राजपुरोहितों का योगदान
राजा के हार जाने पर राजकुल की रक्षा का दायित्व राजपुरोहित का होता था । पृथ्वीराज की हार के बाद रानियों को एक पुरोहित लेकर वन के रास्ते रोहतक पहुँचा । वह परिवार आज भी है । उनमें से एक महिला दिल्ली में प्रोफेसर हैं । उन्होंने अपने परिवार का इतिहास बताया, उस रक्षक ब्राह्मण के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
हमने राजपुरोहितों का योगदान भुला दिया है । लोग नहीं जानते कि जौहर व्रत में रानियों की आत्माहुति के पहले ब्राहमण पुरोहित अग्नि में प्रवेश करता था । जौहर व्रत का संकट आने पर तीन दिनों निराहार जागरण करते हुए पुरोहित गायत्री मंत्र का जप करता था और अग्नि में प्रवेश कर जाता था। तत्पश्चात रानियाँ आत्माहुति देती थी।
जौहर जैसा आपदधर्म वैदिक धारणा पर आधारित है। यज्ञाग्नि सूर्य का प्रवेश द्वार है। अग्नि ही देहपूर्व आत्मलोक है । सम्सत पेशवाई अनुग्रहित है राजपुरोहितो की । राजस्थान में ना जाने कितने वंशो की रक्षा दायित्व राजपुरोहितो ने निभाया है ।
अनेक राजपूतों का आपसी विवाद में अपने प्राण देखकर उनका विवाद सुलझाया है वह राजपुरोहित जब भी भारी संकट आया तभी तलवार लेकर आगे आकर क्षत्रिय की रक्षा की आज वह समाधिया उनकी वीरता की गवा दे रही है। मारवाड़ राज्य में राजपुरोहितो का अतुल्य योगदान और समय समय पर बलिदान भी दिया है सैंकड़ों उदाहरण है इसकी अवेज में राजपुरोहितो को ठिकाने, ओर शासन जागिरिया प्राप्त हुई है ।
स्रोत फेसबुक श्री प्रभाकर जी
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