राजपुरोहित श्री किशनदास जी पर कुछ दोहे कविश्री नरपत सिंह राजपुरोहित बावड़ी कला (ह्र्दयलेखनी) द्वारा
राव बिकाजी राज में , पुरोहित दईदास ।
जनम लीयो जिण घर , कुँवर किशनादास ।।
दईदासजी जांगळ रे , जुद्ध में आया काम ।
पूत पाटवी किशनजी , गुरुपद चढ्यो नाम ।।
साँसण मिळगी सांतरी , थोरीखेड़ा गांव ।
पनरेसो इकहत्तर में , कत्थ किशनासर नांव ।।
सरवर खुदाय चाव सूं , कोहर कोसो कोस ।
जळ सारूं नह भटकणो , हिरदै राख्यो होश ।।
माँ करणी रो देवरो , थापन कीनो आप ।
ओरण राखी ओपती , मन सूं जपियो जाप ।।
राव राठौड़ जैतसी , राजगद्दी बीकाण ।
सोवा गांव री सीवं , घण मन्डयो घमसाण ।।
जोधाणे (सूं) जुंझ पड़या , वीर किशनजी दास ।
जीव दीयो जांगळ हित ,गढ़ बीकाण उजास ।।
सताइस गांव रो कुटुम्ब , कहिजै है किशनांण ।
गढ़ बीकाण (में) गाज रह्या , अजतक है ऐनाण ।।
ह्र्दयलेखनी ।।
धन्यवाद और आभार
लेखक, कवि और भाई श्री नरपतसिंह राजपुरोहित ह्रदय द्वारा कृत ,
चलते-चलते आज कविराज भाई श्री नरपत सिंह जी का जन्मदिन है उनको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं आप जियो हजारों साल ऐसी मंगल कामना है योग आचार्य सवाई सिंह (शौर्य प्रताप) टीम सुगना फाऊंडेशन
कृपया मूल रूप में शेयर करें ।
विशेष नोट :- इस रचना को हमने राजपुरोहित समाज इंडिया के फेसबुक पेज से लिया है जिसके एडमिन के रूप में कवि श्री नरपत सिंह राजपुरोहित द्वारा लिखी गई एक रचना है।
No comments:
Post a Comment
यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो फालोवर(Join this site)अवश्य बने. साथ ही अपने सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ. यहां तक आने के लिये सधन्यवाद.... आपका सवाई सिंह 9286464911