खामोश है दरिया, खामोश है किनारे ।
मदहोश हैं हम बिन आप के सहारे
भंवर सी बन डोल रही, मन की मस्ती
मदहोश है, हम बिन आप के सहारे ।
याद तुम आती हो ,लहरों की तरह ।
फिर गुम हो जाती हो, बुलबुलों की तरह।
मदहोश हैं ,हम बिन आपके सहारे ।
भटक रहे बन, मजनू तुम्हारे,
तुम लैला बन ,छाई हो मन - मंदिर में।
मदहोश हैं हम बिन आप के सहारे
स्वरचित लिखित मौलक / अप्रकाशित
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक श्री महेश सिंह राजपुरोहित बावड़ी
जोधपुर राजस्थान
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