आज आम जन मानस में बहुत दुख और पीड़ा में हैं। कि जिस तरह आबादी बढ़ रही हैं, जंगल में पेड़ों को निरंतर काटा जा रहा हैं, पहाड़ों को तोड़कर नदियों का रुख बदला जा रहा हैं। जिस प्रकार से मनुष्य प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता ही जा रहा हैं यह भयानक है। अवैध कब्जों के चलते गोमाता और अन्य पालतू पशुओं के चरने के गोचर क्षेत्र तेजी खत्म होते जा रहे हैं। कुछ लोग धन कमाने और स्वयं की सुविधा के साधनों की पूर्ति के लिए गोचर भूमि पर कब्जा कर रहे, तो अनेकों असामाजिक तत्व भी सक्रिय हैं जो अनेतिक तरह से धन कमाने और स्वार्थ की अंधी दौड़ में निरंतर पाप कर रहे हैं। गांव की आबादी व खेत-खलिहान कम होते जा रहे , शहर की आबादी और परिक्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं। वर्तमान समय में व्यक्ति भौतिक सुख शांति और धन संग्रह ही दौड़ में पाप पुण्य का अर्थ ही नही समझ रहा हैं या यू कहिए समझना ही नही चाहता । संपन्नता और वैभव हासिल करने के लिए धर्म की महिमा ही भूल चुके हैं। अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए निरंतर पाप की खाई में पड़ते ही जा रहा हैं। उस नादान को पता ही नहीं हैं कि वो अपने जीवन को अंधकार की ओर मोड़ रहा हैं। गोमाता सनातन धर्म की रक्षक हैं वेद जिसकी महिमा गाते हैं अगर हम उनके मुंह का निवाला छिनेंगे तो हम निःसंदेह गर्त में जायेंगे। उस पाप को भावी पीढ़ियां भी भोगेगी । धर्म के विरुद्ध जाकर कभी भी मानसिक शांति प्राप्त नहीं कर सकते। सीमित समय के लिए हमें गोचर भूमी से सुख मिल सकता हैं, लेकिन अंत बहुत बुरा होता हैं ये मैं नहीं कह रहा हूं वेदों में वर्णित हैं।
हरे कृष्ण जय गौमाता
गुरुदेव श्री दयानंदजी सरस्वती महाराज से प्राप्त उपरोक्त मैसेज
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