मरो और इस पत्र को महाराज जसोधर ने पढ़ा और उन्होंने युद्ध को चुना क्युकी तुगलक क्रूर थे वो अधीनता में इज्जत मर्यादा को तार तार कर देगे और पालीवालो को भी स्वाभिमान से समझोता मंजूर नही था उन्होंने धर्म और स्वाभिमान के लिए युद्ध सही समझा 114 दिन तक रुक रुक कर चले इस युद्ध में पालीवाल खूब बहादुरी से लड़े हार नही मानी और तुगलक सेना को भारी नुकसान हुआ शाह के पास उनको हराने का कोई तरीका नहीं दिखा रहा तभी एक पाली नगर का द्वारपाल उनसे लालस चक्कर में अपने ही नगर से गद्दारी कर दी और शाह को अंदरूनी जानकारी दी की पालीवाल ब्राह्मणों को ऐसे कोई नही हरा सकता क्योंकि ये धर्म के प्रति निष्ठावान है कुलदेवी का इन पर आशीर्वाद है अपराजय का इनको हराना है तो एक मात्र सहारा धर्म पर अघात करो ये उसको सहन नही करेगे उसके बताए अनुसार शाह ने उस समय पाली के एक मात्र पिए जल तालाब में गाय काट कर डाल दी जब ये खबर समूचे नगर में फेल गई तो ब्राह्मणों का क्रोध उनके काबू में नही रहा और राखी के दिन जहा बहन अपने भाई के हाथ पर रखी बांधने आई उसी हाथो में तलवार लेकर बड़े बुड्ढे बच्चे सब बिना सोचे समझे युद्ध भूमि में उतर गए जो शाह ने सोचा वो हुआ वो पहले से उनको घेर कर बैठा था पालीवाल सब बाहर आए उसने पीछे और आगे दोनो ओर से घेर कर हमला बोल दिया जिससे लाखो की संख्या में पालीवाल सैनिक और महाराज जसोधर मारे गए इस युद्ध में पालीवाली के साथ शाह की भी बहुत हानि हुई घायल अवस्था मे उसने भी रणभूमि छोड़ दी और दिल्ली की ओर कूच कर दी पर युद्ध विराम तो हो गया पर पीछे जो मंजर छोड़ गया वो बहुत भयंकर था पाली की धरती पूरी लाल हो चुकी थी लाशो के ढेर लग चुके थे जब शहीद वीरों का अंतिम संस्कार हुआ उनकी जनेऊ उतारा गया तो सवा मण और जो उनके पीछे जो नारियां सती हुई उनके चूड़ा 84 मण निकला जिसको धोला चोतरा स्थित कुए में डाल कर बंद कर दिया गया जिससे आने वाले समय में इसकी पवित्रता को भंग ना कर सके और उसके बाद समस्त पालीवाल ब्राह्मणों ने फैसला लिया की जिस राज पाट के लिए किसी ने बहन ने अपना भाई खोया किसी ने अपना बेटा तो किसी ने पति धन राज मिल जाता पर इन्होंने जो खोया वो कभी वापस नहीं मिलेगा उसके बाद समस्त पालीवालो ने पाली का पानी अन्न को त्याग कर अन्य जगहों की ओर चल दिए ज्यादातर जैसलमेर गए जहा जाकर उन्होंने 84 गांव बसाए और कुछ भारत के अलग अलग हिस्सों में चले गए*
पालीवाल ब्राह्मणों के लिए कहा जाता है
पाली से धर्म रक्षार्थ इनका अथार्त " पाली नगर किसका कोट दस कोस के घेरे का था और जिनमें वैभवशाली बाज़ार भी बसा था, में सवा लाख घर ब्राम्हणों के बसे थे। इसे सारा संसार जागता हे | जो भी निर्धन ब्राम्हण यहाँ आ बसा, उसे धनादि देकर अपने सामान संपत्तिशाली बनाया।"
सुसिध्द इतिहासकार कर्नल जेम्स टांड ने पालीवाल ब्राम्हण के विषय में लिखा है - "राजघराने के राजपूतों से दुसरे नम्बर पर पालीवाल जाती ही ऐसी जाती हे जो संख्या में इनके बराबर और धन सम्पत्ति में इनसे भी आगे बढ़ी हुए है।
"पालीवालों के आचार-व्यवहार के बारे में जेम्स टांड ने लिखा है - "पालीवाल स्मार्ट ब्राम्हण है और मांसादी अभक्ष्य पदार्थों का प्रयोग नहीं करते। ये अपनी कन्या के घर का पानी नहीं पीते " पाली नगर वही हे जहा आज से एक हजार वर्ष पूर्व एक लाख पच्चीस जहार गौड़ ब्राम्हण रहते थे। इनमें प्रथा थी कि नवागत गृहस्थी को एक मोहर एक ईट देके अपने समान व्यवसायी और मकानवाला बना देते थे।"
पूनमकी चांदनी में रुक्मिणी मन्दिर व पूनागर माता मन्दिर का एकाकार स्वरूप।
श्री पालीवाल धाम (पाली राजस्थान)
जानकारी और फोटो के लिए बहुत-बहुत आभार और धन्यवाद करते हैं।
पंडित श्री मदन मोहन पालीवाल डोरोली
(प्रदेश अध्यक्ष) राजस्थान अंतर्राष्ट्रीय ब्राह्मण युवजन सभा
No comments:
Post a Comment
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर(Join this site)अवश्य बने. साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ. यहां तक आने के लिये सधन्यवाद.... आपका सवाई सिंह 9286464911