कुदरत का कहर बरस गया,
जीवन का पहिया रूक गया।
अब तो चले जाओ कोरोना,
मजदूर का धैर्य अब मर गया।।
साहूकारों, हवेली वालो को भी,
जीवन का विषपान हो गया।
किसान की उपज हैं अमूल्य,
यह हर इंसान समझ गया।।
प्रकृति से करो ना खिलवाङ,
ऐसा ज्ञान हर मानव को दे गया।
मानव शक्ति हैं अपार,असीमित,
उसकों भी तू सीमित कर गया।।
जो समझते थे खुद को ही खुदा,
उनका अहंकार तू घायल कर गया।
लौट के न आना हे कोरोना अब तू,
गलती का अहसास,इंसान को हो गया।।
टीआर पुरोहित,
वरिष्ठ अध्यापक
राउमावि बिछावाडी, सांचौर
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