इन दिनों आटा सटा पर बहस चल रही है। बहुत से विद्वान कहते हैं पैसे वाले लोग गरीबों को लड़कियां क्यों नहीं देते।
जिन्होंने बिना आटा सटा लड़कियां दी यह जानकर कि लडके कुछ कमाएंगे। मगर लड़कियों की सास ने लड़कियों को नौकरानी ही नही उससे भी बदतर बना कर रख दिया फिर ऊपर से नित्य यह कहना कि तेरे बाप ने हमें ठग लिया। मेरा हीरो जैसा लड़का तेरे बापको कहा मिलता फिर हीरो घर आ कर मां की तरफदारी में विलेन बन जाता है। पिटाई से अपनी आत्मा और मां के मन की मुराद पूरी करता है।
हीरो दसवीं फेल काम का न काज का सेर भर अनाज का।फिर कमाई के लिए किसी रिश्तेदार के मिठाई वाले कारखाने में चला जाता है।कुछ नहीं झाड़ू बिहारी कर कुछ कमा कर मातास्री के चरणों में चढ़ा देता है। पत्नी जैसे तैसे रूखी सूखी खा कर रहती है और पति परमेश्वर फिर कई महीनों की शिकायत करती है और बेचारी पत्नी की पिटाई सुरु।
जिन लड़कियों के मां बाप ने अपनी लडकियों को हुनर सिखाया। कतई बुनाई,सिलाई वे कुछ न कुछ अपनी हाथ खर्ची कमा कर गुजारा करती हैं। उनके मां बाप और वे खुद उस आदमी को गलिए देते हैं जिसने खूब तारीफ कर संबंध कराया था।
सासू जहा घर का मुखिया है स्वसुर बेचारा जोरू का गुलाम है।घर टूट जाता है। लडका कुछ करता नहीं कुछ महीने भटक भटका कर कुछ रुपए ला कर माताश्री को फिर अर्पित करता है।तब उनकी पत्नियों को कोर्ट कचहरी की शरण लेनी पड़ती है।नतीजा झुकना पड़ता है मगर आलसी अयोग्य कुछ नहीं कर पाता।अगर इसे लडकों को किसी ने लड़की दे दी तो एहसान फ्रामोस फिर भी गलती लडकी की ही निकलेंगे जबकि लड़की लेने के लिय मध्यस्त सहित लता पौरिया करते थे।अगर उनकी शादी न होती और लक्षण दिख जाते तो वे पितर हो होते।
जिन लड़कियों ने हिम्मत दिखाई खुद सिलाई कढ़ाई से भरण पोषण करने लग गई।आत्महत्या नहीं की ओर पति का हाथ उठते ही हाथ को मोड़ कर अकाल ठिकाने लगाड़ी।इसे अकर्मण्य आवाराओं को कोई लड़की नहीं देता और मेरा निवेदन है कि भविष्य में भी न दे चाहे वे पितर बनें या खाइस बने।
अयोग्य,अकर्मण्य,आवारा लडकों के मां बाप को खुद उनकी शादी नहीं करनी चाहिए जो अपने बच्चो का स्वतंत्र रूप से भरण पोषण कर पाने में असमर्थ हों।यदि करते हैं तो आजीवन जिम्मेदारी उठाए।सासू भी उसी घर की बहू है।लिमिट में रहे। पति भी पति धर्म निभाए अन्यथा भविष्य में अभी जो खबरें आ रही है बहुओं की पिटाई और मारने की भविष्य में खबरों में बहुओं द्वारा सास की हत्या के समाचार छपने लगेगें।
निरंतर
मारवाड रत्न देव किशन राजपुरोहित चम्पा खेडी नागौर
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को
'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आधुनिक समाज का सठिक विश्लेषण - - नमन सह।
ReplyDeleteबहुतेरी बार उल्टा भी होता है, इसका
ReplyDeleteजो किसी काम के नहीं उससे शादी करना जीते जी अंधे कुएं में धकेलना जैसे हैं
ReplyDeleteलड़की को बोझ समझने वाले माता पिता ऐसे ही रिश्ते कर देते ।
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